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नेताजी की सलाह के साथ ही उनके संघर्ष को भी अपनाना होगा अखिलेश यादव को!

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चरण सिंह राजपूत 

नई दिल्ली। सभी कयासों को धता बताते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा से इस्तीफा देकर उत्तर प्रदेश पर पूरा फोकस करने का मन बनाया है। अखिलेश यादव की इस रणनीति के पीछे नेताजी की सलाह बताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार होली के अवसर पर जब पूरा मुलायम परिवार सैफई में एकत्रित हुआ तो इस बात पर भी मंथन हुआ है कि अखिलेश यादव को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी चाहिए या फिर लोकसभा की। बताया जा रहा है कि खुद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को विधानसभा में रहकर अगले चुनाव की तैयारी में अभी से जुट जाने की सलाह दी है। दरअसल अखिलेश यादव ने इन विधानसभा चुनाव और उसके परिणाम से बहुत कुछ सीखा है। अखिलेश यादव के स्वभाव के अनुसार यह माना जा रहा था कि वह करहल विधानसभा से इस्तीफा देकर लोकसभा में बैठेंगे। पर जिस तरह से अखिलेश यादव ने अपने पिता की सलाह मानते हुए पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर लगाने का मन बनाया है, उससे कहा जा सकता है कि अब वह सधी हुई राजनीति करने चल निकले हैं। अखिलेश यादव को सलाह मानने के अलावा अपने पिता के संघर्ष को भी अपनाना होगा। जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बना लिया है। ऐसे में अखिलेश यादव को रैलियों को संबोधित कर देने मात्र से काम नहीं चलेगा। सड़कों पर उतरने के साथ ही संगठन पर भी विशेष ध्यान देना होगा। संगठन में सभी को सम्मान देने के संदेश देने सी ही संगठन फिर खड़ा हो सकेगा। वैसे चाचा शिवपाल यादव को विपक्ष का नेता बनाकर अखिलेश यादव संगठन में संगठन में एक अच्छा संदेश देने का प्रयास किया है। अखिलेश यादव को अपनी पुरानी रणनीति में भी सुधार करना होगा। योगी सरकार के पिछले कार्यकाल में जिस तरह से सपा ने आंदोलनों से दूर रहकर जिला मुख्यालयों पर डीएम को ज्ञापन देने की रणनीति अपनाई थी। अपने मुख्यमंत्रित्व काल के कामों को गिनाने के लिए लोगों के बीच सपा कार्यकर्ताओं को भेजा था, उस रणनीति को छोड़कर योगी सरकार की खामियों को लेकर सड़कों पर उतरना होगा। दबाव की राजनीति से बाहर निकलकर आक्रामक राजनीति करनी होगी।दरअसल मुलायम परिवार को यह समझ में आ गया है कि समाजवादी पार्टी भले ही सत्ता से दूर रह गई हो, लेकिन 2017 के मुकाबले पार्टी के वोट शेयर में बड़ा इजाफा हुआ है। सीटें भी काफी बढ़ी हैं। इससे पार्टी के उत्साह में इजाफा देखा जा रहा है। खुद अखिलेश यादव ने भी सीटें बढ़ने पर संतोष व्यक्त किया था, अब देखना यह है कि अखिलेश यादव विधानसभा में किस भूमिका में योगी आदित्यनाथ का मुकाबला करेंगे। दरअसल अखिलेश यादव ने 2019 के आम चुनाव में की गलती से सबक लिया है।उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद से ही यह बड़ा सवाल बना हुआ था कि अखिलेश यादव करहल सीट से विधायक रहेंगे या फिर आजमगढ़ से सांसद। राजनीतिक हलके में यह चर्चा थी कि अखिलेश यादव विधानसभा चाचा शिवपाल यादव के हवाले कर खुद लोकसभा में बैठेंगे। अब अखिलेश यादव ने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर साफ कर दिया है कि पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले अखिलेश यादव करहल से विधायक बने रहेंगे। माना जा रहा है कि 2027 को ध्यान में रखकर समाजवादी पार्टी ने रणनीति में बदलाव किया है। पार्टी के लिए केंद्र की राजनीति से अधिक यूपी में पकड़ मजबूत करना जरूरी है।दरअसल 2017 में सत्ता गंवाने के बाद 2019 में अखिलेश यादव के लोकसभा चले जाने से मतदाताओं के  बीच गलत संदेश गया था। वह विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले तक यूपी की जमीनी राजनीति में कम सक्रिय रहे। अखिलेश यादव सही मायने में विधानसभा चुनाव में तीन महीने पहले ही पूरी तरह सक्रिय हुए थे। कई  मौकों पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उनसे अधिक सक्रियता दिखाई और अखिलेश ट्विटर तक सीमित रह गए। सपा को अखिलेश यादव की इस रणनीति का भी खामियाजा उठाना पड़ा।