मोदी-शाह आतंकवाद को रोकने में नाकाम रहने के कारण इस्तीफा दें : संदीप पांडेय 

युद्ध नहीं पाकिस्तान के साथ बातचीत ही एकमात्र विकल्प

द न्यूज 15 ब्यूरो

नई दिल्ली। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महासचिव संदीप पांडेय और राष्ट्रीय समिति के सदस्य शाहिद सलीम ने पहलगाम आतंकी हमले पर कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि पहलगाम में आतंकवादी हमले से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का पाकिस्तान व कश्मीर को लेकर अहंकार टृटा होगा। जब नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री पद के दावेदार होते हुए चुनाव लड़ रहे थे, तक वह अपने सीने की चैड़ाई की नाप 56 इंच बताने से लेकर नोटबंदी और फिर अनुच्छेद 370 को हल्का करने से कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो जाएगा। कह लोगों को भ्रमित करने और हाल ही में भाजपा नेताओं राजनाथ सिंह, एस. जयशंकर व योगी आदित्यनाथ द्वारा यह दावा करना कि कश्मीर का एक ही मुद्दा बाकी है और वह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का विलय भारत में कैसे हो, से स्पष्ट है कि भाजपा नेता अपने आप को भ्रम में रखे हुए थे और देश को धोखा दे रहे थे। उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल के आतंकवादी हमले से जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार की नीतियों से शांति बहाल हुई की पोल खुल गई है। उसने पिछले ग्यारह सालों में सिर्फ शुतुरमुर्ग की तरह कश्मीर की समस्या को नजरअंदाज किया है। प्रधानमंत्री शायद अब धरती पर जितने भी देश हैं उनकी यात्राएं कर आए हैं सिवाए भारत में मणिपुर के और पाकिस्तान में 2015 में अफगानिस्तान से लौटते हुए नवाज शरीफ के व्यक्तिगत कार्यक्रम में शामिल होने के लिए, जो पहले से कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था, लाहौर गए थे। मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री होते हुए भारत-पाकिस्तान सम्बंध में कुछ सुधार दिखाई पड़ा, नहीं तो भाजपा के सत्ता में आने के बाद से भारत-पाकिस्तान सम्बंध ठण्डे बस्ते में पड़े हैं।
पहलगाम आतंकवादी कार्यवाही के बाद भारत की प्रतिक्रिया रही सिंधु जल संधि को स्थगित करना, अटारी सीमा को बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों को दिए गए वीसे रद्द करना, आदि। जवाब में पाकिस्तान ने भी इसी तरह के फैसले लिए हैं। ये किसी दूर दृष्टा राजनीतिज्ञ द्वारा लिए जा सकने वाले फैसलों के एकदम विपरीत हैं। जब आग लगी हो तो उसमें घी डालने का काम नहीं किया जाता है। उसे बुझाने की कोशिश होनी चाहिए। यह कहना आसान है कि हम पाकिस्तान को एक बूंद पानी नहीं देंगे लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि नदी के बहते हुए पानी को रोकने के क्या परिणाम होंगे? हमारे यहां बाढ़ आ जाएगी। यदि कल इसी तरह का निर्णय चीन ने ले लिया तो हमारी ज्यादातर उत्तर भारत की नदियां जो हिमालय से निकलती हैं, सोचिए क्या परिणाम होगा?
हमने इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया चीन के प्रति नहीं देखी जब उसके सैनिकों ने हमारे 20 सैनिकों को 2020 में गलवान में मार डाला। चीन के साथ हमने राजनयिक संबंध खत्म नहीं किए। उल्टे चीन के साथ हमारा आयात-निर्यात व्यापार का अंतर दोगुना हो गया। डोनाल्ड ट्रम्प ने तो बेवकूफी में अमरीका से निर्यात की जाने वाली चीजों पर शुल्क बढ़ा कर अपनी किरकिरी की। चीन ने होशियारी से बिना शोर मचाए व्यापार में हमसे समर्पण करवा लिया। आज हम चीन पर इतना निर्भर हैं कि हमारी सरकार खुलकर यह कहने को तैयार नहीं कि चीन ने भारत की 4,000 वर्ग कि.मी. की भूमि पर कब्जा किया हुआ। लेकिन भाजपा नेता इस भूमि को वापस लेने की बात नहीं करतें।
भाजपा सरकार चाहे जितना युद्धोन्माद का वातावरण बनाए, हकीकत यह है कि दोनों देशों के पास नाभिकीय शस्त्र होने की वजह से भारत के सामने पाकिस्तान के साथ युद्ध का विकल्प नहीं है। किसी ऐसे युद्ध में जिसमें दोनों तरफ से नाभिकीय शस्त्रों का इस्तेमाल हो गया तो दोनों तरफ भयंकर तबाही होगी। जितनी जल्दी भारत को यह बात समझ में आ जाए कि कश्मीर समस्या के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत ही एकमात्र रास्ता है उतना ही इस क्षेत्र के लोगों के लिए भला होगा। हां, भाजपा को यह मोह त्यागना होगा कि कश्मीर मुद्दे का साम्प्रदायिक इस्तेमाल कर वह अपने हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण कर सकती है। भाजपा को अब देश हित व लोकहित और कश्मीर मुद्दे के राजनीतिक दोहन के बीच चुनना होगा।
खुफिया संस्थानों व सुरक्षा व्यवस्था की असफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नरेन्द्र मोदी व अमित शाह को पहलगाम आतंकवादी हमले के लिए इस्तीफा देकर नई सरकार बनने का रास्ता साफ करना चाहिए ताकि वह कश्मीर समस्या का हल निकालने के लिए पाकिस्तान से बातचीत शुरू करे व इस क्षेत्र में शांति व स्थिरता सुनिश्चित करे।

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