Author: Saksham Tiwari

  • ‘धमकाना और दबाव डालना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति’, 600 वकीलों की चिट्ठी पर बोले PM मोदी

    ‘धमकाना और दबाव डालना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति’, 600 वकीलों की चिट्ठी पर बोले PM मोदी

    राजनीतिक गहमागहमी के बीच अब न्यायपालिका पर तीखी टिप्पणी होने लगी है। ऐसे में वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा सहित 600 से अधिक वकीलों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिख कर एक खास समूह पर निहित स्वार्थ से न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।पत्र में बिना किसी का नाम लिए कहा कहा गया है कि एक खास समूह राजनीतिक एजेंडा साधने के लिए तुच्छ तर्कों के आधार पर निहित स्वार्थों से न्यायपालिका पर दबाव बनाने, न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने और अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस पत्र को टैग करते हुए कहा- ”धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वह दूसरों से आश्वासन चाहते हैं लेकिन देश के लिए उनकी प्रतिबद्धता नहीं है।” उन्होंने कांग्रेस पर कटाक्ष किया और कहा- ”वह पांच दशक से कमिटेड ज्यूडिशरी की सोच से बाहर नहीं निकल पा रही है। यही कारण है कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें नकार रहे हैं।”यह चिट्ठी सीजेआई को उस समय भेजी गई है जब अदालतें विपक्षी नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के हाई प्रोफाइल मामलों से निपट रही हैं। विपक्षी दल लगातार राजनैतिक प्रतिशोध के चलते उनके नेताओं को निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं। हालांकि, सत्तारूढ़ दल ने आरोपों का खंडन किया है। सीजेआई को भेजे पत्र में वकीलों ने चिंता जताते हुए कहा है कि ये निहित स्वार्थ समूह अदालतों के पुराने तथाकथित सुनहरे युग के गलत नैरेटिव गढ़ते हैं और अदालतों की वर्तमान कार्यवाही पर सवाल उठाते हैं। ये राजनैतिक लाभ के लिए जानबूझकर कोर्ट के फैसलों पर बयान देते हैं।पत्र में आगे लिखा गया है कि ये लोग हमारी अदालतों की तुलना उन देशों से करने के स्तर तक चले गए हैं, जहां कानून का कोई शासन नहीं है। इसका उद्देश्य न्यायपालिका में जनता के भरोसे को नुकसान पहुंचाना और कानून के निष्पक्ष कार्यान्वयन को खतरे में डालना है। ये समूह जिस फैसले से वे सहमत होते हैं उसकी सराहना करते हैं लेकिन जिससे असहमत होते हैं उसे खारिज कर दिया जाता है, बदनाम किया जाता है और उसकी उपेक्षा की जाती है।
    पत्र में आरोप लगाया गया है कि कुछ तत्व अपने मामलों में जजों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहें हैं और उन पर विशेष तरीके से निर्णय देने का दबाव बनाने के लिए सोशल मीडिया पर झूठ फैला रहे हैं। टाइमिंग और मंशा पर सवाल उठाते हुए पत्र में क्लोज स्क्रूटनिंग की जरूरत बताई गई है। कहा गया है कि ये बहुत रणनीतिक ढंग से ये हो रहा है जब देश चुनाव की ओर बढ़ रहा है। पत्र में अनुरोध किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट मजबूती से खड़ा होकर अदालतों की ऐसे हमलों से रक्षा करने के लिए कदम उठाए। कहा गया है कि चुप रहने और कुछ न करने से उन लोगों को और ताकत मिल सकती है जो नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। यह समय चुप्पी बनाए रखने का नहीं है क्योंकि ऐसे प्रयास कुछ वर्षों से हो रहे हैं और बार बार हो रहे हैं। इस कठिन समय में चीफ जस्टिस का नेतृत्व महत्वपूर्ण है।

  • अरविंद की गिरफ्तारी पर Atishi और AAP कैंप का हल्ला बोल

    अरविंद की गिरफ्तारी पर Atishi और AAP कैंप का हल्ला बोल

    अरविन्द केजरीवाल के गिरफ़्तारी के बाद से माहौल बदलने लगा था। जिसके बाद उनके पार्टी कार्यालय और घर पर भीड़ लगना चालू हो गया था। उनके
    सभी समर्थको के साथ उनके काफी मंत्री भी विरोध प्रदर्शन कर रहे थे जिसमे उनका प्लान बीजेपी कार्यालय को घेराव करने का भी था जिसमे पुलिस ने उनके सभी कार्येकर्ता को बस में बैठा कर गिरफ्तार कर रहे थे और धारा 144 भी लागू कर दी थी जिसमे उनके पार्टी के कुछ मंत्री को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। जिसके बाद दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा​ कि दिल्ली आबकारी नीति मामले में ईडी ने एक भी सबूत अभी तक पेश नहीं किया. जिस शरत के बयान पर सीएम अरविंद केजरीवाल की ईडी ने गिरफ्तारी की, उसने बीजेपी को चंदे दिए. सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर आतिशी का दावा है कि केवल एक व्यक्ति अरविंदों फार्मा के शरत के कहने पर दिल्ली के सीएम को गिरफ्तार किया गया.इससे पहले शुक्रवार को मंत्री आतिशी ने सीएम अरविंद केजरीवाल की ईडी गिरफ्तारी के बाद कहा था कि, “दिल्ली सरकार पहले भी चल रही थी, और चलती रहेगी. अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सीएम थे, दिल्ली के सीएम हैं और दिल्ली के सीएम रहेंगे. किसी भी संवैधानिक प्रावधान के लिए उन्हें इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है. पूरा मंत्रिमंडल बरकरार है. प्रत्येक विभाग बरकरार है. आप सरकार कुशलतापूर्वक काम कर रही है.” दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की गिरफ्तारी के खिलाफ आम आदमी पार्टी (AAP) का विरोध प्रदर्शन दिल्ली में दूसरे दिन भी जारी है वही उनके मंत्री सौरभ भारद्वाज ने शनिवार को बीजेपी पर अरविंदो फार्मा और उसकी सहायक कंपनी से 55 करोड़ रुपये चंदा लेने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जब तक उन्होंने चंदा नहीं दिए, तब तक ईडी ने उन्हें जेल में रखा. चंदा देते ही शरत चंद्र को पहले जमानत मिली और उसके बाद वो सरकारी गवाह बन गया. उसी के बयान के आधार पर ईडी ने सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की है. इसका पर्दाफाश 21 मार्च को हो गया. और बात करे तोदिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ आम आदमी पार्टी का विरोध प्रदर्शन दूसरे दिन भी जारी है. शनिवार को भी शहीद पार्क में आप के नेता और कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे और बीजेपी के शीर्ष नेताओं का पुतला जलाएंगे. दिल्ली आबकारी नीति मामले में ईडी की ओर से नौ समन जारी होने के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल का पूछताछ में शामिल न होने के बाद जांच एजेंसी ने गुरुवार देर शाम को उनके आवास पर 10वां समन लेकर पहुंची. ईडी ने सीएम से कई घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया और ईडी मुख्यालय ले आई. शुक्रवार को ईडी ने दिल्ली के सीएम को राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया.

  • झारखंड में कमल खिलाने की तैयारी में BJP, ऑपरेशन लोटस के ट्रेलर से पूरी फिल्म का अंदाज

    झारखंड में कमल खिलाने की तैयारी में BJP, ऑपरेशन लोटस के ट्रेलर से पूरी फिल्म का अंदाज

    जब भी कोई चुनाव आता है तो नेताओं के इधर से उधर आने-जाने की गति तेज हो जाती है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले से ही इस बार भी यह सिलसिला शुरू हो गया है। दनादन नेता पार्टियां बदल रहे हैं। यह अलग बात है कि इसमें सर्वाधिक नुकसान अभी तक कांग्रेस को ही हुआ है। महाराष्ट्र, राजस्थान से लेकर बिहार, झारखंड तक यह सिलसिला चल रहा है। बिहार में बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे आरजेडी विधायक चेतन आनंद के साथ एक ही दिन आरजेडी के तीन विधायकों ने खेमा बदला तो अब दो दिन पहले चेतन आनंद की मां लवली आनंद ने भी पाला बदल लिया है। बिहार में कांग्रेस के भी तीन विधायकों ने सत्तारूढ़ खेमे में रहना पसंद किया है। रही बात झारखंड की तो यहां भी आपरेशन लोटस शुरू हो चुका है। पहले पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने पाला बदल लिया तो अब सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की जामा से विधायक सीता सोरेन ने कुछ ही घंटों के अंतराल में मंगलवार को पार्टी के सभी पदों और विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। रही बात झारखंड की तो यहां भी आपरेशन लोटस शुरू हो चुका है। पहले पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने पाला बदल लिया तो अब सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की जामा से विधायक सीता सोरेन ने कुछ ही घंटों के अंतराल में मंगलवार को पार्टी के सभी पदों और विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। वहीं बात करे सीता सोरेन का पाला बदलना झारखंड की राजनीति में कोई सामान्य घटना नहीं है। पार्टी से उनकी नाराजगी की खबरें लगातार आती रही हैं। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सांसद शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं। उनके पति दुर्गा सोरेन की झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही है। जामा से लगातार तीसरी बार विधायक चुनी गईं सीता सोरेन की पीड़ा यह है कि पार्टी ने लगातार उनकी उपेक्षा की। हेमंत सोरेन 2019 में सीएम बने तो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। उसके बाद से ही सीता का मन पार्टी से उचट गया था। अपनी ही सरकार के खिलाफ वे समय-समय पर बोलती रहीं। मनी लांड्रिंग में हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जेएमएम ने पूरी कोशिश की कि उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बना दिया जाए। इसके लिए गांडेय के विधायक ने इस्तीफा देकर सीट भी खाली कर दी। कल्पना सोरेन को सीएम बनाए जाने की चर्चा के बीच सीता सोरेन ने भी दावेदारी ठोंक दी थी। तब उन्होंने कहा था कि परिवार की बड़ी बहू होने के नाते सीएम बनने का पहला हक उनका ही है। वैसे पार्टी में दूसरे सीनियर लीडर भी हैं, जिन्हें सीएम बनाया जा सकता है। आखिरकार कल्पना सीएम की कुर्सी पर बैठने से वंचित रह गईं और चंपई सोरेन सीएम बन गए। विश्वासमत के दौरान ही पार्टी के विक्षुब्ध नेताओं के बगावत की खबरें थीं, लेकिन चंपई सोरेन का चेहरा सामने आने पर मामला तब ठंडे बस्ते में चला गया था। अब चूंकि लोकसभा का चुनाव सिर पर है और कुछ ही महीनों बाद इसी साल झारखंड विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, इसलिए भाजपा ने जेएमएम और कांग्रेस के नेताओं को पार्टी छोड़ कर आने की हरी झंडी दे दी है। एक तरफ जेएमएम में सीता सोरेन ही नहीं, बल्कि कई और विधायक भी नाराज हैं। वहीं लोबिन हेम्ब्रम, चमरा लिंडा जैसे चार-पांच नाम तो घोषित तौर पर गिनाए जा सकते हैं। सीता सोरेन के पाला बदलने से उन्हें भी जरूर हिम्मत बंधी होगी। वे भी पाला बदल की कड़ी को आगे बढ़ाने में शामिल हो जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। किसी को मंत्री पद नहीं मिलने से नाराजगी है तो कोई पार्टी के इर्द-गिर्द स्वार्थी लोगों के जुट जाने से नाराज है। लोबिन हेम्ब्रम की पीड़ा तो यह है कि पार्टी में उनकी कोई बात ही नहीं सुनी जाती। विधानसभा में भी उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जाता। इसलिए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जेएमएम में बगावत का सिलसिला और तेज होगा। झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी को लेकर बने गठबंधन की सरकार है। कांग्रेस में भी नाराजगी कम नहीं है। हाल ही में चंपई सोरेन के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कांग्रेज के दर्जन भर विधायक अपनी शिकायतें लेकर पार्टी आलाकमान के पास पहुंचे थे। आलाकमान के आश्वासन से वे कितने संतुष्ट हुए, यह तो नहीं मालूम, लेकिन उनकी मांगों पर अब तक कोई सकारात्मक पहल कांग्रेस ने नहीं की है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व और उसके कोटे से बने मंत्रियों को लेकर कांग्रेस नेताओं में नाराजगी है। पाला बदल का सिलसिला अगर जोर पकड़ता है तो कांग्रेस के कई विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं। भाजपा ने धनबाद और चतरा की लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर यह सस्पेंस बना दिया है कि लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक सत्ताधारी गठबंधन के विधायक अगर आते हैं तो उन्हें एकोमोडेट किया जा सकता है। इस बार बात करे भाजपा के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती एनडीए के सहयोगी दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर थी। इसमें बिहार का पेंच सुलझाना सबसे कठिन काम था। अब यह भी सुलझ गया है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भाजपा का फोकस अब झारखंड पर होगा। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। इनमें 12 पर भाजपा और उसके सहयोगी दल आजसू का कब्जा है। जिन दो सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम के उम्मीदवार जीते थे, उनमें कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा को भाजपा ने पहले ही अपने पाले में कर लिया है। सिर्फ राजमहल की सीट पर अभी जेएमएम के इकलौते सांसद विजय हांसदा हैं। भाजपा ने इस बार सभी सीटों पर फतह की योजना बनाई है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा कामयाब हो जाए, इसकी तैयारी भी साथ ही चल रही है। रघुवर दास की सरकार जाने के बाद भाजपा को इस बात का मलाल है कि उसे जीती बाजी हारनी पड़ी। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार पुख्ता तैयारी की है। सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने से यह मैसेज चला गया है कि अब जेएमएम शिबू सोरेन के नियंत्रण वाली पार्टी नहीं रही। पारिवारिक कलह बढ़ रहा है। आने वाले समय में जेएमएम में यह कलह और बढ़ने की आशंका है।

  • भाजपा के मजबूत किले में क्या होगी सेंधमारी?

    भाजपा के मजबूत किले में क्या होगी सेंधमारी?

    बात करे पीलीभीत विधानसभा कि तो 1980 में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी जनता पार्टी की सरकार के बाद देश ने दोबारा कांग्रेस को सत्ता दे दी थी । इसके बाद अगला चुनाव जब हुआ तब देश के पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शोक की लहर में डूबा हुआ था। ये दोनों चुनाव कांग्रेस की राजनीति के बेहद अहम पड़ावों में से हैं। ये दोनों चुनाव और उसके बाद की तस्वीर कांग्रेस के लिए देश और यूपी की राजनीति में बिल्कुल अलग हो जाती है। उत्तर प्रदेश की तमाम सीटें, जिन्हें कांग्रेस ने आखिरी बार 1984 में जीती थी, उनमें से एक है पीलीभीत। इस सीट पर बीते तीन दशकों से मां और बेटे का ही जादू जनता के सिर चढ़कर बोल रहा है। हालांकि इस चुनाव में क्या होगा, इसको लेकर काफी उहापोह है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के इस मजबूत किले में सेंधमारी होगी?मौत से पहले इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी माने जाने वाले उनके बेटे संजय की पत्नी मेनका गांधी ने जब इंदिरा की मौत के बाद राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने अपने पति की सीट चुनी थी, अमेठी। साल था 1984। संजय के बड़े भाई, यानी राजीव गांधी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। मेनका “निर्दलीय उम्मीदवार थीं। 1984 के चुनावों में कई दिग्गजों के साथ जो हुआ, मेनका उससे अछूती नहीं थीं। वह चुनाव हार गईं। इसके बाद उन्होंने राजनीति के लिए अपना नया ठिकाना बनाया पीलीभीत को। वह 1989 के लोकसभा चुनावों में जनता दल के टिकट पर यहां से अपनी किस्मत आजमाने आईं।मेनका गांधी को जनता ने चुनकर पहली बार लोकसभा भेजा। 1991 में वह इस सीट से भाजपा उम्मीदवार से चुनाव हारीं लेकिन इसके बाद इसे अपने और अपने बेटे के लिए अभेद्य किले में तब्दील कर दिया। 1996 में वह जनता दल के टिकट पर जीतीं और फिर 1998 और 1999 के चुनावों में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर। 1996 से लेकर अबतक सात चुनावों में इस सीट पर मां और बेटे वरुण का ही कब्जा रहा है। फिलहाल वरुण इस सीट से सांसद हैं। लेकिन इस बार तस्वीर बदलते हुई नज़र आ रही है ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी इस बार पीलीभीत में कुछ बड़ा खेला कर सकती है और वरुण गांधी का टिकट काट सकती है पर इसका परिणाम बीजेपी वालों को देखना पड़ सकता है क्योंकी पिछले काफी समय से इस सीट पर वरुण गाँधी और उनकी माँ से यहां के लोगों से उनका जुड़ाव भी देखने को मिला है जिसकी वजह से बीजेपी को बड़ा नुक्सान देखना पड़ सकता है और ऐसी उम्मीद भी कि जा रही थी कि वरुण गांधी को सपा से टिकट मिल सकता है पर उस पर भी विराम लग गया। अब देखना ये होगा कि आने वाले समय में क्या फैसला होगा।

  • लिस्ट में नाम होकर भी नहीं ली मंत्रिपद की शपथ, आखिर क्यों नाराज हैं अनिल विज?

    लिस्ट में नाम होकर भी नहीं ली मंत्रिपद की शपथ, आखिर क्यों नाराज हैं अनिल विज?

    हरियाणा बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज अपनी ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं। हरियाणा की नई सरकार की गठन प्रक्रिया के दौरान उन्होंने जिस प्रकार नाराजगी व्यक्त की है उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हैं। विज ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार किया था और वो वहां से निकल कर सीधे अंबाला पहुंच गए थे। अब अगले कदम को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। उनका अगला कदम क्या होगा, इस पर उनके समर्थकों की ही नहीं, बल्कि विरोधियों की भी निगाहें टिकी हुई है। अनिल विज की यह नाराजगी इसिलए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और बीजेपी नेताओं को भय है कि इन चुनावों में विज उनके लिए कोई बड़ी मुसीबत खड़ी न कर दें। अपने बयानों के लिए अकसर चर्चा में रहने वाले विज ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान निर्दलीय विधायक के तौर पर कई सरकारें देखी हैं, लेकिन वो किसी भी सरकार में शामिल होने से परहेज करते रहे। उन्होंने हमेशा कहा है कि उनकी इच्छा सत्ता नहीं अंबाला छावनी का विकास है। 2014 में जब हरियाणा में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव जीता था तो कयास लगाए जा रहे थे अनिल विज को सीएम बनाया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। विज को स्वास्थ्य मंत्रालय और खेल मंत्री का पद मिला था। 2019 में उन्हें हरियाणा का गृह मंत्री बनाया गया। इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय भी उनके पास था। इस दौरान वो अपने दबंग फैसलों के लिए चर्चा में रहे। उनके समर्थक हमेशा उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग भी करते रहते हैं। लेकिन उनकी बेबाकी की वजह से बीजेपी उन्हें सीएम पद देने से बचती रही।
    मंगलवार को जब मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दिया तो अनिल विज के समर्थकों को आस थी कि उन्हें सीएम बनाया जा सकता है। लेकिन एक बार फिर से ऐसा नहीं हुआ। जैसे ही नायब सैनी के नाम का ऐलान हुआ, विज बैठक से निकल गए। उन्होंने सरकारी गाड़ी वहीं छोड़ी और प्राइवेट गाड़ी में सवार होकर अंबाला पहुंचे। जब से विज ने बैठक का बहिष्कार किया है, उसी समय से उनके कदम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन अनिल विज ने कह दिया है कि वो बुधवार यानि आज होने वाले विधानसभा सत्र में हिस्सा लेंगे।

  • चुनाव से पहले किसने, किस पार्टी को दिया कितना चंदा क्यों नहीं जान पा रहे मतदाता ?

    चुनाव से पहले किसने, किस पार्टी को दिया कितना चंदा क्यों नहीं जान पा रहे मतदाता ?

    सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक याचिका दायर की है। इस याचिका में बैंक ने कोर्ट से गुहार लगाई है कि उसे बॉण्ड के जरिए किस पार्टी को किससे, कितना चंदा मिला है, इसकी जानकारी सार्वजनिक करने की मियाद बढ़ा दी जाए। जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करते हुए एसबीआई को आदेश दिया था कि वो बॉण्ड के डीटेल अपनी वेबसाइट पर डाले। अब एसबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई है कि उसे 30 जून तक का वक्त दिया जाए। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 6 मार्च तक ही सारे डीटेल चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया था। मियाद पूरी होने के बाद कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उससे एसबीआई पर अदालत की मानहानि का मुकदमा चलाने की मांग की। जिसके बाद अब प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ अलग से इस याचिका पर सुनवाई करेगी। इस में साफ तौर पर देखा जा सकता है याचिका में आरोप लगया गया है कि एसबीआई ने शीर्ष अदालत के आदेश की जानबूझकर अवहेलना की है। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग को डीटेल सौंपने के आदेश की अवहेलना करने के लिए एसबीआई को दंडित किया जाना चाहिए। आइए इस मामले की एक-एक महत्वपूर्ण बात जान लेते हैं। साथ ही साथ अदालत ने इसे ‘असंवैधानिक’ करार दिया और चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर सारे डीटेल डालने का ऑर्डर दिया था। इसमें एसबीआई को बताना है कि किसने, किसे पार्टी को, कब और कितना चंदा दिया है।

  • सीटों के बटवारे में फँसे पेच को  ठीक करने जा रहे है अमित शाह !

    सीटों के बटवारे में फँसे पेच को ठीक करने जा रहे है अमित शाह !

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज (शनिवार) को पटना पहुंच रहे हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा में अब हफ्ते-दस दिन का वक्त बचा है। जाहिर है कि अमित शाह अपने बिहार दौरे में भाजपा और एनडीए के नेताओं से लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा करेंगे। हालांकि उनके आगमन का मूल मकसद पटना जिले के पाली में आयोजित ओबीसी मोर्चा का सम्मेलन है। वैसे तो भाजपा ने हिन्दुत्ल के हथियार से जातीय उभार को रोकने की अलग चाल चली है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे सूबों में जातीय आधार पर चुनाव कड़वी सच्चाई है। इसलिए भाजपा इसे भी साधने की कोशिश कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी पूरी तरीके से चारों ओर बिसात बिछाने में लगी हुई है। साथ ही साथ बिहार में महागठबंधन में रहते नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत गणना का काम कराया था। इसमें बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक पाई गई है। जिसमें जातिगत गणना में एक सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा ओबीसी का उभर कर सामने आया है, जिसे आधार बना कर नीतीश सरकार ने आरक्षण का दायरा 50 से बढ़ा कर 75 प्रतिशत कर दिया। वहीं बात करे बिहार में ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत (27% पिछड़ा वर्ग, 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग) है। नीतीश के इस कदम को राजनीति में मास्टर स्ट्रोक माना गया था। पर आजादी के बाद पहली बार जातिगत सर्वेक्षण का काम किसी सरकार ने कराया है। केंद्र सरकार ने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिए थे। कुछ राज्य सरकारों ने कराया भी तो उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए। नीतीश ने अपने बूते यह काम कर दिखाया। वहीं इस पर नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण का काम तो कराया, लेकिन भाजपा ने सर्वेक्षण के आंकड़ों पर अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। सबसे पहले भाजपा ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर ओबीसी समुदायय को यह संदेश देने की कोशिश की कि ओबीसी में बड़ी आबादी यादव (बिहार में 14 प्रतिशत) समाज को वह कैसे तरजीह देती है। और बात करे यादवों की आबादी कि तो यूपी बिहार के अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी खासा प्रभाव रखती है। अकेले बिहार और यूपी में ही लोकसभा की 120 ऐसी सीटें हैं, जहां ओबीसी वोटर निर्णायक हैं। जिसको देखते हुए मध्य प्रदेश और हरियाणा में ओबीसी के प्रभाव वाली सीटों को जोड़ दें तो यह संख्या 159 हो जाती है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन 19 सीटों में 118 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

  • पार्टी को बचाने के लिए क्या नवीन हो रहे बीजेपी में शामिल ?

    पार्टी को बचाने के लिए क्या नवीन हो रहे बीजेपी में शामिल ?

    लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और एनडीए को कुनबा बढ़ाने में जुटी है। इस बीच ओडिशा सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी भाजपा के संग जुड़ने की खबरें चल रही है। एनडीए गठबंधन के 400 से ज़्यादा पर सीटों का टारगेट को लेकर भाजपा ये गठबंधन कर रही है। लेकिन एक सवाल जो सबके मन में खटक रहा है वो कि आखिर नवीन पटनायक भाजपा के साथ जाने के लिए क्यों आगे जाने को तैयार है जबकि दो दशक से ज्यादा से समय से वह ओडिशा के सीएम है और लोकसभा में भी वह राज्य में सबसे ज्यादा सीटे जीत रहे है। ऐसे में यह खबरें भी सामने आ रही है की बीजेडी के कुछ सीनियर नेताओं का कहना है कि
    15 साल के बाद भाजपा के साथ आने में यह भी एक मुख्य वजह है कि नवीन पटनायक अपने उत्तराधिकारी के प्लानिंग में लगे हुए है। बात करे नवीन पटनायक
    कि भले हि बीजेडी के प्रमुख नेता बने हुए है। लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए वो इस प्लानिंग में लग गए है। पिछले कुछ समय में बीजेडी के काफी विधयकों ने पार्टी को छोड़कर बीजेपी का दामन थम लिया है। दरअसल पिछले’काफी समय से नवीन पटनायक काफी सांसद और विधयाक के टिकट काटने की योजना में है वह अब नए चेहरे को शामिल करना चाहते है इसके चलते नेताओ में बेचैनी है इस दौरान उनकी पार्टी चर्चा में है कि वह अपनी पार्टी से अब नए
    उत्तराधिकारी के लिए के वी पांडियन का नाम चल रहा है। जो कि एक नौकरशाह थे फिलहाल वह सीएम की ओर से पूरे प्रदेश में दौरे कर रहे है और अहम फैसले भी ले रहे है। जिसकी वजह से इनकी पार्टी की काफी नेताओं ने बीजेपी में अपना दामन देखना चालू कर दिया है। इस पूरे खेल को देखते हुए उन्होंने बीजेपी के साथ जाने का फैसला लिया है’ उनका ऐसा मानना है की ऐसे करने से बागी नेता क्या करेंगे। इस फैसले से दोनों पार्टी में स्थिरता भी रहेगी और केंद्र में अच्छे रिश्ते भी बने रहेंगे। आने वाले समय में लोकसभा चुनाव में इसका कितना असर होगा ये तो देखने लायक रहेगा ,

  • “कैसे प्रकट हुए थे भगवान सूर्य देव”

    “कैसे प्रकट हुए थे भगवान सूर्य देव”

    हिंदू धर्म में सूरज को देवता का रूप माना जाता है। भगवान सूर्य देव की वजह से ही पृथ्वी प्रकाशवान है. मान्यता है कि सूर्य देव की नियमित पूजा करने से तेज और सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है. ज्योतिषियों के अनुसार, नवग्रहों में से सूर्य को राजा का पद प्राप्त है. विज्ञान में भी बताया जाता है कि बिना सूर्य के पृथ्वी पर जीवन असंभव है, इसलिए वेदों में इसे जगत की आत्मा भी कहा जाता है. लेकिन, भगवान सूर्य देव की उत्पत्ति कैसे हुई, यह सवाल सबके मन में आता है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार भगवान सूर्य देव के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि और मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ था. अदिति इस बात से दुखी थी कि दैत्य और देवताओं में आपसी लड़ाई होती रहती थी. तब अदिति ने सूर्य देव की उपासना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पुत्र के रूप में जन्म लेने का वर दिया. कुछ समय बाद अदिति को गर्भधारण हुआ. जिसके बाद भी उन्होंने कठोर उपवास नहीं छोड़ा.

  • 3 मार्च तक हो सकता है योगी कैबिनेट का विस्‍तार, OP राजभर का इंतजार होगा खत्‍म!

    3 मार्च तक हो सकता है योगी कैबिनेट का विस्‍तार, OP राजभर का इंतजार होगा खत्‍म!

    काफी दिनों से चल रही अटकलें के बीच योगी आदित्‍यनाथ मंत्रिमंडल के विस्‍तार की खबरें चल रही है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले कुछ नए चेहरे शामिल हो सकते है 3 मार्च तक ऐसा माना जा रहा है कि कई बड़े मंत्री का नाम लिस्ट में हो सकता है। जिसमे प्रमुख रूप से देखा जाए तो ओपी राजभर , दारा सिंह चौहान सहित राष्‍ट्रीय लोकदल के एक विधायक को मंत्री बनाया जा सकता है। वहीं बात करे तो बीजेपी भी अपनी पार्टी से एक दो नए चेहरे को मौका दे सकती है। ऐसे स्तिथि में कुछ भी बड़ा बदलाव हो सकता है। बात करे तो ओपी राजभर इस समय सबसे ज़्यदा एक्टिव दिखाई दे रहे है।
    उन्होंने लखनऊ से बाहर के अपने सभी कार्यक्रमों को रद कर दिया है। बात कि जाए पूर्वांचल की तो वहां पर 26 सीटों पर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी का प्रभाव माना जाता है, जहां सपा को रोकने में वह बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। ऐसे में ये बिलकुल साफ़ हो जाता है कि अगर बीजेपी को पूर्वांचल
    के साइड अपने वोट बैंक को देखते हुए उन्हें योगी सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है। बात करे तो पिछले काफी दिनों से चर्चा थी कि सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ सिर्फ दो नेताओं राजभर और दारा सिंह चौहान को मंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे बल्कि वह अपनी टीम के कई अन्य नेताओं को भी मंत्रिमंडल में शामिल कराना चाहते हैं। इसलिए ऐसा कहा जा रहा था कि योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में यहीं पेंच फंस रहा था। पर वर्त्तमान में ऐसा कुछ भी नहीं है
    तो आने वाले समय में यह देखना होगा कि वो कोनसे बड़े चेहरे होंगे जिन पर मुहर लगेगी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए।