राजकुमार जैन
रामजस कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ केंपस जिससे तालीम और रोटी दोनों मिले उसका कर्ज तो हम चुका ही नहीं सकतेl आज रामजस फाउंडेशन का स्थापना दिवस है। इसके संस्थापक लाला राय केदारनाथ के इतिहास को अगर हम पढ़े तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दिल्ली का मशहूर मारूफ खानदान लाला राय केदारनाथ का था। करोल बाग के नजदीक आनंद पर्वत की अरबो खरबो की अपार मिल्कियत उनकी अपनी थी। यही नहीं, दिल्ली की पुरानी.मशहूर जगहो पर संपत्ति के मालिक भी वे थे। इसी के साथ-साथ जुडिशल सर्विस की मार्फत वे जिला जज भी बनेl
उनको वैराग्य उत्पन्न हो गया था, उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने पिताजी लाला रामजस मल के नाम पर एक ट्रस्ट बनाकर सौंप दी। इसी ट्रस्ट रामजस फाउंडेशन के तहत 1917 मे पुरानी दिल्ली के दरियागंज में रामजस कॉलेज की स्थापना की गई थी। तथा दिल्ली में 8 -10 स्कूल स्थापित किए गए।
लाला जी के जीवन की सीख केवल एक उदाहरण से मिल सकती है। दरियागंज में स्कूल और यतीम बच्चों के लिए निशुल्क रहने खाने पीने के लिए जब एक-इमारत की तामीर हो रही थी, उन्होंने सर्वस्व दान दे दिया था। पहनने वाले कपड़े भिक्षा में ग्रहण करके वे रहते थे। जब बिल्डिंग का निर्माण हो रहा था लाला जी उसकी देखभाल करते थे, और वहीं पर चल रहे भोजनालय में अन्न ग्रहण करते थे। लाला जी को लगा कि इस अन्न पर मेरा अधिकार नहीं है, इसकी एवज में उन्होंने मजदूर के रूप में वहां पर मिट्टी, ईट गारा को ढोकर मजदूर के रूप में काम किया, उनका मानना था कि जो भोजन में ग्रहण कर रहा हूं वह इस मजदूरी के कारण जायज है।
मैं जब रामजस कॉलेज हॉस्टल में रहता था तो कॉलेज मैस में बुजुर्ग लाला राय केदारनाथ जी का सफेद पगड़ी, दाढ़ी मूंछ के साथ फोटो लगा हुआ था। खूबसूरत फोटो देखने के आदी छात्र सुबह-सुबह मैस में जब लाला जी का फोटो देखते थे तो वह उनको अखरता था। कुछ विद्यार्थी फब्तियाँ भी कस देते थे। परंतु जब लाला जी की हकीकत से वाकिफ हुए तो बेहद शर्मिंदा और पश्चाताप का भाव उनमें उपजता था। और इस से लाला जी के प्रति जीवनपर्यंत आदर का भाव उत्पन्न हो जाता है। फाउंडेशन डे वाले दिन कॉलेज के छात्र छात्राएं इकट्ठा होकर कॉलेज परिसर में लगे लाला जी के स्टैचू पर माल्यार्पण करते हुए उमको नमन करते हैं। हमें फख्र है कि ऐसी महान शख्सियत के द्वारा लगाए गए रामजस फाउंडेशन जैसे वट वृक्ष के नीचे हमें पनाह मिली। यही तमन्ना है, कि उनकी बनाई पगडंडी पर हम कुछ कदम चल सके तो शायद लाला जी का कुछ कर्ज चुका सके।