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9 अगस्‍त, 1942 : महात्मा गांधी का ऐलान, ‘करो या मरो’ ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन में सोशलिस्‍टों की भागीदारी!

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प्रोफेसर राजकुमार जैन
सैकड़ों साल की गुलामी के खिलाफ़ कांग्रेस पार्टी के झण्‍डे के नीचे महात्‍मा गाँधी की रहनुमाई में अंग्रेज़ी सल्‍तनत के विरुद्ध जो संघर्ष चल रहा था, उसमें आखिर वो दिन भी आ गया जिस दिन का इंतज़ार कांग्रेस सोशलिस्‍ट पार्टी दूसरे विश्‍वयुद्ध के आरंभ से कर रही थी कि गाँधीजी को जन-आंदोलन शुरू कर देना चाहिए। सोशलिस्‍ट लगातार गाँधीजी तथा कांग्रेस पर दबाव बना रहे थे। जयप्रकाश नारायण ने 9 अक्‍टूबर 1939 को ए.आई.सी.सी. की बैठक में जवाहरलाल नेहरू के प्रस्‍ताव के सामने एक संशोधन पेश करते हुए माँग की थी कि हमें तत्‍काल जन आंदोलन छेड़ देना चाहिए, परंतु कार्यसमिति ने उनके संशोधन को प्रचंड बहुमत से खारिज कर दिया।
डॉ. लोहिया चाहते थे कि गाँधीजी सत्‍याग्रह का एलान करें। उन्‍होंने गाँधीजी को पत्र लिखकर आग्रह किया, परंतु गाँधीजी सत्‍याग्रह शुरू करने को तैयार नहीं हुए। उन्‍होंने इसके दो कारण भी बताए। एक तो यह कि अभी समूचे देश ने अहिंसा को निष्‍ठापूर्वक स्‍वीकार नहीं किया है और दूसरा यह कि अभी देश में इसके लिए आवश्‍यक अनुशासन भावना नहीं आयी है।
लोहिया ने गाँधीजी से आग्रह किया कि भारत की आज़ादी के लिए अब और इंतज़ार नहीं करना चाहिए। सत्‍याग्रह हर हालत में अब शुरू हो जाना चाहिए। गाँधीजी न तो लोहिया की सलाह से सहमत थे और न ही कांग्रेस की राय से, उन्‍होंने सत्‍याग्रह के संबंध में लोहिया से कहा- ‘अभी नहीं’।
7,8, 9 अगस्‍त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बम्‍बई के गवालिया टैंक मैदान में बनाए गए पंडाल में आयोजित किया गया। उस समय बम्‍बई के मेयर यूसुफ मेहर अली थे। कांग्रेस के सम्‍मेलन से पहले यूसुफ मेहर अली ने 1 अगस्‍त 1942 को बम्‍बई के चौपाटी मैदान पर तिलक जयन्‍ती समारोह में जनता का आह्वान करते हुए खुले शब्‍दों में कहा कि बम्‍बईवासियों को आज़ादी की लड़ाई के अंतिम दौर के लिए तैयार होना है, जो न केवल जेल होगी, बल्कि अंग्रेज़ी राज को भारत से खत्‍म करने के लिए खुला विद्रोह होगा। कांग्रेस पार्टी का सम्‍मेलन होने से पहले सोशलिस्‍ट कार्यकर्ताओं की कई बैठकें हुईं, उन्होंने कहा कि अगर महात्‍मा गाँधी तथा अन्‍य राष्‍ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारियाँ हों तो हमें भूमिगत रहकर कैसे काम करना है। मेहर अली ने महात्‍मा गाँधी के आशीर्वाद से पद्मा पब्लिकेशन नाम पर एक पुस्तिका ‘Quit India’ प्रकाशित की, जिसकी हजारों प्रतियाँ हाथों हाथ बिक गईं।

महात्‍मा गाँधी के बम्‍बई आगमन पर यूसुफ मेहर अली ने ही मेयर की हैसियत से उनका स्‍वागत किया। सम्‍मेलन में भाग लेनेवाले प्रतिनिधियों के लिए यूसुफ ने एक बिल्‍ला बनवाया था, जिसमें भारत का मानचित्र बना हुआ था तथा उसके ऊपर क्‍यू. अर्थात् क्विट इण्डिया (भारत छोड़ो) लिखा हुआ था जो कि चाँदी के समान धातु का बना हुआ था, गाँधीजी को दिखाया। परंतु गाँधीजी ने कहा कि हिंदुस्‍तान की गरीब जनता चाँदी की खरीदारी नहीं करती, इसलिए इसकी जगह ताँबे की परत का बिल्‍ला बनवाओ। मेहर अली ने रातोरात बिल्‍ले को तैयार करवाया, जिसे गाँधीजी ने पसंद किया। सम्‍मेलन के लिए एक वालंटियर कोर भी बनाई गई जिसके इंजार्च सोशलिस्‍ट नेता अशोक मेहता थे। यूसुफ मेहर अली पहले नेता थे जिसने ‘साइमन कमीशन वापिस जाओ’ तथा ‘*भारत छोड़ो’ नारा दिया था।
सम्‍मेलन की अध्‍यक्षता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कर रहे थे। *जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत छोड़ो’ प्रस्‍ताव पेश किया। सरदार पटेल ने इसका अनुमोदन किया। अन्‍य नेताओं के अतिरिक्‍त आचार्य नरेन्‍द्रदेव, अच्‍युत पटवर्धन तथा डॉ लोहिया ने प्रस्‍ताव का जोरदार समर्थन किया। डॉ. लोहिया ने प्रस्‍ताव पर बोलते हुए कहा कि “पिछले कुछ महीनों से बरतानिया हुकूमत के प्रति कांग्रेस में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। भारत के लोगों को यह विश्‍वास हो गया है कि अंग्रेज़ी हुकूमत कोई अपराजेय नहीं है, जैसा कि पहले जनता को लगता था, अब जनता के दिलों में भय समाप्‍त हो गया है। सम्‍मेलन में कम्‍युनिस्‍टों द्वारा प्रस्‍ताव के विरोध में कई संशोधन पेश किये गये थे इसका विरोध करते हुए आचार्य नरेन्‍द्रदेव ने कहा, “यह अफसोस की बात है कि अभी भी ऐसे लोग हैं जो संघर्ष के आखिरी दौर में भी कुर्बानी देने के लिए तैयार नहीं हैं। वे पहले भी नहीं थे, अब भी नहीं हैं। अच्‍युत पटवर्धन ने पाकिस्‍तान की माँग पर कम्युनिस्टों के रुख का विरोध करते हुए कहा कि कम्‍युनिस्‍टों का यह कहना है कि करोड़ों मुसलमान पाकिस्‍तान के पक्ष में हैं, वो यह क्‍यों नहीं कहते कि कई करोड़ इसके खिलाफ़ भी हैं। कम्‍युनिस्‍ट कांग्रेस से तो यह अपील कर रहे हैं परंतु वे मुस्लिम लीग से क्‍यों नहीं करते।”
8 अगस्‍त की रात में महात्‍मा गाँधी ने कांग्रेस प्रस्‍ताव पर बोलते हुए भारतवासियों का आह्वान करते हुए तीन बातें कहीं –

1. करो या मरो

2. अंग्रेजो भारत छोड़ो

3. आज से हर भारतवासी अपने को स्‍वतंत्र समझे। भारत को आज़ाद कराने के लिए अब वे अपने नेता स्‍वयं हैं।
मैदान में मूसलाधार बारिश हो रही थी। 50 हजार से ज्‍़यादा लोगों ने महात्‍मा गाँधी के संदेश को सुना। गाँधीजी के भाषण से मैदान में मानो भूचाल सा आ गया।
9 अगस्‍त की सुबह गाँधीजी सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। एक तरफ नेताओं की धरपकड़ चल रही थी, वहीं तय कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त की सुबह अरुणा आसफ अली ने बेखौफ होकर कीचड़ से भरे सभास्‍थल पर जाकर सम्‍मेलन की अध्‍यक्षता की घोषणा करके राष्‍ट्रीय झण्‍डा फहरा दिया।
गिरफ्तारियों के विरोध में पूरे देश में व्‍यापक प्रतिक्रिया हुई। जगह-जगह‍ रेल पटरियाँ उखाड़ी गयीं, डाकखाने जलाए गए, आवागमन की व्‍यवस्‍था भंग कर दी गयी, थानों और कचहरियों पर हमले किये गये। बलिया (पूर्वी उत्तर प्रदेश) मिदनापुर (बंगाल) तथा सतारा (महाराष्‍ट्र) स्‍वतंत्र घोषित कर दिये गये जहाँ पर समानांतर सरकारें स्‍थापित कर दीं।
बड़े शहरों में विशाल प्रदर्शन हुए, सैकड़ों गाँवों में लोगों ने पुलिस के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने-कुचलने के लिए सरकार ने सेना की सहायता भी ली। यहाँ तक कि कुछ स्‍थानों में बमबारी भी की गई। बर्बरता तथा दमन के तहत लाखों भारतीयों को जेलों में ठूँस दिया गया तथा लगभग 25000 लोगों की जान गई।
बम्‍बई के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस सोशलिस्‍ट पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी उसमें विचार का प्रमुख विषय था कि आगामी संघर्ष का रूप क्‍या हो। जो लोग 9 अगस्‍त की गिरफ्तारी से बच गए थे, कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के तुरंत बाद भूमिगत सोशलिस्‍टो की पहल पर एक गुप्त बैठक अच्‍युत पटवर्धन के भाई पी,एच पटवर्धन के निवास पर हुई। इस बैठक में भाग लेने वाले प्रमुख नेताओं में डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, कमला देवी चट्टोपाध्याय, सादिक अली, पुरुषोत्तम विक्रम दास, मृदुला साराभाई, पूर्णिमा बनर्जी, मोहनलाल सक्सेना इत्यादि शामिल थे। इसके लिए केंद्रीय निदेशालय की स्थापना भी की गई उन्‍होंने भूमिगत होकर दृढ़संकल्‍प के साथ आंदोलन को चलाने की योजना को अंतिम रूप दिया। आंदोलन में क्या उचित है अथवा अनुचित इस पर विस्तार से चर्चा की गई, किसी भी इंसान की हत्या न करने तथा उसे घायल न करने के फार्मूले पर चलने का नियम बनाया गया। मराठी भाषा में क्रांतिकारी नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन मुंबई से शुरू किया गया। अच्युत पटवर्धन इसके प्रधान संपादक तथा मधुलिमये कार्यकारी संपादक बनाए गए। आंदोलन में सक्रिय नेताओं, कार्यकर्ता की पुलिस से पहचान बचाए रखने के लिए सांकेतिक नाम प्रयोग किए गए ताकि पुलिस उनकी पहचान ना कर सके। अधिकतर गुप्त संदेश, निर्देश ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी कार्यालय के नाम से प्रसारित किए जाते थे। डॉ राममनोहर लोहिया, अच्‍युत पटवर्धन, रामनंदन मिश्र, पुरुषोत्तम विक्रमदास, एस.एम. जोशी तथा उषा मेहता, अरुणा आसफ अली तथा जयप्रकाश नारायण, जो कि हज़ारीबाग जेल की ऊँची दीवार फाँदकर बाहर आ गए थे, ने भूमिगत आंदोलन को संचालित किया। वस्‍तुत: भूमिगत आंदोलन कांग्रेस सोशलिस्‍ट पार्टी ने ही चलाया। इनकी नीति थी ‘न हत्‍या न चोट’। जयप्रकाश नारायण सशस्‍त्र संघर्ष की तैयारी में जुटे थे परंतु व्‍यक्तिगत आतंकी कार्रवाई से बचा जा रहा था। पुरानी क्रांतिकारी गुप्‍त नीतियों को पुन: अमल में लाया जा रहा था तथा सरकारी संचार माध्‍यमों को बड़े स्‍तर पर बाधित किया गया। डॉ. लोहिया का कहना था कि थाना-पुलिस स्‍टेशन ब्रिटिश राज की धमनियाँ हैं, क्रांतिकारी जनता को इन केंद्रों को ध्‍वस्‍त कर देना चाहिए।
गिरफ्तारियों के साथ ही अंग्रेज़ी हुकूमत ने समाचारपत्रों की आज़ादी का गला घोंट दिया था तथा संघर्ष से जुड़े समाचारों पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका मुकाबला करने के लिए सोशलिस्‍ट क्रांतिकारियों ने स्‍वतंत्रता संग्राम के समाचार देने के लिए ‘ *रेडियो केंद्र ’ (कांग्रेस रेडियो/ आज़ाद रेडियो) स्थापित किया जिसका संचालन *उषा मेहता, डॉ. राममनोहर लोहिया, विट्ठलदास खोकर, विट्ठल जवेरी, चंद्रकांत आदि कर रहे थे।

जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया आंदोलन की तैयारी के लिए भेष बदलकर नेपाल की सीमा में चले गए। वहाँ पर इन्‍होंने ‘आज़ाद दस्‍ता’ का निर्माण किया, परंतु अंग्रेज़ सरकार को इसकी भनक लग गई थी, उसने नेपाली शासकों से कहकर नेपाली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया। परंतु आज़ाद दस्‍ते ने हथियारों के बल पर इनको आज़ाद करवा लिया। हालाँकि इस बीच गोली चलने से इन दोनों नेताओं की जान जाने से बची।
9 अगस्‍त को शुरू हुए आंदोलन में देश भर में हजारों लोगों ने अपनी जानें गँवाईं। सालों जेल की यातनाएं सहीं, अपना घर-बार सब कुछ लुटा दिया। उसके बाद हमको आज़ादी प्राप्‍त हुई।
जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि कांग्रेस सोशलिस्टों ने 1942 के विद्रोह का आघात सहा है तथा अंतिम संघर्ष के लिए कांग्रेस को अभी भी उनकी जरूरत है।
अगस्त आंदोलन प्रमुखत सोशलिस्टो द्वारा लड़ा गया था इसलिए 9अगस्‍त 1942 से लेकर आज तक हिंदुस्‍तान में जगह-जगह इस दिवस की याद में सोशलिस्‍ट यादगार दिवस के रूप में मनाते रहे हैं। सोशलिस्‍टों के लिए 9 अगस्‍त का बहुत महत्त्व है।
डॉ. राममनोहर लोहिया ने 9 अगस्‍त, 15 अगस्‍त तथा 26 जनवरी के इन दिवसों की ऐतिहासिक अहमियत पर रोशनी डालते हुए अगस्‍त 1967 के अपने एक लेख में 9 अगस्‍त 1942 की पच्‍चीसवीं वर्षगाँठ पर लिखा था, कि इसे अच्‍छे तरीके से मनाया जाना चाहिए। इसकी पचासवीं वर्षगाँठ इस प्रकार मनाई जाएगी कि 15 अगस्‍त भूल जाए, बल्कि 26 जनवरी भी पृष्‍ठभूमि में चली जाए या उसकी समानता में आ जाए। 26 जनवरी और 9 अगस्‍त एक ही श्रेणी की घटनाएँ हैं। एक में आज़ादी की इच्‍छा की अभिव्‍यक्ति थी और दूसरी ने आज़ादी के लिए लड़ने का संकल्‍प करवाया।