पटना | दीपक कुमार तिवारी
बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है। एनडीए के सांसदों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान जीतन राम मांझी की गैरमौजूदगी ने नए सियासी अटकलों को जन्म दे दिया है। क्या मांझी एनडीए से नाराज हैं? क्या वे गठबंधन छोड़ने की तैयारी में हैं? या फिर यह सिर्फ एक संयोग है? इन सवालों के जवाब फिलहाल नहीं मिले हैं, लेकिन बिहार की राजनीति में चर्चाओं का दौर गर्म हो गया है।
पीएम मोदी से एनडीए सांसदों की मुलाकात, लेकिन मांझी नदारद:
शुक्रवार को बिहार एनडीए के सभी सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। बैठक में जदयू के ललन सिंह, एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान समेत तमाम एनडीए घटक दलों के सांसद शामिल हुए। लेकिन हम प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी इस अहम बैठक में नजर नहीं आए।
क्या एनडीए में बढ़ रही दरार?
जीतन राम मांझी इससे पहले भी एनडीए में अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटों की मांग को लेकर मुखर रहे हैं। झारखंड और दिल्ली चुनावों में सीट न मिलने पर उन्होंने नाराजगी भी जताई थी। मांझी ने यह तक कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस तरह से समझौता नहीं करेंगे।
हम के बढ़ते दावों से बीजेपी और जदयू में हलचल:
हाल ही में मांझी ने बिहार चुनाव में 20 से अधिक सीटों की मांग करके बीजेपी और जेडीयू को असमंजस में डाल दिया था। जहानाबाद में उन्होंने स्पष्ट कहा था—
“20 से ज्यादा सीट मिलेगी, तभी हम 20 सीट जीतेंगे।”
हम लगातार अपने राजनीतिक वजूद को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है। मांझी ने अपनी पार्टी के महासम्मेलनों के जरिए एनडीए को अपनी ताकत दिखाने की बात कही थी।
मांझी की रणनीति: दबाव बनाकर सीटों की सौदेबाजी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मांझी एनडीए पर दबाव बनाकर अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटें सुरक्षित करना चाहते हैं। उनकी गैरमौजूदगी कहीं न कहीं गठबंधन में चल रही अंदरूनी खींचतान का संकेत दे रही है।
अब सवाल यह है कि—
-क्या मांझी सच में एनडीए से दूरी बना रहे हैं?
-या फिर वे केवल राजनीतिक दबाव बनाकर अपने लिए बेहतर सौदेबाजी की तैयारी में हैं?
-अगर वे एनडीए से अलग होते हैं, तो क्या विपक्षी महागठबंधन में उनकी वापसी होगी?
इन सवालों के जवाब तो भविष्य में मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि मांझी की इस चुप्पी ने बिहार के सियासी गलियारे में भूचाल ला दिया है।