
चरण सिंह
यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पद से हटाने का प्रयास होता है तो बीजेपी के समर्थक पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। योगी आदित्यनाथ बीजेपी के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनको छेड़ने का मतलब मोदी और अमित शाह की जोड़ी की उलटी गिनती शुरू। दरअसल योगी आदित्यनाथ बीजेपी में हिंदुत्व का ब्रांड बन चुके हैं। चुनाव प्रचार में पीएम मोदी से अधिक डिमांड योगी आदित्यनाथ की होती है। महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में योगी आदित्यनाथ का बड़ा योगदान रहा था।
दरअसल उत्तरांचल के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ ही देश के सबसे प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी उनके पद से हटाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। पार्टी नेतृत्व इन मुख्यमंत्रियों को हटाने में लग गया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ को भी मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा। क्या इतनी आसानी से योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है ? क्या बीजेपी उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ को साइडलाइन कर जीतने की स्थिति में है ?
दरअसल योगी आदित्यनाथ को या तो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की शर्त पर ही हटाया जा सकता है या फिर 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए पीएम पद के लिए तैयार करने की बात कर। वह भी 2027 के विधानसभा चुनाव के बाद। दरअसल आरएसएस की रणनीति है कि बीजेपी योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़े और उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कोई ओबीसी चेहरा मुख्यमंत्री बने। उसके बाद 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
दरअसल योगी आदित्यनाथ को हटाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण में योगी पिछड़ जा रहे हैं। अखिलेश यादव के पीडीए फार्मूले पर बीजेपी गच्चा खा सकती है। योगी आदित्यनाथ को राजपूत होने के नाते सवर्ण जाति से न जोड़ा जाए। योगी एक संत हैं और जिस मठ से आते हैं वह सभी मठों में श्रेष्ठ माना है। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारने का दावा कर हर वर्ग को रिझाया है। आरएसएस की नाराजगी अलग से हो जाएगी। योगी आदित्यनाथ का चेहरा सवर्ण का नहीं बल्कि हिंदुत्व का है। ऐसे में योगी को हराना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव लग रहा है।
दरअसल योगी आदित्यनाथ को तब नहीं हटाया जा सकता जब तक वह खुद न चाह लें, दरअसल योगी को हटाने के प्रयास तो बनने से पहले ही हो गए थे। जब योगी वह 2017 में मुख्यमंत्री बनाए गए थे तो उस समय मोदी और अमित शाह की रणनीति थी कि मनोज सिन्हा यूपी के मुख्यमंत्री बने। वह तो हिंदुत्व वाहिनी की लॉबी और आरएसएस का साथ देना ही ही था कि योगी मुख्यमंत्री बने।
योगी आदित्यनाथ को कई बार मुख्यमंत्री पद से हटाने का प्रयास हुआ पर उनका कुछ न बिगड़ सका। लोकसभा चुनाव में यूपी से शिकस्त मिलने के बाद तो योगी आदित्यनाथ की चौतरफा घेराबंदी की गई। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के साथ ही बृजेश पाठक, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर ने भी उनका विरोध किया पर योगी आदित्यनाथ का कुछ बिगड़ न सका।
दरअसल लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में योगी आदित्यनाथ नाराज हो गए थे। योगी आदित्यनाथ ने कह दिया कि 32 टिकट उनकी बिना सहमति के दिए गए थे। पार्टी अधिकतर सीटें वही हारी है। उसके बाद यूपी उप चुनाव योगी को दे दिया गया था। योगी आदित्यनाथ ने 10 में से 9 सीटें जीतकर अपने को साबित किया। ऐसे में जब 2027 का चुनाव सर पर है और योगी आदित्यनाथ की मांग प्रधानमंत्री बनाने की हो रही है।
ऐसे में यदि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो फिर बीजेपी में भले ही बगावत न हो पर बीजेपी समर्थक जरूर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा जरूर खोल देंगे। जैसे कि गुजरात में अहमदाबाद के सांसद पुरुषोत्तम रुपाला के राजपूत समाज पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद गुजरात और राजस्थान के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी राजपूतों ने पंचायत कर बीजेपी नेतृत्व का विरोध किया जिसका परिणाम यह हुआ कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकतर सीटें बीजेपी हारी। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को हराना मतलब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना है।