प्रोफेसर राजकुमार जैन
9 अगस्त की क्रांति की लपटें पूरे हिंदुस्तान में उठ रही थीं। दिल्ली में भी 9अगस्त को जबरदस्त संघर्ष हुआ। दिल्ली के पुराने सोशलिस्ट नेता मरहूम रूपनारायण जी, जो जयप्रकाश नारायण के दिल्ली में सबसे प्रमुख साथियों में थे, उन्होंने बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान की सभा में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव तथा एक प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया था। आज़ादी के आंदोलन में चार बार लंबी-लंबी अंग्रेजों की जेल भोगी थी। इसके साथ ही इनकी माताजी श्रीमती शर्बती देवी तथा बड़ी बहन श्रीमती गुणवती देवी एवं छोटी बहन श्रीमती शांति देवी वैश्व भी सत्याग्रह करते हुए जेल गई थीं। वे 9 अगस्त 1942 के बाद दिल्ली में हुए जन आंदोलन का हाल बताते थे कि दिल्ली भी इन हलचलों से प्रभावित हुई। 9 अगस्त की सुबह दिल्ली के सभी कांग्रेसी नेता लाला देशबंधु गुप्ता, मौलाना नुरुद्दीन बिहारी, सोशलिस्ट नेता मीर मुश्ताक अहमद, इमदाद साबरी (सोशलिस्ट), श्रीमती मेमोबाई, लाला हनुमंत सहाय, डॉ. युद्धवीर सिंह, बैरिस्टर फरीद-उल हक अन्सारी (सोशलिस्ट) आदि गिरफतार कर लिये गए।
कांग्रेसी कार्यकर्ता टोलियाँ बनाकर शहर में घूमते रहे दिल्ली में पूरी हड़ताल रही। सब कारोबार बंद हो गए। मिल मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। दिल्ली कांग्रेस कमेटी के दफ्तर पर पुलिस ने कब्जा कर लिया, वहाँ ताले लगा दिये गये। 10 अगस्त को एक बहुत बड़े जुलूस का आयोजन हुआ। इस जुलूस को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी-चार्ज किया जिसमें अनेक लोग घायल हो गए। कांग्रेस के भूमिगत नेताओं ने निर्णय किया कि 11 अगस्त की सुबह 9 बजे चाँदनी चौक घंटाघर के नीचे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हकीम खलील-उर-रहमान राष्ट्रीय झण्डा फहराएंगे। यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। निर्धारित समय पर पुलिस ने चारों ओर से घंटाघर को घेर लिया ताकि हकीम साहब वहाँ न पहुँच सकें। इसके बावजूद सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता घंटाघर के आसपास जमा हो गए, हकीम साहिब के आने का इंतज़ार करने लगे। समय आहिस्ता-आहिस्ता बीत रहा था। 9 बजनेवाले थे लेकिन निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार राष्ट्रीय झण्डा फहराने के लिए हकीम साहब उपस्थित नहीं थे। प्रतीक्षा करते कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और आम लोगों में घबराहट फैलने लगी। सबके सामने प्रश्न यह था कि इतनी बड़ी संख्या में पुलिस की मौजूदगी में हकीम साहब घंटाघर तक पहुँचेंगे कैसे?
उन दिनों परदानशीं औरतों या मरीजों के लिए डोलियों का प्रबंध रहता था। उपस्थित लोगों ने देखा कि ऐसी ही एक डोली फव्वारे की ओर से चली आ रही है। पुलिस और उपस्थित लोगों ने यह समझा कि इस डोली में कोई परदानशीं औरत आ रही है, इसलिए पुलिस ने इस डोली को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। घंटाघर के ठीक नीचे वह डोली रुक गई। उसमें से परदा हटाकर हकीम साहब बाहर निकल आये। उनके हाथ में राष्ट्रीय झण्डा था। हकीम साहब ने पहले ही सब कुछ समझ लिया था कि घंटाघर पहुँचकर उन्हें क्या करना है, हकीम साहब को देखकर चारों ओर से कांग्रेसी कार्यकर्ता और आम लोग उन्हें घेरकर खड़े हो गए। पुलिस भौचक्का हो यह सब देखती रही।
हकीम साहब ने एक मेज पर खड़े होकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की सार्थकता पर एक अत्यंत ही जोशीला भाषण दिया। उस भाषण के बाद लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ़ नारे बुलंद कर दिये। कुछ क्षण पश्चात् हकीम साहब झण्डा लिये हुए फतेहपुरी मस्जिद की ओर बढ़े तो उनके पीछे हजारों लोगों की भीड़ भी चली। मस्जिद के बाहर बहुत बड़ी संख्या में मौजूद पुलिस ने हकीम साहब को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन्हें गिरफ्तार नहीं होने दिया। पुलिस ने लोगों पर जबर्दस्त लाठीचार्ज किया तो लोगों ने जवाब में पत्थर फेंकने शुरू कर दिये। अंत में पुलिस ने हकीम साहब को गिरफ्तार कर उन्हें कोतवाली पहुँचा दिया। हजारों उपस्थित लोगों की भीड़़ पुलिस की लाठियों से बचने के लिए घंटाघर की ओर वापिस लौटने लगी। घंटाघर पर पुलिस ने इन लोगों पर लाठियाँ चलायीं। घंटाघर के सामने स्थित दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटी के कार्यालय में आग लगा दी, भीड़ ने क्रुद्ध होकर वहाँ खड़ी दो ट्रामों में भी आग लगा दी, चाँदनी चौक के डाकघर पर भी हमला बोला गया। कटरा नील के बाहर प्रदर्शन करते हुए कई लोग घायल हो गए तथा कई नौजवानों की जान चली गई। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए घुड़सवार सिपाहियों का उपयोग किया गया।
सब तरफ सरकारी संपत्ति को नष्ट किया गया जा रहा था। लोगों की भीड़ पर पुलिस ने गोलियाँ चलाईं, जिसमें अनेक लोग मारे गए और बहुत से लोग जख्मी हुए। रेलवे स्टेशन के सामने एक पेट्रोल पंप में भी आग लगा दी गई। उस समय की दिल्ली में एकमात्र आठ मंजिली ऊंची इमारत जिसे ‘पीली कोठी’ के नाम से जाना जाता था। उसमें रेलवे का दफ्तर था, में भी भीड़ ने आग लगा दी। पीली कोठी जलानेवाली भीड़ में सोशलिस्ट बाल किशन ‘मुजतर’ भी थे, जिनके साथ कालीचरण किशोर और पंजाब के मशहूर सोशलिस्ट नेता रणजीत सिंह मस्ताना भी थे। इस जगह पर पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई, जिसमें दो व्यक्ति मारे गए। जिस अफसर ने गोली चलाई थी, उसको लोगों ने घेरकर पत्थरों से वहीं मार डाला। शाम 7 बजे के पश्चात् दिल्ली नगर को अंग्रेज़ फौज के सुपुर्द कर दिया गया। 11, 12, 13 अगस्त को फौज ने लगभग 50 स्थानों पर गोलियां चलाईं। 150 से अधिक लोग मारे गए और 300 से अधिक व्यक्ति जख्मी हुए।
सोशलिस्ट नेता ब्रजमोहन तूफान बताते थे कि हमने अपने कालिज- हिंदू कालिज- से एक जुलूस निकाला जो कश्मीरी गेट से शुरू होकर चाँदनी चौक पहुँचा। जुलूस ज्यों ही पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुँचा चारों तरफ सरकारी इमारतों में आग लगी हुई थी, धुआँ ही धुआँ निकल रहा था। नई सड़क के पास हमारे जुलूस के सामने गुरखा बटालियन का एक जत्था पहुँच गया। चारों ओर महात्मा गाँधी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। इतनी देर में पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज शुरू कर दिया गया, जिसके कारण बहुत सारे लोगों के सिर फट गए, हडिड्याँ टूट गईं। घरों की छतों से लोग पत्थर फेंक रहे थे, कुछ ही क्षणों के बाद सशस्त्र पुलिस दल भी वहाँ पहुँच गया, हम किसी तरह सिर पर हाथ रखकर वहाँ से निकले।
एक तरफ पुरानी दिल्ली में आंदोलनकारी और पुलिस फौज में संघर्ष हो रहा था वहीं नई दिल्ली के कनाट प्लेस में महात्मा गाँधी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
10 अगस्त 1942 को रॉबर्ट टोर रसेल के डिज़ाइन किये कनाट प्लेस में भी अंग्रेजों के स्वामित्व वाली दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था। सुबह से ही सभी उम्र के दिल्ली वाले कनाट प्लेस में इकट्ठा होने शुरू हो गए, इनमें से ज्यादातर खादी का कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे। उन दिनों कनाट प्लेस में गोरों और आयरिश लोगों की अनेक दुकानें थीं, तब कनाट प्लेस गोरों का गढ़ था। भीड़ ने सबसे पहले ‘रैकलिंग एण्ड कंपनी’, ‘आर्मी एण्ड नैवी’, ‘फिलिप्स एण्ड कम्पनी’ और ‘लॉरेंस एण्ड म्यों’ नामक शो रूमों को फूँका। ‘रैकलिंग एण्ड कम्पनी’ जो कि एक हिन्दुस्तानी की थी, अंग्रेज़ी नाम होने के कारण आंशिक रूप से जल गई। हैरानी की बात है कि आंदोलकारियों ने कनाट प्लेस में चीनी मूल के तीन शोरूम डी. मिनसन एण्ड कम्पनी, चाइनीस, आर्ट सेंटर और जॉन ब्रदर्स तको किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया। दिल्ली में आंदोलन का नेतृत्व हकीम अजमल खां, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, बैरिस्टर आसिफ अली, लाला शंकरलाल, बहन सत्यवती (सोशलिस्ट), कृष्ण नायर (सोशलिस्ट), अरुणा आसफ अली (सोशलिस्ट) कर रहे थे। रामचरण अग्रवाल, कुंदन लाल शर्मा, प्रेमजस राय, मोहन भाई, तुलसीराम सेठ, लाला ओंकार नाथ व राधा रमन जुलूस में शामिल थे।