हत्या ही कर देना- यह नारी का कौन सा रूप

हत्या ही कर देना आख़िर यह नारी का कौन सा रूप है। भगवान का नारी को ऐसा तो नहीं बनाया था । सबके लिए है प्रेम ,ममता की मूरत , और कोमल सा दिल रखने वाली आज अपने ही साथी का क़त्ल कर देती है । कैसा कलयुग चाहिए और क्या क्या देखना बाक़ी रह गया है । नारी के इस रूप की भगवान ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी । आख़िर क्या हो गया है इस नये समाज को । एक समय था स्त्री निर्मल , कोमल और ममतामय हुआ करती थी पर आज इस आधुनिकता में न जाने पैसों के ख़ातिर कितने कठोर होती जा रही है , इतनी कठोर के किसी की हत्या करने में भी संकोच नहीं करती। मुस्कान और सोनम जैसी लड़कियाँ धरती के लिए अभिशाप है । समझ ये नहीं आता कि ये विवाह ही क्यों करती है । सिर्फ़ हत्या करने के लिए विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को अपना धंधा बनाती है। क्या पैसे इतने ज़रूरी है कि किसी मासूम की हत्या करने में भी हाथ न कंपकंपाए । एक ज़माना था जब स्त्रियों के साथ विवाह के बाद अत्याचार होता था उन्हें ज़िंदा तक जला दिया जाता था । ससुराल में बहू के साथ अत्याचार होता था पर अब यह कौन सहयोग आया जहाँ नई नवेली अपने ही पति को मौत के घाट उतार देती है । आप यह औरत का कौन सा रूप है ।इस आधुनिक युग में कुछ लड़कियाँ माता पिता के कहने से विवाह तो कर लेती हैं क्योंकि उन्हें सामने वाली पार्टी में मन मुताबिक़ प्रॉपर्टी दिखाई देती है , चकाचौंध जीवन को जीने के लिए धन और दौलत दिखाई देती है ।आज के समाज की नव विवाहिता जोड़ियों को। सोनम रघुवंशी अपने पति के साथ मेघालय जाती है और वहीं से शुरू होती है एक नई कहानी। क्यों नर्म दिल की औरत इतनी कठोर बनती जा रही है कि जन्म देने वाली एक औरत अब हत्या करने लगी है ।मुस्कान की तरह सोनम ने भी अपने ही पति की सुपारी देकर पति की हत्या करवा दी । ये नारियाँ कहाँ जा रही है । क्या यह नए ज़माने की बेटियां पैसे की ख़ातिर विवाह करती है। अगर पैसा ही सब कुछ हैं तो सच्चा सुख कहाँ है। एक माँ के सपूत को मौत के घाट उतारना यह नए ज़माने की बेटियों ने कैसे सीख लिया । क्या यही आधुनिकता है । अगर यही आधुनिकता है तो धिक्कार है इस नए ज़माने पर । यह किस तरह का ज़माना आ गया है हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है ।पैसा एक ज़रूरत है पर पैसे की ख़ातिर ग़लत रास्ते पर जाना पाप है। हालाँकि हर व्यक्ति जानता है कि कोई भी पैसा अपने साथ लेकर नहीं जाएगा पर फिर भी समझ ही नहीं रहा है या समझना चाहता नहीं है ।पैसा ही असली सुख नहीं है। पैसे ने ना जाने कितने रिश्ते ख़राब कर दिये । पैसे के ख़ातिर आज कल की नव विवाहिता अपने योग्यता से नहीं दौलत से अपना वर ढूंढती है ।पैसा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह एकमात्र सुख नहीं है। पैसा हमें भौतिक सुख और सुविधाएँ प्रदान कर सकता है, लेकिन यह हमें आत्मिक आनंद, मानसिक शांति और सच्चा सुख नहीं दे सकता। पैसा हमें भोजन, आवास, कपड़े और अन्य भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करता है। पैसे का लालच ऐसा कि माँ अपने बच्चे को पैसे की ख़ातिर कहीं भी भेज देती है। पैसे का लालच ऐसा कि पत्नी को अपने पति की पीड़ा नहीं दिखाई देती है दिखता है तो सिर्फ़ पति की कमाई।पैसा जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह एकमात्र सुख नहीं है। सुख के लिए हमें आत्मिक शांति, मानसिक शांति, अच्छे संबंध, और सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है।पैसे से शारीरिक जरुरतें पूरी होती हैं जैसे रोटी कपड़ा और मकान। पैसे से शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरत भी पूरी होती है। पैसे से घरेलू सुविधाएं जुटाई जाती है। अगर पैसे की कमी न हो तो बहुत शांति मिलती है। अर्थात कुछ जरुरतें पैसे से पूरी होती हैं और उनके पूरा होने से सुख मिलता है। हिन्दू शास्त्रों में भी लिखा है कि इतना पैसा जमा होना चाहिए कि दस वर्षों तक किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।पैसे से कपड़े खरीद सकते हैं लेकिन पैसे से शारीरिक सुंदरता और आकर्षण नहीं खरीदा जा सकता। वह प्रकृति की देन है।पैसे से घर की सुविधाएं खरीदी जा सकती हैं लेकिन घर की संस्कृति और सभ्यता नहीं खरीदी जा सकती। घर कितना भी सुविधा संपन्न हो लेकिन घर की सभ्यता और संस्कृति घर में रहने वाले लोगों के व्यवहार से झलकती है।पैसे से विवाह हो सकता है लेकिन पैसे से स्थाई दाम्पत्य जीवन नहीं खरीदा जा सकता। धनिकों में तलाक हो सकते हैं और गरीबों का दाम्पत्य जीवन सुखी हो सकता है।पैसे से शारीरिक जरुरतें पूरी होती हैं जैसे रोटी कपड़ा और मकान। पैसे से शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरत भी पूरी होती है। पैसे से घरेलू सुविधाएं जुटाई जाती है। अगर पैसे की कमी न हो तो बहुत शांति मिलती है। अर्थात कुछ जरुरतें पैसे से पूरी होती हैं और उनके पूरा होने से सुख मिलता है। हिन्दू शास्त्रों में भी लिखा है कि इतना पैसा जमा होना चाहिए कि दस वर्षों तक किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।पैसा एक जरूरत है पैसे से ही जीवन चलता है लेकिन जहां बात खुशी और सुख की आती है वहां पैसा दूसरे क्रम पर आता है पहले स्थान पर आत्म संतुष्टि आता है । आत्म संतुष्टि का यहां पर मतलब यह है कि कुछ लोग छोटे घर छोटी गाड़ी कम पैसों में ही सुख की प्राप्ति कर लेते हैं, अथवा कुछ लोग बड़ा घर बड़ी गाड़ी बहुत सारा धन लेकिन आत्म संतुष्टि उनके जीवन में नहीं होती है जिसके कारण वह सुख की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं।किसी मनमाफिक चीज का अपने पास होना ही तो सुख कहलाता है ! जिसके लिए धन की आवश्यकता भी हो सकती है ! लेकिन यह सब तात्कालिक ही होता है क्योंकि मनमाफिक चीज अपना स्वरूप फौरन बदल लेती है और एक नई आवश्कता पैदा हो जाती है ! उसके लिए फिर पैसे चाहिए ! इस तरह से यह प्रकिया चलती ही रहती है ! और सुख भाईसाहब रसायनिक समीकरण की तरह अपना रूप बदलते रहते है ! इस सबसे यह पता लगता है की पैसे के आलावा कुछ और भी चाहिए सुख को पाने के लिए !

ऊषा शुक्ला

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