लखनऊः राजा भैया के लिए MLC चुनाव में अपने करीबी अक्षय प्रताप सिंह को जिताना उतना आसान नहीं दिख रहा है
द न्यूज 15
लखनऊ। राजा भैया के नाम से मशहूर रघुराज प्रताप सिंह के लिए सियासी सफर अब उतना आसान नहीं रहने वाला है। लगातार सातवीं बार कुंडा से विधायक बनने वाले राजा भैया के लिए MLC चुनाव में अपने करीबी अक्षय प्रताप सिंह को जिताना उतना आसान नहीं दिख रहा है। प्रतापगढ़ एमएलसी सीट से लगातार जीतते आ रहे अक्षय प्रताप सिंह को हराने के लिए इस दफा सपा और भाजपा दोनों ने कमर कस ली है।
अक्षय प्रताप प्रतापगढ़ से तीन बार एमएलसी होने के अलावा एक बार सांसद भी रह चुके हैं। राजा भैया की वजह से अब तक इस सीट पर अक्षय प्रताप निर्विरोध जीत हासिल करते रहे हैं। इसके पहले वो 2016 में सपा के टिकट पर जीते थे। इस बार वो राजा भैया की जनसत्ता पार्टी से मैदान में हैं। सपा ने इस सीट से जिला पंचायत सदस्य विजय यादव और भाजपा ने पूर्व विधायक हरि प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है।
हालांकि, राजा भैया के लिए मुश्किलें और भी खड़ी हो सकती हैं। अक्षय प्रताप सिंह फर्जी पते पर रिवॉल्वर लाइसेंस लेने के आरोप में दोषी साबित हो चुके हैं। इसके बाद भी वह चुनावी मैदान में उतरे हैं। उनके मामले में अदालत 22 मार्च को सजा सुनाने वाली है। चर्चा है कि राजा भैया की पार्टी से एहतियातन दो और पर्चे भी खरीदे गए हैं। इनमें से एक अक्षय प्रताप सिंह की पत्नी के नाम से है।
हाल में हुए असेंबली चुनाव के परिणाम को देखा जाए तो राजा भैया का जलवा पहले की तरह से नहीं दिखा। राजा भैया ने गुलशन यादव को 40 हजार वोटों से हराया। राजा भैया का 1993 से कुंडा सीट पर दबदबा बरकरार है। हालांकि, अबकी जीत का अंतर कम जरूर रहा है। 2017 के चुनाव में वो 1 लाख से ज्यादा अंतर से जीतकर छठी दफा असेंबली पहुंचे थे। लेकिन 7वीं बार जीत तो हुई पर शुरू से ही वो ही फंसे दिखे।
राजा भैया ने 1993 से राजनीति शुरू की और वो लगातार विधानसभा पहुंचते रहे। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रघुराज प्रताप सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के जानकी शरण को हराया था। उस दौरान उनकी जीत एकतरफा ही दिखी। भाजपा कभी भी लड़ाई में नहीं दिखी।
इस दफा शुरू से ही कयास लग रहे थे कि राजा भैया की राह आसान नहीं। जीत का अंतर देखने के बाद ये बात साबित भी हो गई। लेकिन अब राजा भैया को अपना जलवा कायम रखने के लिए जोर लगाना होगा। अदालती फैसले के बाद अक्षय़ के मैदान से हटने के बाद उनके लिए एमएलसी सीट जीतना और मुश्किल हो सकता है।