मणिपुर और संजय झा के कार्यक्रम से सीएम की दूरी ने दिए साफ संकेत
दीपक कुमार तिवारी
पटना/नई दिल्ली। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू की मणिपुर इकाई ने हाल में जो कुछ किया और उसके बाद जो हुआ, वह किसी प्रहसन से कम नहीं। राष्ट्रीय अध्यक्ष से सलाह-मशविरा किए बगैर जेडीयू की मणिपुर इकाई ने अपने इकलौते विधायक का समर्थन भाजपा से वापस लिया। मीडिया में हल्ला नहीं मचता तो इसके बारे में शायद ही किसी को कानों कान कोई खबर हो पाती। खबर सामने आने के बाद जेडीयू ने मणिपुर के अपने प्रदेश अध्यक्ष बीरेन सिंह को पद से हटाने की घोषणा की। जेडीयू के बारे में हाल के दिनों में इस बात की खूब चर्चा रही है कि नीतीश कुमार के हाथ से पार्टी निकल गई है। मणिपुर की घटना से ऐसी चर्चा को बल मिला है।
जेडीयू पर नीतीश कुमार की पकड़ ढीली होने की बात को इससे भी बल मिलता है कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सांसद संजय झा के दो कार्यक्रमों से नीतीश कुमार ने दूरी बना ली। पहला कार्यक्रम उनके नए बंगले में गृह प्रवेश का था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा भाजपा की बिहार इकाई के नेताओं ने उस आयोजन में शिरकत की, लेकिन नीतीश कुमार नहीं गए। दूसरा आयोजन संजय झा ने दिल्ली में दही-चूड़ा भोज का किया। अमित शाह उसमें भी शामिल हुए, लेकिन नीतीश कुमार नहीं गए।
वैसे तो ललन सिंह समेत जेडीयू के दो सांसदों ने नीतीश कुमार के उसूलों के खिलाफ जाकर मुसलमानों पर बयान। पहला बयान लोकसभा चुनाव में जीत के तुरंत बाद देवेश चंद्र ठाकुर का आया था। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम और यादव जाति के लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया। इसलिए वे उनका काम कभी नहीं करेंगे। पर, जब जेडीयू कोटे से केंद्र में मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने मुसलमानों के बारे में कटु टिप्पणी की तो स्थिति की गंभीरता समझ में आई। ललन सिंह ने कहा था कि जेडीयू के लोगों को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि मुसलमान उसे वोट देते हैं। नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए बिहार में जितना किया है, उतना किसी ने नहीं किया।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही जेडीयू में एकता का अभाव दिखता रहा है। हालांकि अभी तक यह मतभेद सतह पर नहीं आया है। वक्फ संशोधन बिल पर ललन सिंह के भाजपा के साथ खड़े होने को भी नीतीश की मर्जी के खिलाफ माना गया। मनीष वर्मा के कार्यक्रम पर रोक लगाने के संजय झा के निर्देश को भी जेडीयू में खटपट के तौर पर देखा गया। संजय झा के आयोजनों से नीतीश कुमार के दूर रहने को पार्टी में खटपट के तौर पर जानकार देखते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में पार्टी पर नीतीश कुमार की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। नीतीश की मर्जी के खिलाफ पार्टी में पहले पत्ता तक नहीं हिलता था।