बेटे चेतन आनंद के सरकारी आवास के गृह प्रवेश में पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा
आनंद मोहन ने कहा – 20 साल से बिहार से लेकर केंद्र की राजनीति को उंगली पर नचा रहे हैं नीतीश कुमार
आनंद मोहन राजपूत समाज के नेता बनकर उभरे थे। उन्होंने नब्बे के दशक में सवर्णों के समर्थन में राजनीति की। आनंद मोहन ने साल 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को काले झंडे दिखा दिए थे।
आनंद मोहन ने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना बनाई। नब्बे के दशक में आनंद मोहन की तूती राजनीति के मैदान में भी बोलती थी। 1990 में जनता दल ने आनंद मोहन को सहरसा के महिषी विधानसभा से टिकट दिया। आनंद मोहन ये चुनाव जीत गए और विधायक बने। राजनीति के मैदान में आनंद मोहन बाहुबली नेता बनकर ही उतरे। तब राजद सुप्रीमो लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे.
मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने पर जनता दल के समर्थन करने पर आनंद मोहन ने फिर अपना रास्ता अलग किया और बिहार पीपुल्स पार्टी नाम से अपना एक दल बना लिया। समता पार्टी से बाद में उन्होंने हाथ मिलाया। आनंद मोहन आरक्षण के खिलाफ थे।
1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद ने राजद उम्मीदवार को हराकर वैशाली लोकसभा सीट से उप चुनाव जीता था। लवली आनंद समता पार्टी की उम्मीदवार बनी थी। 1995 में आनंद मोहन के नाम की चर्चा काफी अधिक थी। उन्होंने तब तीन जगह से विधानसभा चुनाव लड़ा था पर तीनों सीटों से हार गए थे। इसके बाद 1996 में आनंद मोहन समता पार्टी में शामिल हो गए थे।
आनंद मोहन 1996 के आम चुनाव में शिवहर लोकसभा सीट से जीते। उस वक्त जेल में ही रहकर उन्होंने चुनाव जीता था। 1998 में भी इस सीट से उन्होंने जीत दर्ज की थी। तब वो राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार थे। 1999 में आनंद मोहन ने राजद का साथ छोड़ा और उनकी पार्टी ने भाजपा का साथ दिया। राजद उम्मीदवार से हार मिलने पर आनंद मोहन की बीपीपी पार्टी ने तब कांग्रेस से भी हाथ मिलाया।
गोपालगंज में डीएम हत्याकांड मामले में आनंद मोहन को दोषी पाते हुए अदालत ने दोषी करार दिया और निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। आनंद मोहन आजाद भारत के पहले ऐसे विधायक थे जिन्हें मौत की सजा मिली थी। हालांकि हाईकोर्ट ने उनकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।आनंद मोहन जेल गए तो उनकी पत्नी लवली आनंद ने राजनीति की बागड़ोर थामी। कई दल उन्होंने भी बदले. कई बार हार का भी सामना करना पड़ा। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी लवली आनंद को जीत नसीब नहीं हुई, वहीं उनके पुत्र चेतन आनंद को राजद ने विधानसभा का टिकट थमाया और आरजेडी की ओर से जीतकर वो विधानसभा पहुंचे थे।
आनंद मोहन की रिहाई तब हुई जब राजद और जदयू वाली महागठबंधन सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया। नियम बदले जाने का लाभ आनंद मोहन को भी मिला और वो अब बाहर आए हैं। दिवंगत डीएम की पत्नी ने उनकी रिहाई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अब चैलेंज किया है जिसका सुनवाई निरंतर हो रही है।