चरण सिंह
भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर देश को नाज़ रहा है। यही वजह रही है कि हमारे देश की संस्कृति को दूसरे देश भी अपनाने की कोशिश करते हैं। पर क्या जिस तरह से घटनाएं हमारे समाज में घटित हो रही हैं, उनको देखते हुए कहा जा सकता है कि हम अपनी संस्कृति पर गर्व कर सकते हैं। दरअसल जिस तरह से समाज में विकृति आई है। उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि देश में राजनीति से ज्यादा सुधार की जरूरत समाज में है। मेरठ में पति की हत्या कर शव के टुकड़े-टुकड़े कर ड्रम में भर देने वाली विवाहिता अपने प्रेमी के साथ अय्याशी करती रही और जेल की सलाखों के पीछे है। पति बेचारा पत्नी का जन्मदिन मनाने के लिए लंदन से भारत आया था। अब अलीगढ़ में एक दामाद अपनी सास को ही भगा ले गया। 16 अप्रैल को इस महिला की बेटी की शादी थी। बेटी सदमे में है।
दामाद का दुस्साहस देखिये कि अपने ससुर से कह रहा है कि तुम्हारे साथ यह बहुत रह ली। अब ये मेरे साथ रहेंगी। मतलब मां ने बेटी का घर बसने से पहले ही उजाड़ दिया। गत दिनों एकनव विवाहिता ने से मुंह दिखाई पैसों से पति की हत्या की सुपारी दे दी। देखने की बात यह है कि इन तीनों महिलाओं का अपने पतियों से कोई लगाव नहीं था। ऐसे कई मामले हो चुके हैं कि जो पति रात दिन एक कर पत्नी की जरूरतें पूरी कर रहा है उसी पति की हत्या पत्नियां करा दे रही हैं। इस तरह की घटनाएं लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर रही हैं।
दिलचस्प बात यह है कि एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझसे पतियों के उत्पीड़न पर डिबेट चलाने का आग्रह किया है। उन्होंने बिहार समेत कई राज्यों के कई पति उत्पीड़न के मामले मुझे बताये। यदि ख़बरों पर जाएं तो पत्नी उत्पीड़न से ज्यादा मामले पति उत्पीड़न को देखने को मिल रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि हमारे समाज में महिलाओं को एक से बढ़कर एक यातना झेलनी पड़ी है। महिलाओं का शोषण और दमन भी बहुत हुआ है। दो चार मामलों से हम कोई राय नहीं बना सकते हैं पर ये जो मामले समाज में घटित हो रहे हैं। सोचने को मजबूर कर रहे हैं।
हमारे देश में समाजसेवी और समाज सुधारक समाज सुधार पर काम करते रहे हैं। स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, कबीरदास, तुलसीदास, रसखान जैसे महापुरुषों ने समाज सुधार पर विशेष काम किया है। आज की तारीख में कितने लोग समाज सुधार पर काम कर रहे हैं ? समाज पर कोई काम करने को तैयार नहीं। सबको सत्ता का मजा चाहिए।
समाज में स्थिति यही हो गई है। काम की बात न कोई करना चाहता है और न ही सुनना चाहता है। लोगों की बेकार की बात में ज्यादा दिलचस्पी है। बच्चे भी बड़ों के साथ बैठने को तैयार नहीं। एक समय था कि बच्चे माता पिता से ज्यादा दादा दादी, नानी नानी, चाचा चाची, ताऊ ताई के साथ ज्यादा रहते थे। बड़ों से संस्कार के साथ ही अच्छी अच्छी बातें सीखने को मिलती थी। आज की तारीख में बच्चे बड़ों के पास बैठने को तैयार नहीं हैं। माता पिता को यह समझना होगा कि बच्चों को धन कमाकर देने के बजाय संस्कार और संयम पैदा करने की जरूरत है।