अनूप जोशी
रानिगंज- रानिगंज का ऐतिहासिक पीतल का रथ इस वर्ष अपने 99वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। इस रथ का निर्माण सियारशोल राज परिवार के सदस्य प्रमथनाथ मल्लिक ने 1925 से पहले कोलकाता के चितपुर के प्रसाद चंद्र दास से करवाया था। पहले इसे लकड़ी से बनाया जाता था, लेकिन एक हादसे में लकड़ी का रथ जल जाने के बाद पीतल का रथ बनाया गया।
रथ के चारों ओर रामायण-महाभारत की विभिन्न देवी-देवताओं की लीलाओं और कृष्ण लीलाओं की कहानियों को मूर्तियों के रूप में उकेरा गया है। रथ के शीर्ष पर राज परिवार के कुल देवता दामोदर चंद्र जिउ के साथ जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा विराजमान होते हैं। पहले यह रथ पुराने राजबाड़ी से नए राजबाड़ी तक ले जाया जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसे रात में नए राजबाड़ी से पुराने राजबाड़ी तक ले जाने की परंपरा शुरू हो गई है।
रथ की सुरक्षा और उसमें रखी मूर्तियों की चोरी से बचाव के लिए इसे सालभर नए राजबाड़ी के सामने कड़ी निगरानी में रखा जाता है। पुरी के जगन्नाथ रथ यात्रा के समय से ही यहाँ भी रथ यात्रा का आयोजन होता है और इस अवसर पर मेला भी लगता है।
इस मेले में प्राचीन समय की खेती से जुड़ी आवश्यक वस्तुओं से लेकर आधुनिक समय की विभिन्न सामग्रियाँ, महिलाओं के प्रसाधन और सजावट की चीजें, विभिन्न पौधों और अचार की दुकानें होती हैं। साथ ही, विभिन्न खाद्य स्टॉल और नागरदोलाएँ भी मेले का आकर्षण हैं। इस साल भी, रथ यात्रा और मेले के दौरान बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ी। हजारों भक्तों ने रथ की रस्सी खींचकर पीतल के रथ को लंबी दूरी तक खींचा। इस भव्य आयोजन को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने भी कड़ी निगरानी रखी। यह मेला आठ दिनों तक चलेगा, जिसमें भक्त और पर्यटक बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे।