दीपक कुमार तिवारी
भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर का नाम आज लोक-साहित्य और संस्कृति के आकाश में अमर है। उनकी रचनाएँ “विदेशिया,” “बेटी-बेचवा,” और “गबरघिचोरहा” न केवल समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज बनीं, बल्कि भारतीय समाज में स्त्री-विमर्श और लोक-संस्कृति के पुनर्जागरण की शुरुआत भी की। लेकिन यह विडंबना ही है कि जिस दीपक ने समाज को रोशन किया, उसी के नीचे आज घोर अंधेरा है।
छपरा जिले के कुतुबपुर दियारा गांव में जन्मे भिखारी ठाकुर की जयंती और पुण्यतिथि पर लाखों रुपये खर्च कर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनके नाम पर अनुदान लेने वाले संस्थाओं की कमी नहीं है। मगर उनके परिजन आज भी गरीबी और उपेक्षा का जीवन जीने को मजबूर हैं।
परिवार की बदहाली:
भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील ठाकुर आज चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए भटक रहे हैं। सुशील बताते हैं, “अगर फुआ और फूफा नहीं होते तो मैं शायद एमए तक की पढ़ाई नहीं कर पाता। अब नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा हूँ। पैनल सूची में नाम होने के बावजूद एक साल से नियुक्ति का इंतजार कर रहा हूँ।”
गांव की स्थिति भी दयनीय है। उनका पुराना खपरैल घर टूटने की कगार पर है। गांव में आज तक न पक्की सड़क बनी, न बिजली की व्यवस्था है। बाढ़ और गरीबी ने लोगों की कमर तोड़ दी है।
संघर्ष का प्रतीक, पर असहाय विरासत:
भिखारी ठाकुर का परिवार कभी उनकी कला को जीवित रखने के लिए प्रयासरत था। उनके पुत्र शीलानाथ ठाकुर और पोते राजेन्द्र ठाकुर ने मंडली बनाकर नाटकों का मंचन किया। लेकिन गरीबी के दबाव में यह परंपरा टूट गई। उनके परिवार के सदस्य अब मजदूरी और छोटी-मोटी नौकरियों के सहारे जीवन बिता रहे हैं।
भिखारी ठाकुर का योगदान:
भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों और गीतों के माध्यम से बेमेल विवाह, नशापान, स्त्री शोषण और गरीबी के खिलाफ आवाज उठाई। “विदेशिया” में उन्होंने विरह और सामाजिक प्रताड़ना का सजीव चित्रण किया, जो आज भी प्रासंगिक है। महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें “भोजपुरी का शेक्सपियर” कहा था।
सरकार और समाज की अनदेखी:
भिखारी ठाकुर के नाम पर हर साल सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, मगर उनके परिवार और गांव के हालात नहीं सुधरते। कुतुबपुर गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। न शिक्षा का उचित प्रबंध है, न स्वास्थ्य सुविधाएँ।
समस्या का समाधान:
लोक-संस्कृति के इस पुरोधा के गांव को अगर सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए, तो इसे आदर्श ग्राम बनाया जा सकता है। बिहार सरकार और केंद्र सरकार को भिखारी ठाकुर के परिवार के लिए पेंशन और नौकरी जैसी सुविधाओं का प्रबंध करना चाहिए।
भिखारी ठाकुर की कृतियां आज भी साहित्य के उच्च मानकों पर खरी उतरती हैं। लेकिन यह दुखद है कि उनका परिवार और गांव अपनी ही विरासत की उपेक्षा का शिकार है।