चरण सिंह
भले ही आज की तारीख में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी चारों ओर से हो रही है। भले ही योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उनकी ही टीम के कई लोग खड़े हो गये हैं। भले उनके खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री दोनों बताये जा रहे हों। भले ही उनके निपटाने की चर्चा चारों ओर हो पर जिस तरह से उनके पक्ष में आरएसएस खड़ा है। बड़े स्तर पर आम लोग खड़े हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को निपटाना तो दूर उन्हें छेड़ा भी नहीं जा सकता है। उल्टे योगी आदित्यनाथ नरेन्द्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। या यह कहें कि आरएसएस शताब्दी वर्ष मनाने के लिए योगी आदित्यनाथ को या तो प्रधानमंत्री बनवाएगा या फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष।
दस साल तक देश पर एकछत्र राज करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने कभी सोचा न होगा कि एक सूबे का मुख्यमंत्री उनके सामने ऐसे डटकर खड़ा हो जाएगा कि लाख जतन के बावजूद वे उसका कुछ बिगाड़ न पाएंगे। जी हां मैं बात कर रहा हूं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की। 2017 में मोदी और शाह के न चाहते हुए मुख्यमंत्री बनने वाले योगी आदित्यनाथ को 2022 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह उन्हें हटाकर केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे पर योगी ने केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू सीट से ही हरवा दिया। दरअसल बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने न केवल लंबे समय तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज चौहान को प्रदेश की राजनीति से अलग किया बल्कि राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को साइड लाइन कर दिया। जिसे जहां चाहा बैठाया और जिसे जहां से चाहा हटाया। यहां तक सरकार में दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले राजनाथ सिंह को भी औकात बताकर रखा। लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को दरकिनार क्या किया कि भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। पार्टी 33 सीटों पर ही सिमट कर रह गई।
लोकसभा चुनाव में एनडीए की जीत का श्रेय लेने वोले प्रधानमंत्री खुलकर कह न सके कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की हार की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। उल्टे योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खुलवा दिया गया। योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी के पीछे गृहमंत्री अमित शाह का नाम बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में न केवल उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य बल्कि दूसरे उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी, मिर्जापुर से रमेश रत्नागिरी, गोरखपुर से देवेन्द्र प्रताप सिंह, बदलापुर से विधायक रमेश मिश्र के साथ कई नेताओं ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इन सबके बावजूद योगी के माथे पर कोई शिकन न आई। उल्टे उन्होंने उप चुनाव के लिए बनाई गई 30 मंत्रियों की सूची में केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक का नाम नहीं रखा। जब दिल्ली तलब किया गया तो बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय का काम कर रहे आरएसएस नेता अरुण कुमार के लखनऊ आने की खबर चला दी। हालांकि बाद में अरुण कुमार ने यह मीटिंग कैंसिल कर दी। अरुण कुमार ने मीटिंग में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह बुलाया था पर यह मीटिंग भी कैंसिल कर दी गई।
मीटिंग कैंसिल होने के पीछे का कारण बताया जा रहा है कि अरुण कुमार इस मीटिंग को गुप्त रूप से करना चाहते थे पर खबर लीक हो गई तो उन्होंने पोस्टपोन कर दी। हालांकि यह मीटिंग पोस्टपोन होने के पीछे आरएसएस का बीजेपी नेतृत्व से टकराव मान जा रहा है। मोहन भागवत गुजरात लॉबी को अब नहीं पचा पा रहे और मोदी और अमित शाह मोहन भागवत को कोई खास तव्वजो नहीं दे रहे हैं। यही वजह रही कि इन लोगों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से कहलवा दिया की आज की भारतीय जनता पार्टी अपने में सक्षम है और अब पार्टी को आरएसएस की कोई जरूरत नहीं। अब मोहन भागवत इन दोनों नेताओं को आरएसएस का वजूद बता रहे हैं।