मिटा देंगे तुम्हें दुश्मन, न सोचेंगे पड़ोसी हो,
हमेशा माफ करने की हिमाकत हम नहीं करते।
नारनौल। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा एक वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलन का आयोजन आज किया गया, जिसमें भारत, नेपाल, आस्ट्रेलिया, कतर, स्वीडन, नीदरलैंड और अमेरिका सहित सात देशों के सत्रह कवियों ने, पहलगाम-घटना के संदर्भ में, अपनी आतंकवाद-विरोधी भावनाओं को मुखर अभिव्यक्ति प्रदान की। डॉ. सुनील भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत डॉ. पंकज गौड़ के कुशल संचालन तथा चीफ ट्रस्टी डॉ. रामनिवास ‘मानव’ के प्रेरक सान्निध्य में संपन्न हुए, विश्व के इस प्रथम आतंकवाद-विरोधी कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता आईबी के पूर्व सहायक निदेशक तथा पटियाला (पंजाब) के प्रख्यात कवि नरेश नाज़ ने की तथा गृहमंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के उपनिदेशक डॉ. रघुवीर शर्मा मुख्य अतिथि थे, वहीं त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू (नेपाल) में हिंदी-विभाग की अध्यक्ष डॉ. श्वेता दीप्ति विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। अपने संबोधन में डाॅ. रघुवीर शर्मा ने, पहलगाम नर-संहार की कड़ी निंदा करते हुए, उसे संपूर्ण मानवता पर हमला बताया। डॉ. श्वेता दीप्ति ने आतंकियों से प्रश्न किया कि “पता नहीं कौन-सा वह तुम्हारा खुदा है, जो निर्दोषों का खून बहने पर खुश होता है?” नरेश नाज़ ने अपने दोहों में धार्मिक सद्भाव और आतंकवाद के समूल विनाश की बात कही। दोहा (कतर) के प्रमुख गजलकार डॉ. बैजनाथ शर्मा ने, आतंकवादियों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए, कहा कि “मिटा देंगे तुम्हें दुश्मन, न सोचेंगे पड़ोसी हो। हमेशा माफ करने की हिमाकत हम नहीं करते।” आसन (नीदरलैंड) की वरिष्ठ कवयित्री डॉ. ऋतु शर्मा ने “हम मानवता के पुजारी हैं, पर प्रतिकार के भी अधिकारी हैं।” कहकर अपनी सांस्कृतिक दृढ़ता का परिचय दिया, वहीं गुरुग्राम के चर्चित कवि राजपाल यादव ने “आओ अब हुंकार भरें, गद्दारों पर वार करें।” शब्दों द्वारा पहलगाम के हत्यारों के संहार का आह्वान किया। भिवानी के ओजस्वी कवि डॉ. रमाकांत शर्मा ने, पहलगाम-घटना के बाद सारे समीकरण बदलने की बात स्पष्ट करते हुए, पूछा कि “अब है ऐसी क्या मजबूरी दुश्मन को हम गले लगाएंँ?” डॉ. रामनिवास ‘मानव’ ने, पहलगाम-घटना के पीछे के षड्यंत्र को उजागर करते हुए, स्पष्ट किया कि “किसी और की आग है, किसी और का तेल। किसी और की झोपड़ी, किसी और का खेल।।” हिसार के युवा कवि और चर्चित स्तंभकार डॉ. सत्यवान सौरभ ने “कविता कैसे लिखूंँ मैं, जब पहलगाम की वादियों में गूंँजता हो मातम?” कहकर अपने मन की पीड़ा और विवशता को रेखांकित किया। कवि-सम्मेलन में सिडनी (आस्ट्रेलिया) की डाॅ. भावना कुंँअर, वर्जीनिया (अमेरिका) की मंजू श्रीवास्तव, स्टाॅकहोम (स्वीडन) के सुरेश पांडे तथा भारत से मैसूर (कर्नाटक) की डाॅ. कृष्णा मणिश्री, धनबाद (झारखंड) की डाॅ. ममता झा ‘रुद्रांशी’, भदौही (उत्तर प्रदेश) की प्रतिमा शर्मा ‘पुष्प’, डीग (राजस्थान) के सोहनलाल ‘प्रेमी’ और रेवाड़ी (हरियाणा) के प्रो. मुकुट अग्रवाल ने भी, अपने आतंक-विरोधी स्वरों को मुखरित करते हुए, पहलगाम के शहीदों को काव्यांजलि अर्पित की।
लगभग दो घंटों तक चले इस महत्त्वपूर्ण कवि-सम्मेलन में वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) से ट्रस्टी डॉ. कांता भारती, डॉ. एस अनुकृति और प्रो. सिद्धार्थ रामलिंगम, सिंडनी (आस्ट्रेलिया) से प्रगीत कुँअर, नई दिल्ली से सुनीलकुमार सोबती, बैंगलोर (कर्नाटक) से पीयूष शर्मा, राजस्थान के रतनगढ़ से डॉ. यशवीर दहिया और अलवर से नरपत सिंह और अनीता सिंह, हरियाणा के हिसार से आरज़ू शर्मा तथा नारनौल से डाॅ. जितेंद्र भारद्वाज, डॉ. शर्मिला यादव, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, संजय शर्मा, सुरेशचंद शर्मा, हिम्मत सिंह, सचिन अग्रवाल, अशोक सैनी, स्वतंत्र विपुल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।