दीपक कुमार तिवारी
रांची। एनडीए की राजनीति का अगलधर बना बीजेपी के हौसले पर हरियाणा जीत का रंग गहराने लगा है। हो यह रहा है कि बीजेपी अब अपनी शर्त पर गठबंधन की राजनीति को आकार देने में लग गई है। इस टेंपरामेंट का उदाहरण हरियाणा क्या बना, भाजपा अब इसे झारखंड चुनाव में भी आजमाने लगी है। एक तो भाजपा की सधी राजनीति और दूसरा झारखंड विधान सभा चुनाव में जनता दल यू का इतिहास का असर सीट बंटवारे में दिखने लगा है।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) की चुनाव प्रबंध समिति की बैठक के बाद प्रदेश के चुनाव सह प्रभारी हिमन्त बिश्व शर्मा के बोल काफी आक्रामक दिखे। अपनी और से यह घोषणा करते साफ-साफ कहा कि सहयोगियों के साथ सीटों पर तालमेल पूरा हो गया है।
जनता दल यू दो विधान सभा सीटों पर उम्मीदवार खड़ी करेगी। यह दीगर कि जनता दल यू एक बड़ी उम्मीद के साथ 11 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। यह खुद नीतीश सरकार के मंत्री विजय चौधरी ने मीडिया को बताया। उधर, झारखंड जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो ने भी दो सीटों की हिस्सेदारी पर अपना रोष प्रकट करते कहा है कि सीट शेयरिंग को लेकर अंतिम फैसला जदयू के आलाकमान को तय करना है, लेकिन हमारी तैयारी 11 विधान सभा को लेकर है।
जनता दल यू के 11 सीटों पर लड़ने के दावे का आधार वर्ष 2005 का विधान सभा चुनाव है। इस चुनाव में जदयू ने कुल 18 विधान सभा सीटों पर खम ठोका था और 6 विधान सभा सीटों पर जीत भी मिली थी। तब जदयू को 4 प्रतिशत वोट भी मिला था।
भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि जदयू का जनाधार भी कम हुआ है। 2009 में जदयू 14 सीटों पर लड़ी और दो सीटें ही जीत पाई। लेकिन 2014 और 2019 विधान सभा चुनाव में जदयू एक भी सीट जीत नहीं पाई। भाजपा 2009 को आधार मानकर जदयू को दो सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है।
बहरहाल, अपने-अपने तर्क हैं और अपने अपने दावे। जदयू के सीट शेयरिंग की बात अब तो केंद्रीय चुनाव समिति को तय करना है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व शर्मा केंद्रीय चुनाव समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपेगे। अब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और झारखंड के प्रभारी अशोक चौधरी से बातचीत के बाद सीट शेयरिंग की अधिकृत घोषणा की जाएगी।