शहर-शहर फैल गया है कुकुरमुत्ते-सा, बेसमेंट का काला व्यापार
सुनहरे भविष्य की चाहत में होनहार छात्र हो रहे मौत के शिकार
डॉ. सविता मिश्रा मागधी
दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर स्थित बेसमेंट हादसे ने, वहाँ रहने वाले छात्रों की दुर्दशा पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है। पीजी का धंधा मकड़जाल की तरह हर शहर को अपने शिकंजे में बुरी तरह कसता जा रहा है। पीजी में छोटे-छोटे से रूम, जिसमें दोनों हाथ भी ठीक से नहीं फैलाया जा सकता,उसका किराया दस से बारह हजार वसूला जाता है। अगर सही कहा जाय तो जिस तरह अरब देशों में भारतीय मजदूरों को ठूंस-ठूंस रखा जाता है, उसी तरह वहाँ आए छात्रों को भेड़-बकरी की तरह रहने को मजबूर किया जाता है। सुनहरे भविष्य की चाहत में अपने माँ-बाप की गाढ़ी कमाई पर ये लोग नर्क जैसी यातना सहने को मजबूर हैं। किसी-किसी पीजी में सत्रह-सत्रह लोगों पर बस दो बाथरूम है। जो भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है। इस मामले में दिल्ली और कोटा, दोनों नंबर वन पर हैं। ऊपर कोचिंग चलती है नीचे बेसमेंट में लाइब्रेरी। विदित हो, बेसमेंट का निर्माण गाड़ी पार्किंग या सामान स्टोरेज के लिए होता है। दमघोंटू पीजी में रहने के स्थान पर छात्र, ज्यादा से ज्यादा समय लाइब्रेरी में बिताना पसंद करते हैं। इन बेसमेंट की लाइबेरियों में एक साथ करीब सौ छात्र पढ़ते हैं। जिसके आवा-गमन के द्वार बस एक है और वह भी सकरी सीढ़ियों द्वारा। सीढ़ी के बगल में बिजली के तारों का जाल भी फैला रहता है। बड़े दुख की बात है कि इन पीजी और लाइब्रेरी वालों के पास फायर का एनओसी भी नहीं होता। स्थानीय प्रशासन की मिली भगत के बिना यह संभव नहीं? कोचिंग सेंटर के बाहर खाने-पीने की चीजों से भी डबल पैसे वसूला जाता है। भूखे छात्र मजबूर हैं लुटने को।
इस हादसे के बाद कई कोचिंग सेंटर और लाइब्रेरी को सील कर दिया गया है। पुलिस ने गैर इरादतन, हत्या के आरोपी राव आईएएस कोचिंग के मालिक अभिषेक गुप्ता, कोऑडिनेटर देशपाल सिंह,एसयूवी कार के ड्राइवर सहित कुल सात लोगों को गिरफ्तार किया है। आक्रोशित छात्र सड़क पर उतर आए हैं। प्रश्न यह उठता है कि कोई बड़े हादसे के बाद ही प्रशासन की नींद क्यों खुलती है? समय-समय पर वह सर्वेक्षण क्यों नहीं करती? पिछले वर्ष आगजनी हुई थी, उस समय सर्वेक्षण के वक्त नगर निगम को बेसमेंट की काली सच्चाई क्यों नहीं दिखी? बिल्डिंग बनाते समय नालियों पर कोचिंग सेंटर की नींव रखना, कितनी बड़ी धांधली है। इनका नक्शा पास कैसे हो जाता है? अवैध निर्माणाधिकारियों, इंजीनियरोंऔर एमसीडी की आँखों से काली कमाई की मोटी पट्टी कब खुलेगी?
जाने क्यों प्रशासन जागता नहीं, जबतक न हो कहीं हादसों का कहर.
जबकि समय-समय पर भ्रष्टाचारियों की पोल खोलता रहा, सहमा शहर.