
चौधरी चरण सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता, का संघर्ष मुख्य रूप से किसानों, ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय के लिए केंद्रित था। उनका जीवन और कार्य भारतीय कृषि और किसानों के उत्थान के लिए समर्पित था। निम्नलिखित बिंदुओं में उनके संघर्ष को संक्षेप में समझा जा सकता है:
किसानों के हक की लड़ाई
चौधरी चरण सिंह ने हमेशा किसानों के अधिकारों की वकालत की। वे मानते थे कि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, और किसानों की समृद्धि के बिना देश का विकास संभव नहीं है। उन्होंने जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम (1950) लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भूमिहीन किसानों को जमीन का अधिकार मिला।
ग्रामीण विकास पर जोर
चरण सिंह ने ग्रामीण भारत की समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा और बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने के लिए कई नीतियां बनाईं। उन्होंने छोटे और सीमांत किसानों के लिए सहकारी समितियों और कृषि सुधारों को बढ़ावा दिया। उनकी पुस्तकें, जैसे “India’s Economic Policy: The Gandhian Blueprint” और “Economic Nightmare of India”, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उनके विचारों को दर्शाती हैं।
राजनीतिक संघर्ष
चरण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। वे कांग्रेस पार्टी में रहे, लेकिन किसानों के मुद्दों पर असहमति के कारण 1967 में कांग्रेस छोड़कर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और बाद में भारतीय क्रांति दल की स्थापना की। उनकी नीतियों और सिद्धांतों के कारण उन्हें कई बार राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी वे अपने आदर्शों पर अडिग रहे।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
1979 में वे भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल केवल 24 दिन का रहा, जो उनकी सरकार के अल्पमत में होने के कारण था। इसके बावजूद, उन्होंने किसानों और ग्रामीण विकास के लिए नीतियां लागू करने की कोशिश की।
जाट समुदाय और सामाजिक न्याय
चरण सिंह जाट समुदाय के प्रमुख नेता थे और उन्होंने पिछड़े वर्गों और किसान समुदायों के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय की वकालत की। वे जातिगत भेदभाव को खत्म करने और समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के पक्षधर थे।
वैचारिक दृढ़ता
चरण सिंह का संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी था। वे गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित थे और मानते थे कि भारत का विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने बड़े उद्योगों के बजाय छोटे और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने की बात की।