द न्यूज़ 15
मुजफ्फरनगर। गणतंत्र दिवस के दिन उत्तर प्रदेश के जाट बिरादरी से जुड़े लोगों के साथ गृहमंत्री अमित शाह की बैठक की बहुत चर्चा है। इसमें भी सर्वाधिक चर्चा भाजपा की ओर से रालोद को साथ लाने का प्रस्ताव है। नाराज जाट मतदाताओं को रालोद के समर्थन तक ही सीमित रखना चाहती है पार्टी, इसलिए जयंत को साथ आने का प्रस्ताव दिया। दरअसल, भाजपा मानती है कि चुनाव से पहले चौधरी अजित सिंह की मौत के बाद जाट बिरादरी में रालोद और इसके मुखिया जयंत चौधरी के पक्ष में सहानुभूति है। रालोद ने इस बार सपा के साथ गठबंधन किया है।
ऐसे में पार्टी को डर है कि जयंत के पक्ष में जाट बिरादरी के एक पक्ष की सहानुभूति का लाभ कहीं सपा को न मिल जाए। भाजपा इस क्षेत्र में जाट बिरादरी की सहानुभूति को रालोद तक ही सीमित रखना चाहती है। उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम बिरादरी के 44 फीसदी मतदाता हैं। अगर इन दोनों बिरादरी की सहानुभूति सपा-रालोद के गठबंधन के पक्ष के साथ आती है तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी।
इस चुनाव में भाजपा, सपा, बसपा और रालोद के केंद्र में जाट बिरादरी है। इस बिरादरी के भाजपा ने 17, रालोद ने 10, सपा ने पांच और बसपा के 10 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। बीते विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगे ने जाट और मुस्लिम बिरादरी के बीच दरार डाल दी थी।
इसी कारण भाजपा को इस क्षेत्र की 136 में से 109 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा इस चुनाव में भी जाट और मुसलमान के बीच बनी खाई को बनाए रखना चाहती है। भाजपा चाहती है कि पहले तो रालोद के प्रति इस बिरादरी की सहानुभूति कम की जाए। दूसरा, खुद को इस बिरादरी के असली हितरक्षक के रूप में प्रचारित किया जाए।