भाजपा के धार्मिक जाल में न फंसकर अखिलेश यादव को चलनी होगी सधी हुई चाल

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भाजपा के धार्मिक जाल
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चरण सिंह राजपूत 

खिलेश यादव को बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही भाजपा दिग्गजों का अकेले दम पर मुकाबला करने वाले राजद नेता तेजस्वी यादव के चुनाव लड़ने के तरीके से कुछ सीखना चाहिए। तेजस्वी यादव ने वह चुनाव अपने बनाये मुद्दे पर लड़ा। भाजपा के तमाम प्रयास के बावजूद वह उनके बनाये जाल में नहीं फंसे। भले ही वह बिहार में सरकार न बनाये पाये हों पर बिहार में उन्होंने सबसे बड़े लड़ैया का संदेश जरूर दे दिया। अखिलेश यादव हैं कि २०१७ के विधानसभा चुनाव की तरह इन चुनाव में भी भाजपा के बनाये धार्मिक जाल में फंसने लगे हैं। गत विधानसभा चुनाव में वह गुजरात के गधों पर बने विज्ञापन पर बोल गये तो तपाक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका बयान लपक लिया था। इस बार फिर भाजपा के उस मुददे पर बोल गये जिस पर वह अपने पक्ष में माहौल बनाने में माहिर मानी जाती है। भाजपा सांसद हरनाथ यादव ने भगवान श्री कृष्ण के उनके सपने में आने का हवाला देते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक पत्र लिखा। उनका कहना था कि श्री कृष्ण कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़ाना चाहिए।  अखिलेश यादव हैं कि श्रीकृष्ण उनके सपने में भी आने की बात करने लगे। उनका कहना था कि श्री कृष्ण कह रहे हैं कि इस बार सपा की सरकार बनेगी। आस्था और अंधविश्वास को भुनाने में भाजपा माहिर मानी जाती है तो ऐसे में अखिलेश यादव को बोलने की क्या जरूरत पड़ी थी ? अखिलेश यादव ने बैठे बिठाये भाजपा को फिर से धर्म से जुड़ा मुद्दा दे दिया। भाजपा मौके को कहां छोड़नी वाली थी कि योगी आदित्यनाथ कल सहारनपुर में हुई रैली में बोल पड़े कि इन लोगों के सपने में आकर श्रीकृष्ण भगवान यह भी बोल रहे होंगे कि अरे नालायकों जब सरकार मिली तो दंगे करा रहे थे। योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के अपनी सरकार में राम मंदिर बनाने के बयान पर भी चुटकी ली। मुलायम सिंह के कार सेवकों पर गोली चलाने का मुद्दा उठा दिया। हिन्दू समाज से माफी मांगने की बात कर दी। मुख्यमंत्री कैशव प्रसाद मौर्य बोलने लगे कि अखिलेश यादव मथुरा में मंदिर बनाने का ऐलान करें। कुल मिलाकर अब भाजपा अखिलेश यादव को धर्म के मुददे अपने जाल में फंसाने में लग गई है। अखिलेश यादव को यह नहीं भूलना चाहिए कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने के बाद अब भाजपा का अगला मुद्दा मथुरा में कृष्ण मंदिर बनवाना है। अखिलेश यादव यह भी भूल रहे हैं कि भाजपा हर धार्मिक नगरी में मंदिर बनवाकर अपने पक्ष में बनाना चाहती है।
अखिलेश यादव को अपनी ताकत समाजवाद ही बनानी चाहिए। चुनाव में उनको जो मुद्दे मजबूती देंगे वे बेरोजगारी और महंगाई हैं। किसान और मजदूरों की समस्याएं हैं। किसान आंदोलन में दम तोड़ने वाले किसान हैं। कमजोर और जरूरतमंदों की समस्याएं हैं। यदि अखिलेश यादव इसी तरह से भाजपा नेताओं के बयानों पर आकर इस तरह से उजूल-फिजूल बयान देते रहे तो गत विधानसभा चुनाव की तरह से इस विधानसभा में भी उन्हें इनक खामियाजा उठाना पड़ सकता है। अखिलेश यादवय को यह भी समझना होगा कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद एक दूसरे के पूरक हैं। अखिलेश यादव श्री कृष्ण के सपने में आने की बात कर न केवल अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि भाजपा को मजबूती भी दे रहे हैं। साथ ही समाजवाद को कमजोर कर रहे हैं। इन विधानसभा चुनाव में उनके लिए एक बड़ा अवसर है। सोशल मीडिया पर विपक्ष की हर पार्टी के समर्थकों का समर्थन अखिलेश यादव के मिलने लगा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हिन्दू वाहिनी जो कभी योगी आदित्यनाथ के लिए जान छिड़कती थी उसके काफी कार्यकर्ता अपरोक्ष रूप से अखिलेश यादव के लिए प्रचार कर रहे हैं। जिन लोगों की विचारधारा भाजपा से मेल नहीं खाती है। वे लोग अखिलेश यादव की सरकार बनवाना चाहते हैं। ऐसे में अखिलेश यादव को भी सधी हुई राजनीति करते हुए चुनावी समर में जोर दिखाने होंगे। भाजपा का मुकाबला करने के लिए अखिलेश यादव को उनके मुद्दों में नहीं बल्कि अपने मुद्दों में उन्हें उलझाना होगा।
दरअसल अखिलेश यादव कितनी बड़ी-बड़ी करते फिरते रहें पर विपक्ष में उनकी भूमिका काफी कमजोर रही है। उनके पिता और सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले संसद में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए शुभकामनाएं दे चुके थे। उनके चाचा राम गोपाल यादव पर यादव सिंह प्रकरण मामले में अपने बेटे अक्षय यादव को बचाने के लिए लगातार भाजपा से सांठगांठ करने के आरोप लग रहे हैं। शिवपाल यादव उनसे मजबूरी में मिले हैं फिर भी वह उनके साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेता आजम खां जेल में हैं। मध्य उत्तर प्रदेश से नरेश अग्रवाल, पूर्वांचल से पूर्व प्रधानमंत्ररी चंद्रशेखर के बेटे नीरज सिंह, कीर्तिवर्धन सिंह और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सुरेंद्र नागर काफी पहले सपा को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। गत विधानसभा में कांग्रेस और लोकसभा में बसपा जो अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थीं वे अब अलग-अलग ताल ठोंक रही हैं। रालोद से गठबंधन के बाद जयंत चौधरी से सीटों के बंटवारे में तालमेल नहीं बन पा रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव को बड़ी सधी हुई चाल चलनी पड़ेंगी।

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