प्रधानमंत्री कार्यक्रम को सफल बनाने महाविद्यालय परीक्षाएं रोकना सरासर गलत : अजय खरे

बड़े पैमाने पर जन धन की हुई फिजूलखर्ची देश हित में नहीं

रीवा  । विंध्यांचल जन आंदोलन के अध्यक्ष लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा कि आखिरकार ऐसा कौन सा अपरिहार्य कारण आ गया कि ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा में सोमवार 24 अप्रैल को होने वाली परीक्षाएं अचानक स्थगित कर दी गईं । इसी तरह प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को विषय बनाकर श्रम विभाग के निर्देशानुसार रीवा की सभी दुकानें सोमवार 24 अप्रैल के दिन बंद करवाई गईं । इसके लिए नियमों का भी हवाला दिया गया है। आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि कभी कोई दुकान बंद नहीं करवाई जाती है बल्कि सोमवार के दिन सोमवारी बाजार भी लगता है।

ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रीवा में सोमवार 24 अप्रैल के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस तरह के निर्देश दिए गए थे। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा व्यवस्था में पूरी सतर्कता बरती जानी चाहिए लेकिन उनकी सभा में भीड़ जुटाने के लिए नियम कायदों को ताक पर रखना उचित नहीं था। इससे गलत परंपरा को बढ़ावा मिलता है। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए पूरी प्रदेश की सरकार लगी रही। आवागमन के सारे संसाधनों को भीड़ जुटाने में झोंक दिया गया है। इसके बावजूद सरकारी दफ्तरों , स्कूलों, महाविद्यालयों में अघोषित रूप से छुट्टी का माहौल बनाना क्या उचित था। 24 अप्रैल को महाविद्यालयीन परीक्षाएं स्थगित किए जाने से तैयारी कर रहे छात्रों को काफी परेशानी एवं दुख है। मध्य प्रदेश में चुनावी वर्ष है।15 दिन से भी अधिक समय से समूचा प्रशासन तंत्र प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की व्यवस्था में लगा रहा जिसके चलते आम जनता की शिकायत सुनने का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ। धारा 144 लागू करके नागरिक आजादी को प्रतिबंधित किया गया। प्रदेश के विभिन्न जिलों और यहां तक सीमावर्ती उत्तर प्रदेश से भी भीड़ बटोरी गई है। भीड़ जुटाने आवागमन के सारे संसाधन झोंक दिए गए हैं। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े कटआउट चारों तरफ लगाए गए हैं। बेहिसाब खर्च हुआ है।

राजकोष से इस तरह की फिजूलखर्ची अत्यंत आपत्तिजनक एवं निंदनीय है। प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में कुल मिलाकर कितना खर्च हुआ इसकी जानकारी मध्य प्रदेश सरकार को देना चाहिए। श्री खरे ने कहा कि समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के रोज का खर्च का हिसाब लेते थे। यह भारी विडंबना है कि आज प्रधानमंत्री का खर्च बेहद बढ़ गया है लेकिन उनका कोई हिसाब जनसाधारण के बीच में नहीं रखा जाता है। देश की अधिकांश जनता आज भी गरीबी की रेखा के नीचे अपनी जिंदगी किसी तरह काट रही है। ऐसी स्थिति में इस तरह की फिजूलखर्ची देश की जनता के साथ क्रूर खिलवाड़ है। यहां तक शादी बारात में भी जब बड़े पैमाने पर फिजूलखर्ची होती है तो उसका विरोध होता है। बारात में भारी-भरकम सजावट के बाद भी दूल्हे के कटआउट नहीं लगाए जाते हैं जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कटआउट लगाए गए हैं। आखिरकार जनता के धन का इस तरह दुरुपयोग कब तक चलता रहेगा ? जनता कब जागेगी ?

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