राजकुमार जैन
कल संसद भवन के अंदर और बाहर प्रदर्शन करते हुए कई युवक और युवती को गिरफ्तार किया गया। मुझे अपना किस्सा याद आ गयाl सोशलिस्टों के युवा संगठन ‘समाजवादी युवजन सभा’ की मांग थी कि बेरोजगारों को रोजगार दो या बेकारी का भत्ता दो।
कई साल पहले संसद की दर्शक दीर्घा में,
“बेरोजगारों को रोजगार दो,
या
बेकारी का भत्ता दो,”
का नारा लगाते हुए, मुझे पार्लियामेंट के वॉच एंड वर्ड के गार्डो ने पकड़कर गिरफ्तार कर लिया था। बाद में संसद ने बहस कर सजा देकर तिहाड़ जेल में क्वॉरेंटाइन (सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट) खतरनाक अपराधियों के लिए बने सेल में मुझे बंद कर दिया था।
पढ़े लिखे बेरोजगार युवकों को जब बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है, वह कितना तकलीफदायक होता है, उसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। हालात यहां तक है कि जिनका चयन हो चुका है, उन्हें भी महीनो, सालों बाद भी नियुक्ति नहीं मिलती। दिल्ली यूनिवर्सिटी मे 10 -15 सालों तक पढ़ाने वाले अडहॉक अध्यापकों को निकाल दिया जाता है। निराशा की स्थिति में बेरोजगार युवक आत्महत्या से लेकर इस तरह के कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
परंतु किसी भी विरोध प्रदर्शन, सत्याग्रह में किसी प्रकार की हिंसा, आतंकी कार्रवाई, दूसरों को भयभीत करने का प्रयास, को जायज नहीं ठहराया जा सकता। संसद की सुरक्षा बहुत जरूरी है, परंतु बेरोजगारी के सवाल का हल निकालना भी उतना ही आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने वायदा किया था कि हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोजगार मुहैया कराएंगे, उस वायदे का क्या हुआ, क्या उसकी जवाबदेही नहीं है?