अफसार मंसूरी
आज के दौर की पीढ़ी माँ बाप के प्रति अपनी जिम्मेदारी से दूर होती जा रही है । आज के दौर के हिसाब से देखा जाए तो पति पत्नी और बच्चे ही परिवार की श्रेणी में आते हैं। माँ बाप को परिवार की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। एक तरफ माँ बाप बच्चों के पालन पोषण से लेकर पढाई लिखाई और शादी विवाह तक अपनी जिम्मेदारी निभाने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देते हैं। वहीं बच्चे बडे हो जाने के बाद या यूँ कहें नौकरी और शादी हो जाने के बाद माँ बाप को अपने परिवार का हिस्सा मानने से ही इनकार कर देते हैं। आज के दौर की खासकर युवा पीढ़ी अपने माँ बाप को न तो अपने पास रखना चाहती है और न ही उनके साथ रहना चाहती है। माँ बाप की आर्थिक मदद करना भी मुनासिब नहीं समझती है। अब तो आये दिन ये देखने और सुनने को मिलता है बच्चे माँ बाप से महीनों फोन से बातचीत भी नहीं करते हैं। मां बाप के साथ बैठकर उनका दुख दर्द भी पूछना मुनासिफ नहीं समझते हैं। होली ,दिवाली, ईद और रमजान भी माँ बाप के साथ मिलकर मनाना भूलते ही जा रहे हैं। शायद हम और आप ये भली भाँति जानते हैं कि माँ बाप बच्चों के पैसों के भूखे नहीं होते हैं। वह तो चाहते हैं हमारे बच्चे दिन रात तरक्की करें। अगर वह चाहते हैं तो बच्चों के साथ उठना,बैठना उनसे बातचीत करना उनके साथ मिलजुल कर हंसना खेलना। शायद हम लोग अपने माँ बाप को ये सब भी नहीं दे पा रहे हैं। अगर आज हम अपने माँ बाप का सहारा बनने से या माँ बाप के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से भाग रहे हैं तो ये आने बाले समय में हमारे लिए ही घातक साबित होगा। शायद हम सब ये भली भाँति जानते हैं कि इस संसार में सब कुछ दुवारा भी मिल सकता है या यूँ कहें पैसे देकर भी खरीद सकते हैं अगर कोई है जो न तो दोबारा मिल सकता है और न ही पैसों की ताकत से खरीद सकते हैं तो वह हैं सिर्फ और सिर्फ हमारे आपके माँ बाप।