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Bharat : वेदों की भाषा अलंकारिक है जिसको पुराणकारों ने वास्तविक संदर्भ और उचित में ना लेकर अनर्थ किया है

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देवेंद्र सिंह आर्य 

वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ है।
वेद अपौरुषेय है।
वेदों में नदियों ,पहाड़ों, राजाओं के नाम नहीं है।
वेदों में राजाओं का कोई इतिहास नहीं है।
वेदों में किसी भी राजा की वंशावली नहीं है।
वेदों की भाषा अलंकारिक है जिसको पुराणकारों ने वास्तविक संदर्भ और उचित में ना लेकर अनर्थ किया है और इतिहास होने का भ्रम पैदा किया है।

पुराण वेदों की अपेक्षा अर्वाचीन हैं।
पुराणकार ऋषि नहीं थे।
पुराणों में कुछ ऐतिहासिक तथ्य अवश्य है परंतु पूर्णतः सत्य नहीं है।

 

आर्यों का यह अटूट विश्वास है कि आदि सृष्टि के समय मनुष्य को परमात्मा की ओर से ज्ञान की प्रेरणा हुई ।वही ज्ञान वेद है, परंतु वेदों की इतनी लंबी प्राचीनता पर, उनकी आदिकालीनता पर तथा अपौरुषेयता पर अनेक विद्वानों को विश्वास नहीं है। वे कहते हैं कि वेदों में जिन ऐतिहासिक नामों का उल्लेख पाया जाता है और ज्योतिष संबंधी जिन घटनाओं के संकेत पाए जाते हैं उनसे वेदों का समय प्राचीनतम पुस्तक के संबंध में सिद्ध नहीं होता ।परंतु इस आरोप में कोई बल नहीं है क्योंकि वेदों में ऐतिहासिक अथवा ज्योतिष संबंधी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है। जिससे वेदों की आदिकालीनता पर यह आक्षेप किया जा सके। क्योंकि आर्यों की लिखित सभ्यता बहुत अधिक प्राचीन प्रमाणित है। जो यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने सम्राट चंद्रगुप्त के समय में स्वयं अपनी पुस्तकों में उल्लेख किया है।

 

लेकिन यह सत्य है कि वेदों में ऐतिहासिक राजाओं का वर्णन नहीं है और न वेदों में किसी ज्योतिष की घटना का उल्लेख है। वेदों से इस प्रकार का समय निश्चित करने का अवसर पुराण वालों ने ही दिया है क्योंकि पुराणों ने राजाओं की नामावलियों को वंशावली बनाकर और वैदिक अलंकारों को राजाओं के इतिहास के साथ जोड़कर ऐसा झंझट पैदा कर दिया है कि क्या वेदों में किसी इतिहास या ज्योतिष घटना का उल्लेख है।
पुराणों में जो वंशावलियां दी हुई है उनको दो विभागों में विभाजित कर सकते हैं ।पहला विभाग महाभारत युद्ध से उस पार का है और दूसरा विभाग इस पार का है। पहला विभाग वंशावली नहीं प्रत्युत नामावली है पहला विभाग अत्यंत प्राचीन है उसके संबंध में साहित्य की उपलब्धता न्यूनतम है। इसलिए वह इस स्मृति एवं श्रवण से परे है। उपरोक्त के अतिरिक्त दूसरा विभाग वंशावली है।
ऐसी 10 __ 20 नामों से बनी हुई उल्टी-सीधी साधारण सूचियों से आर्यों का, मवन्तरों का और वेदों का इतिहास निकालना भला कैसे ठीक हो सकता है?
इसलिए पौराणिक वन्शावलियों को नामावलियां ही समझना चाहिए क्योंकि पौराणिक वंशावली या जिन प्राचीन नामावलीयों के आधार पर बनी हैं उनके कुछ उदाहरण अब तक ब्राह्मण ग्रंथों में पाए जाते हैं।
और वे नाम केवल चक्रवर्ती राजाओं के मिलते हैं। उसमें पूरे वंश का उल्लेख ही नहीं है। इसलिए उनको वंशावली नहीं कह सकते बल्कि जहां- तहां जिस वन्श में जो चक्रवर्ती सम्राट अथवा सार्वभौम राजाओं के मात्र नाम दिए हुए हैं इसलिए नामावली कहेंगे। यह सभी नाम महाभारत से उस पार के हैं दूसरा विभाग जो महाभारत से इस पार का है उसमें चार वंशावली बृहद्रथ वंश से आरंभ होकर नन्द वंश तक की हैं। महर्षि दयानंद ने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में महाभारत के पश्चात हुए आर्य राजाओं के नाम वंश क्रम में दिए हैं,जो ठीक हैं। सेस और वंशावलियां ही हैं। परंतु वेदों का समय उनसे अथवा आर्यों के किसी वंशावली से नहीं निकल सकता। चाहे वह महाभारत के इस पार की हों या उस पार की। इसका शुद्ध कारण यह है कि वेदों में इतिहास से संबंध रखने वाली कुछ भी सामग्री नहीं है।

परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि वेदों में जो ऐतिहासिक सामग्री दिखती है उस ऐतिहासिक सामग्री का कारण भी पुराण हीं हैं।जिस प्रकार नामावलियों को वंशावली बनाकर पुराणों ने आर्यों के इतिहास की दीर्घकालीनता में संदेह उत्पन्न करा दिया है उसी प्रकार वेदों के चमत्कारपूर्ण अलंकारिक वर्णनों को ऐतिहासिक पुरुषों के साथ मिलाकर वेदों में इतिहास का भी भ्रम उत्पन्न करा दिया है ।पुराण कारों ने प्रयत्न तो यह किया था कि वेदों के चमत्कार पूर्ण वर्णन को ऐतिहासिक घटनाओं के साथ मिलाकर उनका रहस्य जनता तक भी पहुंचा दिया जाए जो वेदों की सूक्ष्म बातें नहीं समझ सकती।
“भारतव्यपदेशेन ह्याम्नायारथश्च दर्शित:”
(श्रीमद्भगवत एक / चार /29)

इसका अर्थ है की पुराणों में भी भारत के इतिहास के विषय से वेदों का रहस्य खोला गया है। इसके कारण ही महाभारत में भी यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इतिहासपुराणाभ्याम वेदम समुपन्बृहयेत अर्थात इतिहास पुराणों में वेदों के मर्म का उद्घाटन करें। परंतु इस चातुर्य का फल यह हुआ कि लोग वेदों में ही पौराणिक इतिहास निकाल रहे हैं।
वे कहते हैं कि वेदों में पुरुरवा, आयु, नहुष, ययाति, वशिष्ठ, जमदग्नि, गंगा ,जमुना, अयोध अयोध्या, ब्रज और अरव आदि नाम है। इतना ही नहीं प्रत्युत वेदों में राजाओं के युद्ध का वर्णन भी बताते हैं । इससे सिद्ध होता है कि वेदों की यह ऐतिहासिक सामग्री वही है जिसका विस्तार पुराणों में किया गया है । परंतु पुराण कारों ने जो प्रयास किया था वह समाज के लिए उल्टा पड़ा और इससे समाज में केवल भ्रांतियां ही पैदा हुईं। इसलिए वेदों में इतिहास होने के इस आरोप में कुछ भी बल नहीं है। इससे वेदों में इतिहास सिद्ध नहीं होगा। इसका कारण यह है कि वेदों, ब्राह्मणों और पुराणों के सूक्ष्म अवलोकन से ज्ञात होता है कि संस्कृत के समस्त साहित्य में इतिहास से संबंध रखने वाले असंभव, संभवासंभव और संभव तीन प्रकार के वर्णन पाए जाते हैं। जो तीन भागों में विभाजित हैं। इसमें जितना भाग असंभव वर्णन से संबंध है वह वेद का है । और किसी न किसी चमत्कारिक अथवा जातिवाचक पदार्थ से संबंध रखता है ।किसी मनुष्य नगर, नदी और देश आदि व्यक्तिवाचक पदार्थ से नहीं ।परंतु जितना भाग संभवासंभव और संभव वर्णन से संबंध रखता है वह पुराण और ब्राह्मण ग्रंथों में ही आता है वेदों में नहीं।
उदाहरण के तौर पर कल्पना करो कि वेद ने किसी पदार्थ के लिए कोई चमत्कारिक वर्णन किया ।उधर ब्राह्मण काल में उसी नाम का कोई मनुष्य हुआ ।जिसका चरित्र साधारण मानुषी था ।अब कुछ काल बीतने पर किसी कवि ने पुराण काल में कल्पना की और कल्पना में दोनों प्रकार के वर्णन मिला दिए ।जो आगे चलकर यह सिद्ध करने की सामग्री बन गए कि दोनों एक ही है। ऐसी दशा में यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि कितना भाग ऐतिहासिक है और कितना आलंकारिक।
संस्कृत साहित्य में इस विषय के अनेक प्रमाण विद्यमान हैं। विश्वामित्र और मेनका वेद के चमत्कारिक पदार्थ हैं ।इधर दुष्यंत और शकुंतला मनुष्य हैं ।परंतु दोनों को एक में मिलाने से भरत को इंद्र के यहां जाना पड़ा। इंद्र भी चमत्कारिक पदार्थ है ।ऐसी दशा में भरत और दुष्यंत को मेनका और विश्वामित्र के साथ जोड़कर यही तो भ्रम करा दिया गया है कि वेदों में भरत के पूर्वजों का वर्णन है। परंतु यदि वेदों को खोलकर विश्वामित्र मेनका वाले मंत्रों को पढ़िए तो उसमें मानुषी वर्णन लेश मात्र भी नहीं मिलेगा। तो इंद्र के यहां जाने वाले वैदिक भरत का इस अलौकिक भरत से कोई संबंध न दिखेगा।
शांतनु की शादी गंगा से हुई ।इधर शांतनु के भीष्म हुए ।इनमें से पहला वर्णन वैदिक है। जो चमत्कारिक पदार्थों का है। जबकि दूसरा ऐतिहासिक है। किंतु एक में जोड़ देने से परिणाम यह हुआ है कि लोग भीष्म को गंगा नदी का पुत्र समझते हैं ।गंगा और शांतनु को मिलाकर वैदिक अलंकार बनता है। और सीधे-साधे शांतनु और सीधे-साधे भीष्म को लेकर सांसारिक इतिहास बनता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस दूसरे समुदाय का वर्णन बहुत ही ध्यानपूर्वक पढ़कर कहने योग्य है। हिंदुओं का चाहे जो इतिहास वेद में बतलाया जाए उसे देख लेना चाहिए कि उसमें कहीं चमत्कारी वर्णन तो नहीं है ।ऐसा करने से उसमें अपूर्वता मिलेगी और वह अमानुषी अथवा अपौरुषेय सिद्ध होगा।

यह भ्रांति अथवा गलती कहां से शुरू हुई?

परंतु मध्यम कालीन कवियों और पुराणकारों ने वैदिक और ऐतिहासिक समान शब्दों के वर्ण व्यक्तियों का सम्मिलित वर्णन करके महान झंझट फैला दिया है। इसी से पूर्व पुरुषों की चमत्कारिक उत्पत्तियों के गुणों का क्रम चल पड़ा और यहीं से वेदों में ऐतिहासिक घटनाओं की मिथ्या भ्रांति होने लगी।
कहने का निष्कर्ष यह है कि प्रथम विभाग वाले चमत्कारिक वर्णन वेदों के हैं। और दूसरे विभाग के वर्णन का कुछ भाग वेदों का है और कुछ उस नाम के व्यक्तियों के इतिहासों का है ।जिससे आधुनिक कवियों ने एक में मिला दिया है। अतः संभव और असंभव की कसौटी से दोनों को पृथक
करके विभेद कर लेना चाहिए। निस्संदेह रूप से शेष तीसरे विभाग के व्यक्ति तो ऐतिहासिक है ही। इस प्रकार की छानबीन से वेदों में इतिहास का भ्रम निकल जाएगा।

वेदों की अलंकारिक भाषा का अनुचित अध्ययन, अनुशीलन, परिशीलन एवं विश्लेषण।

राजाओं और नदियों आदि के वर्णन जो वेद में आए हैं वह सभी अलंकारिक हैं।
यथा वेदों में अनार्यों में वृत्र ,दनु ,सुश्न, शम्बर, बंगृद, बली, नमुचि, मृगय, अर्बुद प्रधान रूप से लिखे गए हैं। दनु के वंशीधर दानव थे जिनका कई स्थानों में वर्णन है । यह दोनों वृत्रासुर की माता थी। व्रतृ के 99 किले इंद्र ने तोड़े थे। 99 और 100 वृत्रों का कई स्थानों पर वर्णन आया है ।शम्बर और बंगृद के सौ किले ध्वस्त किए गए। शम्बर के किले पहाड़ी थे। और दिवोदास के कारण इंद्र ने उसे मारा था। दिवोदास सुदास के पिता थे ।इससे शम्बर का युद्ध 26 वीं शताब्दी संवत पूर्व का समझ पड़ता है। सुश्न का चलने वाला किला ध्वस्त हुआ। चलने वाले किले से जहाज का प्रयोजन समझ पड़ता है। पिप्र के 50,000 सहायक मारे गए। बली के 99 पहाड़ी किले थे। यह सभी जीते गए। सिवाय शम्बर के और सब का पूर्वापर क्रम ज्ञात नहीं है।
अनार्य के बाद आर्यों के नामों पर विचार करते हैं। जो वेदों में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। आर्यों में ऋषियों के अतिरिक्त मनु ,नहुष, ययाति, इला, पुरुरवा, दिवोदास, मांधाता, दधीच, सुदाश, ययाति के यदु आदि पांचों पुत्र और पृथु की प्रधानता है।यदु जाति के यदु आदि पांचों पुत्रों के वर्णन कई स्थानों पर आए हैं। दिवोदास और सुदाश के सबसे अच्छे क्रमबद्ध वर्णन है। इस विषय में वशिष्ठ का सातवां मंडल बहुत उपयोगी है। इसके पीछे विश्वामित्र का तीसरा मंडल भी अच्छी घटनाओं से पूर्ण है ।दिवोदास तृत्सु लोगों के स्वामी थे। वैदिक समय में सूर्यवंशियों की संज्ञा तृत्सु थी ।ऐसा समझ पड़ता है। सुदास और उनके पुत्र कलमाषदास सूर्यवंशी थे। और पुराणों के अनुसार भगवान रामचंद्र का अवतार इन्हीं के पवित्र वंश में हुआ था। यही लोग वेद में तत्सु कहे गए हैं ।इन्हीं बातों से जान पड़ता है कि सूर्यवंशी उस काल में तत्सु कहलाए थे।

एक कहानी के अनुसार वेदों में निम्न प्रकार भी आया, जिसको भ्रमवश, अज्ञानतावश इतिहास समझा गया है। उदाहरण के लिए देखें।

“राजा दिवोदास बहुत बड़े विजयी थे। इन्होंने तुर्वश,द्रहृयु और शम्बर को मारा और गंग लोगों को भी पराजित किया। नहुषवन्शी इनको कर देने लगे थे। इनके पुत्र सुदाष ने इनकी विजयों को और भी बढ़ाया। सुदास का युद्ध वैदिक युद्दों में सबसे बड़ा है। नहुषवन्शी यदु ,तुर्वश, अनु,दृहृयु के संतानों ने भारतों से मिलकर तथा बहुत से अनार्य राजाओं की सहायता लेकर सुदास को हराना चाहा। नहुषवन्शियों की सहायतार्थ भार्गव लोग परोदास, पकथ, भलान, अलिन ,शिव, विशात,कवम, युद्धामधि, अज, शिगरु और चक्षु आए और 21 जाति के वैकरण लोग भी पहुंचे। राजा वर्चिन एक बहुत बड़ी सेना लेकर इन का नेता हुआ। कितने ही सिम्यु लोग भी नहुषों की सहायतार्थ आए ।फिर भी नहुष वंश का मुख्य राजा पूरुवंशी इस युद्ध में सम्मिलित न हुआ ।नहुषों ने रावी नदी के दो टुकड़े करके एक नहर निकालकर नदी को पार करना चाहा ।किंतु सुदास ने तत्काल धावा बोल दिया ।जिससे गड़बड़ में नहुषों की बहुत सी सेना नदी में डूब मरी। कवष और बहुत से दृहृयुवंशी डूब गए ।वहां विकराल युद्ध हुआ। जिसमें सुदास ने अपने सारे शत्रुओं को पूर्ण पराजय दी ।अनु और दृहृयु वन्शियों के 66 वीर पुरुष और 6000 सैनिक मारे गए ।और आनवों का सारा सामान लूट लिया गया। जो सुदास ने तृत्सु को दे दिया ।सात किले भी सुदास के हाथ लगे और उन्होंने युद्धामधि को अपने हाथ से मारा। राजा वर्चिन के 100000 सैनिक युद्ध में मारे गए ।अज, शिगरु और चक्षु ने सुदास को कर दिया। इस प्रकार रावी नदी पर यह विकराल युद्ध समाप्त हुआ। सुदास ने तत्पश्चात यमुना नदी के किनारे भेद को पराजित करके उसका देश छीन लिया ।इस प्रकार भेद सुदास की प्रजा हो गया ।आर्यों का नागों से वेद में कोई युद्ध नहीं लिखा गया। केवल एक बार इतना लिखा हुआ है कि पेदु नामक वीर पुरुष के घोड़े ने बहुत से नागों को मारा ।इससे जान पड़ता है कि आर्यों का नागौं से कोई छोटा सा युद्ध हुआ था। विश्वामित्र ने अपने मंडल में भारतीयों का वर्णन बहुत सा किया है। इन लोगों की नहुसों से एकता सी समझ पड़ती है।
वेदों के आधार पर यह संक्षिप्त राजनीतिक इतिहास इसी स्थान पर समाप्त होता है।
यह पुराणकार वेदों से इतना ही इतिहास निकाल पाए। परंतु यह इतिहास किसी और ने नहीं देखा न लिखा। इस युद्ध का वर्णन तथा उपर्युक्त सब वीरों राजाओं और जातियों के नाम पुराणों में नहीं मिलते। किंतु ऋग्वेद के सातवें मंडल में महर्षि ने इसका बड़ा हृदयहारी वर्णन किया है ।
प्रश्न 197
वेदों के ऐतिहासिक पुरुषों का अर्थात नहुष ययाति के स्वर्ग का वर्णन तो पुराणों ने किया। परंतु इस युद्ध का वर्णन क्यों नहीं किया ।वास्तविक बात तो यह है कि पुराण तो मिश्रित इतिहास कहते हैं इसमें तो मिश्रण भी नहीं है ।यह तो कोरे वैदिक अलंकार है। इंद्र, व्रतृ के वर्णन है। एवं तारा तथा ग्रहों के योग हैं ।इन योगों को गृह युद्ध भी कहते हैं।
इन सब वर्णनों से नहीं ज्ञात होता कि यह सब मनुष्य थे। इंद्र ,वृत्र, त्रिशंकु,विश्वामित्र ,पुरुरवा ,उर्वशी, नहुष ययाति, शुक्र और देवयानी आदि सब आकाशीय पदार्थ हैं। जिस दिवोदास को आप शम्बर का मारने वाला कहते हैं वह पृथ्वी का मनुष्य कैसे हो सकता है। शम्बर तो मेघ का नाम है। इसी प्रकार चलने वाला किला भी मेघ है । व्रतृ भी मेघ ही है। इंद्र वृत्र का अलंकार तमाम वेदों में भरा है। इंद्र और वृत्र से संबंध रखने वाला समस्त वर्णन मेघ और विद्युत का है। जो आकाश में चरितार्थ हो सकता है। शेष आयु, नहुष, ययाति आदि का वर्णन वेदों में अन्य पदार्थों से संबंधित है।
इससे सिद्ध हुआ कि वेदों में राजाओं का इतिहास नहीं है। पुरुरवा सूर्य का पर्याय है। उर्वशी उसकी एक किरण है। दोनों अग्नि के रूप में कहे जाते हैं। अग्नि से अग्नि की उत्पत्ति होती है इसलिए आयु भी अग्नि ही है ।अप्सरा भी सूर्य की किरण को कहते हैं। मेनका और अप्सरा सूर्य की किरणें है। नहुष सूर्य के लिए कहते हैं। इन नामों से संबंधित ऋग्वेद में अनेक मंत्र आए हैं्।