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लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे के दम पर राज कर रही भाजपा!

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चरण सिंह

समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि समाजवादियों के साथ ही भाजपाइयों और आरएसएस ने भी मनाई। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और यहां तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने प्रमुख रूप से डॉ. लोहिया को श्रद्धांजलि अर्पित की। दरअसल डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे पर समाजवादी तो ज्यादा दिन न चल पाये पर संघ, जनसंघ और भाजपा जरूर गैर कांग्रेसवाद के नारे पर काम करते रहे। कहना गलत न होगा कि वह लोहिया का गैर कांग्रेसवाद का नारा ही है कि भाजपा देश पर राज पर रही है।
देखने की बात यह है कि अपने को लोहिया का अनुयायी मानने वाले समाजवादी तो उनके गैर कांग्रेसवाद के नारे से भटक गये, सत्ता के लिए कांग्रेस से कई बार सटे पर भाजपाईयों ने कभी सत्ता के लिए भी कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाया। चाहे मुलायम सिंह यादव हों, लालू प्रसाद यादव हों, रामविलास पासवान हों, नीतीश कुमार हों यहां तक चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर सिंह ने भी सत्ता के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया। आरएसएस और भाजपा की कितनी भी आलोचना कर की जाए पर कांग्रेस के मामले में ये लोग हमेशा विरोध में ही रहे। आज की तारीख में भी भाजपाइयों विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टारगेट पर कांग्रेस विशेष रूप से गांधी परिवार रहता है।
दरअसल आजादी के बाद जब कांग्रेस का देश पर एक छत्र राज था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही थी तो लोग कहते थे कि कांग्रेस के राज का कभी खात्मा नहीं होगा। यह वह दौर था जब पंडित नेहरू की नीतियों के सबसे बड़े आलोचक डॉ. राम मनोहर लोहिया माने जाते थे। डॉ. लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया।  शुरुआत में समाजवादी, जन संघी और वामपंथी सभी ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला। समाजवादियों में डॉ. लोहिया के अलावा लोकनायक जयप्रकाश, आचार्य नरेंद्र देव, कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादियों ने कांग्रेस के खिलाफ पूरी तरह से बिगुल फूंक रखा था। तब कई राज्यों में समाजवादियों की सरकार बनी थी।
लोहिया के गैर कांग्रेस के नारे का सबसे बड़ा असर लोहिया के निधन के बाद ७० के दशक में देखने को मिला। छात्र आंदोलन से जन आंदोलन बने जेपी आंदोलन ने कांग्रेस के खिलाफ सभी पार्टियों को एक मंच पर ला दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी लगाई तो चंद्रशेखर सिंह, बाबू जगजीवन राम जैसे कांग्रेस भी बगावत कर समाजवादी हो गये। चौधरी चरण सिंह तो पहले से ही इंदिरा गांधी के खिलाफ थे। जनता पार्टी में सभी पार्टियों का विलय हो गया। सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ का भी।
बड़े आंदोलन ने बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मधु दंडवते, किशन पटनायक, जार्ज फर्नांडीज, मधु दंडवते समेत कई समाजवादियों ने जनसंघ से आये अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी समेत कई नेताओं की दोहरी सदस्यता पर उंगली उठा दी। दरअसल इन नेताओं ने जनता पार्टी के साथ ही आरएसएस की भी सदस्यता ले रखी थी। जनता पार्टी टूट गई। चौधरी चरण सिंह कांग्रेस की मदद से सरकार बना ली। 1980  में भाजपा का गठन हुआ। 1989  में जब जनता दल की सरकार बनी तो बीजेपी ने बाहर से समर्थन दे रखा था। वीपी सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद जब आरक्षण विरोध में देश में आंदोलन हुए तो मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर रथयात्रा निकाल दी।
बिहार में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करा दिया। बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। वीपी सिंह सरकार गिर गई़। तब 1991 चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस की मदद से अपनी सरकार बनाई थी। 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार कांग्रेस के सहयोग से बनी थी। उस सरकार में मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री बने थे। मुलायम सिंह यादव ने चंद्रशेखर सिंह की सरकार गिरने पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मदद से अपनी सरकार बचाई थी। हां यह जरूर कह सकते हैं कि बीजेपी सत्ता के लिए कभी कांग्रेस से नहीं मिली। जिसका फायदा उसे आज मिल रहा है।