जेडीयू का भविष्य या परिवारवाद की नई शुरुआत?
दीपक कुमार तिवारी
पटना/नई दिल्ली। बिहार की राजनीति में बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इकलौते पुत्र निशांत कुमार के सक्रिय राजनीति में कदम रखने की चर्चा जोरों पर है। लंबे समय से जेडीयू में नए नेतृत्व की मांग और पार्टी की गिरती स्थिति ने इस संभावना को बल दिया है कि 73 वर्षीय नीतीश अब अपने बेटे को राजनीति में लॉन्च कर सकते हैं।
निशांत: नया चेहरा, नई उम्मीद
निशांत कुमार, जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है और राजनीति से अब तक दूर रहे हैं, को पार्टी में लाने की मांग पिछले कुछ महीनों में तेज हो गई है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि तेजस्वी यादव जैसे युवा नेताओं के मुकाबले जेडीयू को भी एक युवा चेहरा चाहिए।
राज्य खाद्य आयोग के प्रमुख विद्यानंद विकल ने हाल ही में निशांत की राजनीति में एंट्री का समर्थन करते हुए लिखा था कि “बिहार को युवा नेतृत्व की जरूरत है, और निशांत में ये क्षमता है।”
नीतीश की मजबूरी या रणनीति?
नीतीश कुमार ने हमेशा परिवारवाद का विरोध किया है, लेकिन जेडीयू के अंदर दूसरे पंक्ति का नेतृत्व न होने और पार्टी की कमजोर होती स्थिति के कारण उन्होंने अब यह कदम उठाने का मन बनाया है। निशांत को पार्टी में शामिल करने से न केवल नेतृत्व की कमी पूरी होगी, बल्कि जेडीयू के कार्यकर्ताओं को एक नई ऊर्जा भी मिलेगी।
तेजस्वी बनाम निशांत: युवा चेहरों की टक्कर
बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव पहले से मजबूत स्थिति में हैं। जेडीयू के नेताओं का मानना है कि निशांत कुमार का राजनीति में आना तेजस्वी के लिए चुनौती बन सकता है। जहां तेजस्वी 9वीं फेल हैं, वहीं निशांत एक शिक्षित और सुलझे हुए नेता के रूप में उभर सकते हैं।
राजनीतिक पंडितों की राय:
कुछ विशेषज्ञ इसे नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत का स्वाभाविक विस्तार मानते हैं, तो कुछ इसे परिवारवाद का उदाहरण। हालांकि, निशांत की सादगी और स्वच्छ छवि को लेकर सकारात्मक चर्चाएं भी हो रही हैं।
क्या कहती है जेडीयू?
जेडीयू के कई नेताओं ने पहले ही मांग उठाई है कि निशांत को पार्टी का कोई पद दिया जाए। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार इस घोषणा को औपचारिक रूप दे सकते हैं।
नीतीश की विरासत का भविष्य:
निशांत का राजनीति में प्रवेश जेडीयू के लिए आखिरी दांव साबित हो सकता है। लालू और तेजस्वी यादव के खिलाफ जेडीयू को मजबूत करने के लिए नीतीश का यह कदम पार्टी के लिए निर्णायक हो सकता है।
निष्कर्ष:
बिहार की राजनीति में युवा नेताओं का दबदबा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में नीतीश कुमार का यह फैसला राजनीति में नई दिशा और भविष्य की तैयारी को दर्शाता है। अब देखना यह होगा कि क्या निशांत कुमार जेडीयू को नई ताकत दे पाएंगे या यह कदम सिर्फ राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगा।