श्रेष्ठता का भाव करुणा के भाव को कम कर देता है – कुलपति प्रो. योगेश सिंह
भक्ति हमारे आचार विचार में निहित होनी चाहिए- प्रो. श्रीप्रकाश सिंह
भक्तिकाल में निष्कामभावना का विशेष महत्त्व है – प्रोफेसर बलराम पाणी
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि अध्यापक को हमेशा समय की तुला में तुलना होता है।यदि आपको पढ़ाने में मजा आता है,तो यही सबसे बड़ा सुख है।प्रो.योगेश सिंह ने यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय के कन्वेंशन हॉल में आयोजित भक्तिकाल के विद्वान आलोचक प्रो. अनिल राय की पुस्तक “भक्ति संवेदना और मानव मूल्य” की लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कही।उन्होंने इस पुस्तक के बहाने भक्तिकाल और उसके प्रमुख रचनाकारों तुलसीदास,कबीर,जायसी और सूरदास की प्रासंगिकता पर विस्तार से बातें रखीं।
इस भव्य लोकार्पण कार्यक्रम में दक्षिण परिसर के निदेशक प्रोफेसर श्री प्रकाश सिंह,डीन ऑफ कॉलेजेज प्रोफेसर बलराम पाणी,रजिस्ट्रार डॉ.विकास गुप्ता और प्रो.हरेन्द्र सिंह ने भी इस पुस्तक पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
लोकार्पण समारोह का प्रारंभ प्रो.हरेंद्र सिंह जी के3 वक्तव्य से हुआ। उन्होंने पुस्तक पर विस्तार से बोलते हुए भक्ति काल के अनेक पक्षों पर बात रखने के साथ,इस पुस्तक के महत्व की तरफ इशारा किया।पुस्तक के लेखक प्रोफेसर अनिल राय ने स्वागत वक्तव्य में पुस्तक की रचना प्रक्रिया को बताते हुए भक्ति आंदोलन के अनेक बिंदुओं को रेखांकित किया।रजिस्ट्रार डॉ.विकास गुप्ता ने इस महत्वपूर्ण पुस्तक पर बोलते हुए कहा कि भक्तिकालीन संवेदना को समझने के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।आने वाले समय में इस पुस्तक का महत्व और बढ़ेगा।डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो.बलराम पाणी ने पुस्तक के लेखक को बधाई देते हुए भक्तिकालीन संवेदना में निष्कामभाव के महत्त्व को रेखांकित किया।दक्षिण परिसर के निदेशक प्रो.श्रीप्रकाश सिंह ने इस पुस्तक के शीर्षक “भक्तिकालीन संवेदना और मानव मूल्य” पर ध्यानाकर्षण करते हुए कहा कि संवेदना होगी तो मानव मूल्य अपने आप बरसते हैं और भक्ति अपने आप चली आती है।भक्ति हमारे आचार विचार में निहित होनी चाहिए।
इस पुस्तक-लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.योगेश सिंह ने इस पुस्तक के शीर्षक में निहित तीन शब्द- भक्ति,संवेदना और मानव मूल्य के विषय वस्तु को केंद्र में रखकर भक्तिकाल के ऐतिहासिक,सामाजिक,सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पक्षों पर बहुत विस्तार से बात रखते हुए कहा कि भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है।इसका मुख्य कारण है कि उस समय तुलसीदास, संत कबीर,सूरदास और मलिक मोहम्मद जायसी जैसे भक्त कवि भक्ति मार्ग पर चलकर सामाजिक जागरूकता पैदा कर रहे थे।यह अलग बात है कि यह काल भारत की पराजय का काल था ,भारत की गुलामी का काल था; या यूं कहें कि भारत में मुगलों के वैभव का काल था।कुलपति महोदय ने आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि यह काल देश का विषमकाल इसलिए था,क्योंकि इस समय की परिस्थितियों अनुकूल नहीं थीं।कहा जाता है कि जब परिस्थितियां विपरीत होती हैं,तो एक सजग रचनाकार अपना सर्वोत्तम लेखन करने के लिए छटपटा रहा होता है।यही कारण है कि उस काल में तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसी कालजयी रचना को रचा।यदि राम ने तुलसी को बनाया ,तो तुलसी ने राम को।यह तुलसी का ही प्रताप है कि भारत के घर-घर में आज राम स्थापित हैं।उन्होंने आगे भक्ति संवेदना और मानव मूल्य के महत्त्व की तरफ संकेत करते हुए कहा कि मानव जीवन से संवेदना निकाल देने पर हमारा जीवन वैसे ही हो जाता है,जैसे बिन पानी के मिट्टी केवल रेत रह जाती है।उन्होंने अंत में इस बात को रेखांकित किया कि शिक्षा जगत में श्रेष्ठता का भाव कहीं न कहीं व्यक्ति को उसके मूल्य और संवेदना से दूर करते हैं।खचाखच भरे सभागार को देखकर कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने ख़ुशी भाव से पुस्तक के लेखक को बधाई देते हुए कहा कि इस सभागार में इतनी भारी संख्या में उपस्थिति इस बात का परिचायक है कि प्रो.अनिल राय अपने छात्रों के बीच में ही नहीं,बल्कि समूचे साहित्यिक और एकेडमिक जगत में भी प्रिय और सम्मानित हैं।एक अध्यापक के लिए इससे बड़ी खुशी की बात और कोई दूसरी नहीं हो सकती ।इस पुस्तक को पढ़कर आपको नया कुछ जरूर मिलेगा।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन दौलत राम कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो.सविता राय ने और संचालन डॉ मनीष कुमार ने किया।यह पुस्तक नयी किताब प्रकाशन समूह से प्रकाशित हुई है।