मुकेश कुमार शर्मा
किशोरावस्था शारीरिक, मानसिक, वौचारिक और सामाजिक बदलावों का दौर होता है। इस दौरान किशोर-किशोरियों को सही सलाह और जिज्ञासाओं व समस्याओं के निदान के बारे में समुचित सही जानकारी मुहैया कराना बहुत ही जरूरी होता है। इसी दौरान किशोरियों में मासिक धर्म या माहवारी की शुरुआत होना भी एक सामान्य प्रक्रिया है । 10 से 15 साल की बालिकाओं में इस दौरान यह एक तरह का हार्मोनल बदलाव का दौर शुरू होता है। हर माह पांच दिन तक चलने वाले मासिक धर्म या माहवारी के दौरान बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से स्वच्छता और साफ़-सफाई का खास ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है। इस दौरान माहवारी में स्वच्छता बनाये रखने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले विकल्पों की जानकारी होना भी ज़रूरी है। इन विकल्पों की खामियों और ख़ूबियों से पूरी तरह परिचित होकर अपने लिए बेहतर विकल्प चुनना भी महिलाओं के लिए लाभदायक होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल 28 मई को माहवारी स्वच्छ्ता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष इस दिवस की थीम है- #पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड के लिए एकजुट “टुगेदर फॉर ए #पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड”। यह एकजुटता ऐसी होनी चाहिए कि वैश्विक स्तर पर मासिक धर्म एवं स्वच्छ्ता के सामंजस्य से महिलाओं और युवतियों को स्वास्थ्य लाभ मिल सके।
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग की 72.6 प्रतिशत युवतियां माहवारी के दौरान स्वस्थ व सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। इनमें शहरी क्षेत्र की 86.7 फीसद और ग्रामीण क्षेत्र की 68.4 फीसद लड़कियां शामिल हैं। एनएफएचएस-4 (2015-16) के आंकड़े की बात करें तो उस दौरान उत्तर प्रदेश में इस आयु वर्ग की महज 47.1 प्रतिशत लडकियां ही माहवारी के दौरान सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती थीं। शहरी लड़कियों में यह आंकड़ा 68.6 प्रतिशत था और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली लड़कियों का आंकड़ा 39.9 फीसद था। इससे साफ़ अनुमान लगाया जा सकता है कि महिलाओं में माहवारी में स्वच्छता व उसके प्रबंधन को लेकर औपचारिक ज्ञान में वृद्धि के साथ ही जागरूकता भी आई है, जिसमें सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों का अहम योगदान है। ग्रामीण परिवेश के आंकड़ों में कमी का प्रमुख कारण यह है कि यहाँ महिलाएं और युवतियां कई तरह की समस्याओं से जूझती हैं, जैसे- माहवारी से जुड़ी कई तरह की प्रचलित भ्रांतियां, घर के इस्तेमाल किये गए कपड़े को धूप में सुखाने में हिचकिचाहट आदि, जिसके चलते संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और उचित माहवारी प्रबंधन का अभाव बना रहता है। ऐसे में माहवारी के सभी विकल्पों की उन्हें जानकारी होने के साथ ही महिलाओं का अधिकार भी है कि वह अपनी परख से, अपनी जरूरत और आमदनी के अनुरूप बेहतर विकल्प चुन सकें। मासिक धर्म को लेकर किशोरियों को किसी तरह का तनाव नहीं पालना चाहिए क्योंकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इस दौरान अपने खानपान का समुचित ध्यान रखने के साथ ही भरपूर आराम भी करना चाहिए।
किशोरियों व महिलाओं के समग्र विकास में मासिक धर्म कोई अवरोधक न बने, इसके लिए विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं ने आगे बढ़कर उन्हें इस बारे में जागरूक करने के साथ ही इस दौरान इस्तेमाल होने वाले सेनेटरी पैड की खूबियाँ भी समझाना शुरू किया है। यही नहीं घर पर ही इसके बनाने की विधि समझाने के साथ ही उसके सही इस्तेमाल से संक्रमण से बचाव की खूबियाँ भी बताई जा रहीं है । इस पहल से लोग जुड़ भी रहे हैं और इस विषय पर चुप्पी भी तोड़ रहे हैं, क्योंकि यह समाज में एक ऐसा विषय था, जिस पर लोग बात करना ही नहीं चाहते थे। यह बदलाव का दौर युवतियों के समग्र विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
महिलाएं सुविधा के अनुसार माहवारी से जुड़े उत्पादों का चुनाव करती हैं। सेनिटरी नैपकिन को हर चार से छह घंटे बाद बदलना चाहिए। पैड को लंबे समय तक पहने रहने से त्वचा पर रैशेज और संक्रमण भी हो सकते हैं । जननांगों को अच्छी तरह से धोकर पोछ लेना चाहिए ताकि सेनिटरी नैपकिन गीला न हो। सेनिटरी नैपकिन को किसी पेपर में लपेटकर ही डस्टबिन में डालना चाहिए। इन्हें टॉयलेट में या खुले में नहीं फेंकना चाहिए। माहवारी एवं स्वच्छ्ता का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है, यह सम्बन्ध महिलाओं एवं युवतियों में आत्मविश्वास के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
(लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल-इंडिया के एक्जेक्युटिव डायरेक्टर हैं)