घूमने क्या जाने लगे प्रातः पार्क में
न जाने कितने लोग मिलने लगे
सभी अपनी अपनी धुन में मस्त
कोई सीधा कोई टेढ़ा….
अपने शरीर को मरोड़ रहा
शुरू में आंख मिलाना भी संभव ना था
जिनसे फिर धीरे-धीरे मिलने लगे हाथ
हाथ क्या मिले दिल भी मिलने लगे
कुछ तो फोन पर भी बतियाने लगे
फिर धीरे धीरे संवाद होने लगा
अधिकांश व्यक्तियों का आना तो
डॉक्टर की सलाह पर था
न जाने कितने लोग सुनाने लगे
अपनी अपनी व्यथा
सब धीरे-धीरे अपनी जोड़ी बनाने लगे
अपनी दिनचर्या बताने लगे
कोई योगा कर रहा तो कोई कसरत
कोई जिम पर ही अपना शौक पूरा कर रहा
कुछ नहीं तो मोबाइल पर व्यस्त रहने लगा
कोई गाना सुना रहा तो कोई गाना सुन रहा
दोनों ही अपनी मस्ती में मस्त रहने लगे
कहीं कोई बैडमिंटन खेल रहा तो कहीं कोई
कहीं पेड़ पर चढ़कर अपना शौक पूरा कर रहा
यहां तक कोई म्यूजिक की थाप नाच रहा
लगने लगी प्रातःकालीन अलग सी दुनिया
कोई नज़रें मिलाता तो कोई नजरे छुपाता
यहां तक कोई तो चाय पर बुलाता
या कोई मीठे नीम की पत्ती खिलाता
अलग सा ही नजारा इस दुनिया का
कुछ तो हेलो या राम राम
कर ही निकल जाते हैं
या अपने मित्र साथी की तलाश में
यूं भ्रमण कर के निकल जाते
कुछ कुछ नजारे तो ऐसे भी देखे
जिसका वर्णन करना उचित नहीं
कोई हसरत भरी निगाहों से देखता
तो कोई अजनबी बनकर निकल जाता
बाहर सुरक्षा का पूरा चौकस प्रबंध
अंदर मस्ती का पूरा आलम
कोई माली की चिंता करता
कोई माली को सुना कर निकल जाता
सबकी दुनिया देख कर
यह मस्त मौला
हर हाल में मस्त रहने लगा
राकेश जाखेटिया मस्तमौला