प्रोफेसर राजकुमार जैन
दिल्ली विधानसभा के चुनाव खत्म होने के बाद मेरे कई साथियों, दोस्तों ने मुझसे सवाल किया कि आपने किस पार्टी को वोट दिया है? उसी के जवाब में यह पोस्ट लिख रहा हूं।
मैंने जिंदगी में पहली बार कांग्रेस को वोट दिया है। इससे पहले सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, कांग्रेस (एस) लोक दल के मिलन से बनी जनता पार्टी को वोट दिया था। मैंने कभी जनसंघ या भाजपा को वोट नहीं दिया। अक्सर में कई लोगों को कहते हुए सुनता हूं कि फलां को वोट देकर अपना वोट जाया ना करें, वह तो जीत ही नहीं सकता, उसकी तो जमानत ही नहीं बचेगी। इस तरह के फिकरों को सुनकर मुझे लगता है कि क्या हम वोटो की तिजारत कर रहे हैं, कि कहां फायदा होगा कहां नुकसान।
1967 में मैंने पहली बार अपना वोट डाला था। उस समय चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बरगद पेड़ के निशान पर हमारे नेता सांवल दास गुप्ता जी चुनाव लड़ रहे थे। जनसंघ, कांग्रेस का बोलबाला था सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार सहित, पार्टी के कार्यकर्ता भी अच्छी तरह से जानते थे कि हमारी जमानत भी नहीं बचेगी। उसके बावजूद हमारा जोश जीतने वाली पार्टी से भी, किसी भी मायने में कम न था। पूरे चुनाव में एक पर्चा (पैम्फलेट) तथा एक पोस्टर छपा था। पर्चे के दोनों और सोशलिस्ट पार्टी की नीतियों, सिद्धांतों, कार्यक्रमों का जिक्र था। हर रोज 25 -30 पार्टी के नेता और कार्यकर्ता लाल टोपी पहनकर तथा एक मेगा माइक से नारा लगाते , पर्चो को को बांटते हुए सोशलिस्टों के नारे लगाते हुए।
धन और धरती बंटके रहेंगी
भूखी जनता अब ना सहेगी।
डॉ लोहिया का अरमान
मालिक हो मजदूर किसान।
मांग रहा है हिंदुस्तान
रोजी-रोटी और मकान।
कमाने वाला खाएगा
लूटने वाला जाएगा
नया जमाना आएगा।
100 से कम, न हजार से ज्यादा
समाजवाद का यही तकाजा। (गरीब, अमीर की आमदनी का फर्क 10 गुना से ज्यादा ना हो)
जो जमीन को जोते बोए
वहीं जमीन का मालिक है।
जन भाषा में पढ़ने दो,
हमको आगे बढ़ने दो।
अंग्रेजी में काम ना होगा
फिर से देश गुलाम न होगा।
डॉ लोहिया की अभिलाषा
चले देश में देसी भाषा।
सोशलिस्टों ने बांधी गांठ
पिछड़े पावें सो मैं साठ।
राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी की संतान सबको शिक्षा एक समान।
महारानी – मेहतरानी का फर्क मिटाएंगे मुल्क में समाजवाद लाएंगे।
औरों का घर भरने वालों
खून पसीना बहाने वालों,
कह दो इंकलाब आएगा।
बदल निजाम दिया जाएगा
फिर होगा जग में उजियारा।
हल चक्र का मेल निराला
फहरे लाल निशान हमारा।
टाटा, बिड़ला की सरकार,
नहीं चलेगी, नहीं चलेगी
रोजी-रोटी दे ना सके वह सरकार निकम्मी है
जो सरकार निकम्मी है, वह सरकार बदलनी है।
दम है, कितना दमन में तेरे,
देख लिया और देखेंगे
जगह है, कितनी जेल में तेरे
देख लिया और देखेंगे।
लाठी गोली खाएंगे
समाजवाद लाएंगे
इंकलाब जिन्दाबाद, जिन्दाबाद
जोशीली आवाज में जब हमारे साथी यह नारा लगाते थे तो उन्हें इस बात की बेइंतहा खुशी होती थी कि पूरे शहर में लोगों को पता चल गया है कि यह लाल टोपी वाले सोशलिस्टों की गरीबों, मजदूरों किसानो, कामगारों की अलम्बरदार पार्टी है। हमारे पर्चे और नारों से हमारे और कांग्रेस, जनसंघ के बीच नीतियों का क्या फर्क है, लोगों को पता चल जाता था।
मुझसे सवाल किया जा सकता है कि क्या आपने कभी ‘आप पार्टी’ को वोट दिया है, मेरा जवाब है कि आप पार्टी को मैंने शुरू से ही ना पसंद किया है, वोट देने का तो सवाल ही नहीं था। क्योंकि जिस पार्टी की कोई विचारधारा, मेनिफेस्टो नहीं होता वह अंत में सत्ता सुख लूटने तथा लोकतंत्र के लिए घातक ही सिद्ध होती है। मेरी राय में हिंदुस्तान के सियासी इतिहास में अरविंद केजरीवाल जैसा शातिर, चतुर सुजान, सच को झूठ और झूठ को सच में दिखाने वाला करामाती नेता अभी तक नहीं हुआ। लिखने को बहुत कुछ है, परंतु गिरे हुए में एक लाठी और मारना भी, कोई बहादुरी नहीं है। सिर्फ एक मिसाल से पता चल जाता है कि अन्ना आंदोलन के वक्त भारत माता की फोटो लगाकर, उसके बाद गांधी जी की तथा जब पंजाब का चुनाव आया तो गांधी जी की फोटो हटाकर बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर तथा भगत सिंह की फोटो अपने झंडे के साथ लगा ली।
अब एक और सवाल का जवाब मुझे देना है कि मैंने कांग्रेस को वोट क्यों दिया? सोशल मीडिया में देख रहा हूं कि कई नामी गिरामी भाजपा के धुर विरोधी जहनियत वाले कांग्रेस को ‘वोट कटवा पार्टी’ कह रहे हैं। वाह क्या कमाल है, संसद में 100 सदस्यों वाली मुख्य विरोधी दल को ‘आप पार्टी’ के सामने वोट कटवा घोषित कर रहे हैं। आप पार्टी ने अपने लुभावने अंदाज में कांग्रेस पार्टी के परंपरागत वोटो में सेंध लगाई है, ना कि भाजपा के मतदाताओं में। चांदनी चौक में अकलियत के वोटरों ने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने आप के हिंदू उम्मीदवार को भारी तादाद में केवल एक वजह से वोट देकर जितवाया कि कांग्रेस तो जीत नहीं रही भाजपा का उम्मीदवार जीत जाएगा, इसलिए ना चाहते हुए भी उन्होंने आप पार्टी को वोट दिया। क्या अगले चुनाव में भी वोटर का ऐसा ही रुख रहेगा?
मैंने कांग्रेस को एक रिलक्टेंट, हिचकिचाहट वाले वोटर के रूप में वोट दिया है। आजादी के आंदोलन की कोख से निकली कांग्रेस में भी कम कमियां नहीं है, उनकी सबसे बड़ी कमी जो मैं देख रहा हूं वह यह है कि वह भी भाजपा के नक्शे कदम पर चलकर, उन्हीं की तरह मजहबी पोंगा पंथी के नुक्से अख्तियार कर रही है। सैकड़ो किसानो की कुर्बानी के बावजूद भाजपा की तरह उनके मसले पर लड़ने को तैयार नहीं। कांग्रेस की आर्थिक नीतियां, भी बड़े औद्योगिक मालदार घरानों की तरफदारी करती हुई दिख रही है।
मेरी दिल्ली तमन्ना है कि दिल्ली की गद्दी पर समाजवाद, लोकतंत्र, गैर सांप्रदायिक गरीबों की हमदर्द सोच वाली पार्टी काबिज हो।
‘कांग्रेस रहित, भाजपा सहित’ कोई भी गठबंधन मुल्क के लिए घातक ही सिद्ध होगा तथा भाजपा के खिलाफ मुहिम कामयाब नहीं हो सकती। आप पार्टी के हारने का कोई दुख नहीं, परंतु भाजपा के जितने पर रंज जरूर है। भाजपा को शिकस्त देने के लिए ‘इंडिया एलाइंस’ जैसे मोर्चे की अभी भी दरकार है।