प्रोफेसर राजकुमार जैन
कुमार कृष्णन जी ने अपने लेख ,’समाजवादी आंदोलन के महानायक थे मधुलिमए’ मे बांका के1980 लोकसभा चुनाव का जिक्र किया है, और जिस किराए के मकान की घटना का वर्णन किया है उस पूरे किस्से में मैं एक भागीदार था। दिल्ली से मैं और मेरे कई साथी रविंद्र मनचंदा, ललित मोहन गौतम, हरीश खन्ना, सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन, देवेंद्र राणा, जय भगवान राणा, राजेश, सुप्रीम कोर्ट के वकील , के अतिरिक्त भूत पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज भी मुजफ्फरपुर में जॉर्ज फर्नांडीज के चुनाव क्षेत्र में भाग लेने के बाद पहुंची थी ।
मधुजी के चुनाव क्षेत्र बांका का सबसे बीहड़ इलाका (चानन -कटोरिया) विधानसभा क्षेत्र था। उसी में एक स्थान जिसका नाम सिमरतुल्ला था।, मधुजी के चुनाव संचालक हरिशंकर सहाय ने मेरी ड्यूटी कटोरिया के इसी क्षेत्र में काम करने के लिए लगा दी।,रात्रि को ढका मोड़ के हरी बाबू के घर ( खेत के ऊपर) जो चुनाव कार्यालय बना हुआ था, वहां पर मधुजी ,-चंपा जी और हरी बाबू मौजूद थे। जो नौजवान चुनाव प्रचार में भाग लेने के लिए गए थे उनके लिए बांका चुनाव क्षेत्र का सबसे शहरी इलाका देवघर धाम का प्रचार कार्य सौंपा गया( बाद में मेरे साथी मुझे चिढ़ाते थे कि देवघर में कितनी अच्छी -अच्छी मिठाई खाने को मिलती है।) परंतु हरी बाबू ने .मुझे कहां चानन कटोरिया जाओ अपने रहने खाने की व्यवस्था भी तुम्हे खुद वहां करनी है, अब तुम्हारी परीक्षा है। इसी के साथ साथ उन्होंने मुझे दो तीन व्यक्तियों के नाम और पते दे दिए, जिसमें सिमरतुल्ला भी एक स्थान था जिस व्यक्ति की दुकान पर मधुजी का चुनाव कार्यालय बनता था मैं वहां पहुंचा , मैंने उनसे कहा की आप जानते ही हैं कि मधु जी चुनाव लड़ रहे हैं अब आपको यहां की जिम्मेदारी संभालनी है।
आप हमेशा मधुजी के चुनाव की जिम्मेदारी संभालते हैं। तो उन्होंने कहा कि वह तो ठीक है, मेरी दुकान आठ 10 दिन बंद रहेगी इसका हर्जाना आप मुझे दे दे। मैं दंग था कि वह कार्यालय खोलने के लिए पैसा मांग रहे हैं जबकि वह हमेशा मधुजी के लिए बिना किसी स्वार्थ,लालच में काम करते थे। मैंने उनसे कहा कि आप जानते हैं यह मधु जी का चुनाव है, मधुजी के पास तो पैसा होता नहीं और आप तो पार्टी के एक बहुत ही निष्ठावान समर्पित कार्यकर्ता है फिर आप पैसा क्यों मांग रहे हैं?
उस पर हमारे उस वरिष्ठ साथी ने कहा था की अब मधुजी गाछ वाली (बरगद का पेड़ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का चुनाव चिन्ह) पार्टी के उम्मीदवार नहीं है,अब वह सरकारी पार्टी के नेता हैं सारे नेता मालदार बन गए हैं। हालांकि मैं जानता हूं कि मधुजी तो साधू है उनके पास एक कौड़ी भी नहीं है पर उनके चेले -चाटा खा -पीकर एमपी, एमएलए बन कर पैसा कमा चुके हैं, इसलिए उनसे पैसा लेकर दुकान बंद होने का खर्चा देना चाहिए।
उसके बाद उन्होंने मुझे चाय पिलाई और कहां मैंने गुस्से और तकलीफ में और जैसे नेता लोग लूट रहे हैं, से चिढ़कर पैसे मांग लिए, मधुजी के लिए दुकान बंद तो क्या मैं कुछ भी कर सकता हूं। मेरी इस बात से दो तथ्य उभर कर आते हैं,एक मधुजी के प्रति साधारण कार्यकर्ताओं की आस्था, निष्ठा, विश्वास और दूसरी ओर एमपी एमएलए, मिनिस्टर बनने के बाद भ्रष्टाचार मे लिप्त होने के कारण साधारण कार्यकर्ताओं में निराशा और नफरत।