प्रो राजकुमार जैन
भाग (2)
प्रोफेसर राजकुमार जैन के इस लेख के पहले भाग में आप पढ़ चुके हैं कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना सम्मेलन में किस प्रकार से कांग्रेस के एजेंडा पर मज़दूरों और किसानों के हितों के सर्वोपरि रखने के प्रयास शुरू हो गए थे। लेख के इस भाग में भी जारी हैं आचार्य नरेंद्र देव द्वारा दिए गए अध्यक्षीय भाषण मे मजदूर कामगारों से संबंधित अंश एवं उसके बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के प्रथम सम्मेलन में पारित मज़दूरों से संबंधित प्रस्ताव।
‘कामगारों के संघर्ष को कांग्रेस के संघर्ष के साथ जोड़ना चाहिए और इसी तरह इसे किसानों एवं निम्न मध्यम वर्ग के संघर्ष के साथ जोड़ना चाहिए। श्रमिक वर्ग कांग्रेस आंदोलन से बहुत कम प्रभावित हुआ है। सामान्य तौर पर हमने उन्हें दूर रखा और भारतीय पूंजीपतियों के खिलाफ उनके संघर्ष में नियमत: हमने रुचि नहीं ली है। यही कारण है कि आज की सबसे प्रमुख घटनाओं में एक कठिन एवं विपरीत परिस्थिति के बावजूद बहादुरी से चलाई गई मुंबई के कपड़ा कामगारों की आम हड़ताल औसत कांग्रेस जन की कल्पना पर असर नहीं डालती और न हीं इसमें सक्रिय सहानुभूति उत्पन्न करती है। ऐसा लगता है कि उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं। बड़ी संख्या में कामगार निकाले जा रहे हैं, उनकी मजदूरी घटाई जा रही है, उनका जीवन स्तर नीचा किया जा रहा है। हम कम से कम हड़ताल की अवधि में उनके निर्वाह के लिए धन तो इकट्ठा कर सकते थे। लेकिन हम इन चीजों पर नहीं सोचते क्योंकि जैसे तैसे हम सोचने लगे हैं की औद्योगिक झगड़ों में रुचि लेना हमारा काम नहीं है। क्या कामगारों का विश्वास प्राप्त करने का यही तरीका है? आश्चर्य नहीं कि श्रमिक वर्ग के संघर्षों का हमारे आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। वे अपने तरीके से चलते हैं, यद्यपि यह एक तथ्य है कि उनके द्वारा शुरू किया गया कोई बड़ा संघर्ष देश के आगामी राजनीतिक संघर्ष का सूचक नही है। कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी बड़े राष्ट्रीय संघर्षों के पहले हड़ताले और औद्योगिक अशांति के अन्य रूप प्रकट हुए हैं। जब दोनों संघर्ष एक दूसरे के साथ मिल गए हैं, तभी राष्ट्रीय संघर्ष अपने उच्चतम बिंदु पर पहुंचा है। यदि दोनों शक्तियों में सचेतन संबंध स्थापित कर दिया जाता है तो संघर्ष अधिक प्रभाव और गति से लंबे समय तक चलाया जा सकता है। देश में अभी भी क्रांतिकारी वस्तुनिष्ठ परिस्थिति बनी हुई है और अगर हमने शक्तियों में समन्वय कर लिया तो आज जो उदासी और निराशा छायी हुई है वह हममें नहीं होती।
भारत में श्रम शक्ति गांवौ से आती है, औद्योगिक कामगार दिल से ग्रामीण बना रहता है।
असल में श्रमिक वर्ग हरावल दस्ता है, जबकि किसान और बुद्धिजीवी मात्र इसके पूरक हैं, कामगारों और किसानों को अपने साथ लाकर हमें अपने आंदोलन का सामाजिक आधार व्यापक बनाना चाहिंए।’
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने एक रणनीति अपनाई हुई थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन से पहले दिन सोशलिस्ट अपना सम्मेलन आयोजित कर अपना प्रस्ताव तैयार कर अगले दिन कांग्रेस के इजलास में पेश करते थे। हालांकि वे जानते थे कि कांग्रेस संगठन में यह पास होने वाला नहीं है, फिर भी एक प्रगतिशील माहौल बनाना तथा मजदूर किसानों के मसलों को उजागर करने के मकसद से यह कार्य करते थे।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के पटना स्थापना सम्मेलन में कई प्रस्ताव पार्टी ने पेश किये, जिसमें एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव वैकल्पिक प्रस्ताव था। जिसमें मुख्य रूप से लिखा गया था कि कांग्रेस को एक ऐसा कार्यक्रम अपनाना चाहिए जो कर्म और उद्देश्य से समाजवादी हो, तथा इसका उद्देश्य समाजवादी राज्य की स्थापना हो।
1. सभी शक्तियों का उत्पादक जनता को हस्तांतरण;
2. उत्पादन, वितरण एवं विनिमय के सभी संयंत्रों के उत्तरोत्तर समाजीकरण के उद्देश्य से इस्पात, कपड़ा, जूट, रेलवे, जहाजरानी, खदान, बैंक, एवं सार्वजनिक उपयोगिता जैसे प्रमुख एवं आधारभूत औद्योगिक का समाजीकरण;
3. राजाओं, जमीदारों एवं अन्य सभी शोषक -वर्गों का खात्मा;
4. किसानों एवं मजदूरों पर बकाया ऋणों की माफी;
कांग्रेसजन किसान एवं मजदूर संघों का संगठन करे, और जहां ऐसे संघ अस्तित्व में है वहां आम लोगों के रोजमर्रा संघर्षों में हिस्सा लेने और अंततः उन्हें अंतिम लक्ष्य तक ले जाने मे नेतृत्व करने के विचार से उनमें प्रवेश करें।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने जो प्रस्ताव कांग्रेस सम्मेलन में प्रस्तुत किये वह नामंजूर हो गये तथा कांग्रेस ने इसे कांग्रेस के सिद्धांतों के विपरीत भी बतलाया।
अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का पहला सम्मेलन 21 अक्टूबर 1934 को मुंबई में हुआ था क्योंकि पटना के स्थापना सम्मेलन में तफसील से पार्टी की नीतियों को स्पष्ट नहीं किया जा सका था। परंतु इसके प्रथम सम्मेलन में पार्टी की नीतियों ,कार्यक्रमों, सिद्धांतों की विस्तार से व्याख्या की गई थी, जिसमें मजदूरों से संबंधित प्रस्ताव में यह कहा गया –
1. श्रमिकों की कृषि दासता तथा कृषि दासता की सीमा वाली स्थिति से मुक्ति।
2. धरना तथा हड़ताल के लिए यूनियन बनाने का अधिकार।
3. मालिकों तथा सरकारी उपक्रमों में श्रमिक संघो को अनिवार्य मान्यता।
4. जीवन-यापन योग्य वेतन,
5. 40 घंटे का सप्ताह,
6. स्वास्थ आवास एवं कार्य स्थिति,
7. बेरोजगारी, बीमारी, दुर्घटना, वृद्धावस्था आदि के लिए बीमाl
8. सभी कर्मचारियों को प्रतिवर्ष पूर्ण वेतन के साथ एक माह का अवकाश तथा महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था के दौरान पूर्ण वेतन के साथ दो माह का अवकाश।
9. स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों की कारखाने में तथा 16 वर्ष से नीचे के बच्चों व औरतों की भूमिगत खानों में कार्य कराने पर प्रतिबंध।
10. समान कार्य के लिए समान वेतन।
11. जब कभी मांग हो तो वेतन का साप्ताहिक भुगतान।
जारी है।——
https://raagdelhi.com/news/labour-movement-in-india-historical-perspective-part-2-by-prof-rajkumar-jain-