ऊषा शुक्ला
माता-पिता जब बच्चों को जन्म देते हैं तो अपने हैसियत से ज्यादा बच्चों से प्रेम करते हैं! अब तक तो सुना था कि जब बच्चे कुछ बन जाते हैं और घर से कहीं दूर रोजगार के लिए चले जाते हैं तब वे अपने माता-पिता को भूल जाते हैं। पर अब समय उल्टा हो गया है। कलयुग जो आ गया है । एक संतान इसलिए मजबूर हो जाती है कि वह अपने माता-पिता से अपनी रोजगार के लिए दूर रह रही है। पर एक संतान ऐसी निकम्मी जिसने न जीवन में पढ़ाई करके दिखाया। हुसैन पुरा निवासी पुनीत का भी यही हाल है। पढ़ाई की उम्र में लड़कियों के पीछे-पीछे घूमता रहा और भरी सड़क पर मार खाता रहा। कभी कभार लड़कियों को छेड़ने के चक्कर में जेल के चक्कर भी लगाए। शुक्र है कि यह सब कार्य उसने योगी युग में नहीं किया। नहीं तो योगी जी सातवां आसमान नजर करवा देते हैं। जिस व्यक्ति का चरित्र इतना गंदा हो। तो वह पढ़ाई कैसे करेगा। जिसे सिर्फ बिस्तर पर लेट कर षड्यंत्र ही करना हो तो वह आगे बढ़ाने के लिए कैसे सोचेगा। और ऐसे लड़के पर कभी भी भगवान भी मेहरबान नहीं होता है। यही हुआ इस पुनीत के साथ। इसका विवाह अक्खड गांव से,एक बहुत ही गरीब घर की अनपढ़ लड़की से हो गया। जिस लड़की ने अपने जीवन में कभी पैसा देखा नहीं था ,यहां तक की पक्की सड़क तक नहीं देखी थी ,उसका तो जैसे मानो भाग्य खुल गया हो। पैसों की लालची सुमन ने अपने पति के साथ मिलकर अपने सास ससुर को बहुत प्रताड़ित किया। जब तक पुनीत के माता-पिता जीवित रहे वह इन दोनों से बहुत परेशान थे। क्योंकि इन दोनों का काम केवल मात्र पैसा मांगना और पैसा ना मिलने पर लड़ाई करना, झगड़ा करना और माता-पिता को मारना पीटना था। किसी तरह मजबूर माता-पिता अपना जीवन काट रहे थे। और उनके बच्चों का खर्चा उठा रहे थे। यह दोनों इतनी बदतमीज थे की ना ही इन्हें बात करने की तमीज थी। ना ही बड़ों की इज्जत करना आता था। यह अपने से बड़ों को कहते थे कि आप बड़े हैं तो क्या हुआ ,आप छोटे को कुछ भी थोड़ी ना कह देंगे। हम छोटे हैं पर हम किसी से डरते नहीं है। क्योंकि अगर शिक्षित होते हैं तो उनके संस्कार भी अच्छे होते हैं इन्हें समझ में आता कि बड़ों की इज्जत करने से कुछ भी घटता बल्कि भगवान खुश होते हैं। यही माता-पिता इनकी एक लड़की को पाल रहे थे। उनकी भी मजबूरी थी उन्हें रोटी बनाने के लिए एक लड़की की जरूरत थी। वह उनकी लड़की से रोटी बनवाते थे और उसका और उसके भाई बहनों का पूरा खर्चा उठाते थे। और शायद इसी कारण उनके जीवन में कभी भी सुख आ ही नहीं पाया। क्योंकि दो चार पैसे जैसे ही उनके पास आते थे यह निकम्मा लड़का अपने गवार बीवी के लिए अपने ही माता-पिता को मारता पिटता था और उनके पैसे छीनता था।
जब इन मजबूर माता-पिता का बड़ा बच्चा इन्हीं के करीब ट्रांसफर होकर आ गया।तब इन माता-पिता की जान में जान आई । और उन्होंने ठान लिया कि अब वह अपने बड़े लड़के के पास रहेंगे। लेकिन अगर ऐसा वह कर पाते तो यह निकम्मी औलाद अपने माता-पिता को मार कर पैसा कैसे छीन पाते हैं। और एक दिन ऐसा आया कि इस नालायक औलाद ने अपने माता-पिता को जमीन पर गिरा दिया ।उनकी छाती पर बैठ गया और उनको थप्पड़ पर थप्पड़ मारा। बेचारे बूढ़े आदमी वहीं बेहोश हो गए ।इस बहू ने अपनी सास के बाल नोच नोच कर कहीं दीवार पर यहां मारा कहीं वहां मारा वह भी बेचारी गिर पड़ी। और इस लड़के के आतंक से बहुत बुरी तरह डर गई। सिर में चोट लगने के कारण उनका दिमाग भी काम नहीं कर रहा था। इसी समय का फायदा उठाकर इस निकम्मी औलाद ने अपने पिता को ठीक होने ही नहीं दिया। उन्हें सडा गला कर चार महीना बिस्तर पर भूखे प्यासे लिटा करके भगवान के घर पहुंचा दिया। उसके बाद माता को नींद की गोलियां देना शुरू कर दिया वह सुबह शाम नींद में रहती । और उनके नशे की हालात को देखते हुए एक फर्जी वसीयत बनाई और उसमें माता के उंगलियों के निशान ले लिए। उसके बाद पिता के पड़ी सारी रकम, बैंक में पड़े सारे पैसे निकाल कर अपने और अपनी बेटी के खाते में डाल दिया। और षड्यंत्र ऐसा रचा के पिता के बीमार होने की ख़बर बड़े बेटे को होने ही नहीं दी । अपने ग़रीबी का वास्ता दे देकर के सबसे सहानुभूति बटोरता रहा । अनपढ़ लोगों को लगा कि शायद यह बेचारा मजबूर है क्योंकि इसके पास नौकरी नहीं है । यह पढ़ा लिखा नहीं है । इसके पत्नी भी अनपढ़ है । पर उसका परिवार पैसे का लालची है क्या किसी को समझ में नहीं आया है। बस फिर क्या था ऐसी कहानी रची , ऐसा प्रपंच रचा कि जिसने भी सुना उसने दांतों तले उंगली दबा ली ।जब माता के पास कुछ बचा ही नहीं तब उन्हें जिंदा रखने का कोई कारण था भी नहीं। उन्हें भी इंसुलिन का हाई डोज का इंजेक्शन दे दे करके भगवान के घर पहुंचा दिया। भगवान ऐसी औलाद किसी भी माता-पिता को ना दे। भले ही औलाद माता-पिता को बुढ़ापे में दो वक्त की रोटी ना दे लेकिन ऐसी औलाद किसी माता-पिता के नसीब में ना आए जो अपने माता-पिता को थप्पड़ मारती हो। हम जिसको जैसा देते हैं हमको वैसा ही मिलता है। यह बात सही है। इसका भी अंत बहुत बुरा होगा इसका अंत क्या इसका तो पूरा जीवन ही बर्बाद होगा क्योंकि इसे अपने माता-पिता की हाय लगेगी। इस निकम्मी औलाद के पाप का फल इसकी बेटी को भुगतना पड़ा। उसको ऐसे संस्कार दिए कि उसने मात्र दस लख रुपए के लिए अपने पहले पति को छोड़ दिया। यह गांव के लोग कौन सी दुनिया में रह रहे हैं जिनके लिए पैसा रिश्तों से बड़ा हो गया है। भगवान सदबुद्धि दे ऐसे संस्कार वाले लोगों को।