समस्तीपुर पूसा डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 17-21 अप्रैल, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमान की अवधि में उत्तर बिहार के जिलों में आसमान प्रायः साफ रह सकता है। मौसम के शुष्क बने रहने का
अनुमान है। इस अवधि में अधिकतम तापमान 39 से 40 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है। जिसके चलते दोपहर में लू की स्थिति बन सकती है। न्यूनतम तापमान 21 से 23 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकती है।
पूर्वानुमानित अवधि में औसतन 10 से 12 कि०मी० प्रति घंटा की रफ्तार से पछिया हवा चलने की सम्भावना है।
सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 65 से 75 प्रतिशत तथा दोपहर में 35 से 45 प्रतिशत रहने की संभावना है।
समसामयिक सुझाव देते हुए मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि मौसम के शुष्क रहने की संभावना को देखते हुए तैयार गेहूँ, अरहर एवं मक्का फसल की कटनी तथा दौनी करें। गेहूँ एवं मक्का के दानों को अच्छी तरह धूप में सूखाने के बाद भंडारण करें।
विगत माह में बोयी गई मूंग व उरद् की फसलों में निकाई-गुराई एवं बछनी करें। इन फसलों में सघन रोमोवाली सुडिया की निगरानी करें। इनके सुडियो के शरीर के उपर काफी घने बाल पाये जाते है। यह मूंग एवं उरद के पौधों के कोमल भागों विशेषकर पत्तियों को खाती है। इनकी संख्या अधिक रहने पर कभी-कभी केवल डण्ठल ही शेष रह जाती है। इस प्रकार इस कीट से फसल को काफी नुकसान एवं उपज में काफी कमी आती है। रोक-थाम हेतु फसल में मिथाइल पैराथियान 50 ई०सी० दवा का 2 मि०ली०/लीटर या क्लोरपाईरिफॉस 20 ई०सी० दवा का 2.5 मि०ली०/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल में छिडकाव करें।
बसंतकालीन मक्का की फसल जो घुटने की ऊचाई के बराबर हो गयी हो, मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें। आवष्यक नमी हेतु सिंचाई करें। इन फसलों में तना छेदक कीट की निगराणी करें। शुष्क एवं गर्म मौसम इस कीट के फैलाव के लिए अनुकूल वातावरण है। अण्डे से निकलने के बाद इस कीट की छोटी-छोटी सुंडियों मक्का की कोमल पत्तियों को खाती है तथा मध्य कलिका की पत्तियों के बीच घुसकर तने में पहुंच जाती है तथा गुदा को खाती हुई जड़ की तरफ बढ़ते हुए सुरंग बनाती है। फलस्वरुप मध्य कलिका मुरझाई हुई नजर आती है जो बाद में सुख जाती है। इस प्रकार पौधे की बढ़वार रुक जाती है एवं उपज में काफी कमी आती है। इस कीट के रोकथाम हेतु क्लोरपाईरिफॉस 20 ई०सी० दवा का 2.5 मि०ली०/लीटर पानी की दर से घोल
बनाकर फसल में समान रुप से छिडकाव करें। लीची के पेड़ में फल बेधक कीट के शिशु जो उजले रंग के होते हैं। यह फलों के डंठल के पास से फलो में प्रवेश कर गुदे को खाते हैं जिससे प्रभावित फल खाने लायक नहीं रहता। इस कीट से बचाव हेतु लीची के पत्तियों एवं टहनियों पर प्रोफेनोफॉस 50 ई०सी० का 10 मि०ली० या कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील पॉवडर का 20 ग्राम दवा को 10 लीटर पानी में घोलकर अप्रैल माह में 15 दिनों के अन्तराल पर प्रति पेड़ की दर से दो छिड़काव करें। किसान भाई लीची के बगीचों में नमी बनाये रखें।
आम के पेड़ में मिलीचग (दहिया कीट) की निगरानी करें। यह कीट चिपटे गोल आकार के पंखहीन तथा शरीर पर सफेद दही के रंग का पॉउडर चिपका
रहता है। यह आम के पेड़ में मुलायम डालों और मंजर वाले भाग में बहुतो की संख्या में चिपका हुआ देखा जा सकता है तथा यह उन हिस्सों से
लागातार रस चुसता रहता है जिससे अक्रान्त भाग सुख जाता है तथा मंजर झड़ जाते हैं। इस कीट से रोकथाम हेतु डाइमेथोएट 30 ई०सी०दवा का 1.0 मि०ली०/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पेड़ पर समान रुप से छिडकाव करें। आम के बगीचों में नमी बनाये रखें। गरमा सब्जियों जैसे भिन्डी, नेनुआ, करेला, लौकी (कद्दू), और खीरा की फसल में आवष्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई एवं सिंचाई करें। सब्जियों में कीट एवं
रोग-व्याधि की निगरानी प्राथमिकता से करते रहें। कीट का प्रकोप इन फसलों में मि० ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव मौसम साफ रहने पर करें। दिखने पर मैलाथियान 50 इ०सी० या डाइमेथोएट 30 ई०सी० दवा का 1
टमाटर की फसल को फल छेदक कीट से बचाव हेतु खेतों में पक्षी बसेरा लगायें। कीट से ग्रसित फलो को इकठा कर नष्ट कर दें, यदि कीट की संख्या अधिक हो तो स्पिनोसेड 48 इ०सी०/1 मि०ली० प्रति 4 ली० पानी की दर से छिड़काव मौसम साफ रहने पर करे।
भिण्डी की फसल में लीफ हॉपर कीट की निगरानी करे। यह कीट दिखने में सुक्ष्म होता है। इसके नवजात एवं व्यस्क दोनो पत्तियों पर चिपक कर रस चुसते है। पत्तियाँ पीली तथा पौधे कमजोर हो जाते है, जिससे फलन प्रभावित होती है। इसका प्रकोप दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मी०ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव मौसम साफ रहने पर ही करें। फलदार वृक्षों तथा वानिकी पौधों को लगाने के लिए अनुषंसित दूरी पर 1 मी० व्यास के 1 मीटर गहरे गडढ़े बना कर छोड़ दें। लगाये गये पॉपलर वृक्षों के चारो ओर निकौनी तथा साफ-सफाई करें।
दूधारु पशुओं को दिन में छायादार सुरक्षित स्थानो पर रखे तथा अधिक मात्रा में स्वच्छ पानी पिलायें।