आज अखिल भारतीय किसान सभा, पल्ला कमेटी एवं गौतम बुद्ध नगर जिला कमेटी के नेतृत्व में पल्ला गांव के डीएमआईसी प्रोजेक्ट हेतु अधिग्रहित भूमि से प्रभावित किसानों की समस्याओं को लेकर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को संबोधित ज्ञापन एसडीएम श्री जितेन्द्र गौतम को सौंपा गया।
किसान सभा ने चेतावनी दी कि यदि समस्याओं के समाधान के लिए शीघ्र गंभीर वार्ता नहीं की गई तो किसान सभा को आंदोलन का रास्ता अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
गौरतलब है कि डीएमआईसी परियोजना के तहत पल्ला गांव की जमीन का अधिग्रहण किया गया, परंतु जिन किसानों से सहमति से भूमि ली गई है उन्हें पुनर्वास, पुनर्स्थापना और रोजगार के लाभों से वंचित रखा गया है। जिनकी जमीन बिना सहमति अधिग्रहित की गई है, उन्हें भी नियमानुसार 5 लाख रुपये की एकमुश्त राशि नहीं दी गई है। भूमिहीन किसानों को भी नियमानुसार ₹5 लाख की सहायता नहीं मिली है।
इसके अतिरिक्त, गांव की पुश्तैनी आबादियों का अधिग्रहण भी आपत्तियों के बावजूद कर लिया गया है, और बिना अधिग्रहण के नोटिस जारी कर उन्हें ध्वस्तीकरण की कोशिश की जा रही है। 13 अप्रैल को पल्ला गांव में एक बड़ी पंचायत आयोजित कर प्राधिकरण को चेतावनी दी गई थी कि धारा 10 के तहत जारी नोटिस तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाएं।
ज्ञापन सौंपने पहुंचे किसान सभा जिला अध्यक्ष डॉ. रुपेश वर्मा, महासचिव जगबीर नंबरदार, गबरी मुखिया, नितिन चौहान, राजवीर मास्टर जी, इंद्र प्रधान, दीपक भाटी, सुभाष पहलवान, सुमित भाटी, संजय प्रधान समेत अन्य सैकड़ों किसानों ने जोरदार नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया।
पल्ला गांव कमेटी के अध्यक्ष रोबिन भाटी ने कहा कि समस्याओं का आज तक कोई समाधान नहीं हुआ है और प्रभावित परिवारों को न रोजगार मिला, न उचित मुआवजा। किसान सभा के वरिष्ठ नेता और समाजवादी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष इंद्र प्रधान ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी स्तर पर वार्ता हो और समाधान निकाला जाए, अन्यथा किसानों को आंदोलन के लिए विवश होना पड़ेगा।
राजवीर मास्टर जी ने कहा कि गौतम बुद्ध नगर पूरे प्रदेश का ऐसा जिला बन गया है जहाँ नये भूमि अधिग्रहण कानून का पालन नहीं हो रहा है — न चार गुना मुआवजा, न 20% भूमि विकसित कर देने प्रावधान, न रोजगार का अधिकार। जिन किसानों की भूमि सहमति से खरीदी गई थी और जिन्हें 64 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा देय था वे भी मुआवजे से वंचित हैं,यह किसानों के अधिकारों की खुली अवहेलना है।