धर्मनिरपेक्ष सहिष्णु स्वरूप से ही भारत समतामूलक विकसित राष्ट्र बनेगा : अजय खरे
रीवा । समाजवादी कार्यकर्ता समूह के संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा है कि डॉ लोहिया ने राजनीति को अल्पकालिक धर्म और धर्म को दीर्घकालीन राजनीति कहा था। राजनीति बुराई से लड़ती है और धर्म अच्छाई को स्थापित करता है। लेकिन मौजूदा दौर के राजनीतिक धार्मिक घालमेल के चलते समूचा माहौल प्रदूषित होता जा रहा है। यहां तक देश की सर्वोच्च अदालत को कहना पड़ रहा है कि धर्म को राजनीति से दूर रखें। हेट स्पीच देने वालों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए नेताओं को नसीहत दी है। अदालत ने सवाल किया कि ऐसे लोग खुद को संयमित क्यों नहीं कर सकते ? और आगे पूछा कि आखिर यह लोग क्यों किसी नागरिक या समुदाय को अपमानित करते हैं और ऐसा करना कब बंद करेंगे। राजनीतिक भाषणों में धर्म का प्रयोग करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस क्षण से देश के राजनेता धर्म को अलग रखकर राजनीति करना शुरू करेंगे उसी क्षण से हेट स्पीच के मामले भी समाप्त हो जाएंगे । सर्वोच्च अदालत को यह भी कहना पड़ा कि हमने ईश्वर को कितना छोटा कर दिया है कि उसके नाम पर विवाद हो रहे हैं।
लोकतंत्र सेनानी श्री खरे ने कहा कि देखने को यह मिल रहा है कि विभिन्न धर्मों के अधिकांश पंडाल गंदी राजनीति के अड्डे बन गए हैं जिसके माध्यम से धार्मिक उन्माद फैलाकर चुनाव जीतने का षड्यंत्र किया जाता है। धार्मिक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण अत्यंत आपत्तिजनक निंदनीय बात है। श्री खरे ने कहा कि इसी तरह जातीय आधार पर भी गंदी राजनीति हो रही है। चुनाव में जाति धर्म वर्ग संप्रदाय के आधार पर वोट मांगा जाना देश के लोकतंत्र के लिए अशुभ बात है। पिछले कई दशकों से चुनाव की राजनीति में बेहद गंदगी पैदा हो गई है जिसके चलते पूरे देश का माहौल गंदा हो चुका है ।
लोकतंत्र सेनानी श्री खरे ने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश के एम जोसेफ के द्वारा महाराष्ट्र सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए उसे नपुंसक कहना यह दर्शाता है कि हालात कितने अधिक बिगड़ गए हैं। सर्वोच्च अदालत की न्यायधीश बी वी नाग रत्ना को इस दौरान प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं अटल बिहारी बाजपेई के भाषणों का संदर्भ भी देना पड़ा कि उन्हें सुनने लोग दूर-दूर से आते थे पर आज हम कहां जा रहे हैं ?
श्री खरे ने कहा कि धर्म का राजनीति से घालमेल नहीं होना चाहिए। राजनीतिक पार्टियों को सांप्रदायिक भेदभाव वाले एजेंडे नहीं उठाना चाहिए। अभी देश में अधिकांश राजनीतिक पार्टी का स्वरूप इतना अधिक बिगड़ चुका है कि वह संप्रदाय जाति के दायरे से ऊपर नहीं हो पा रही हैं। सांप्रदायिक और जातीय आधार पर वोट मांगने वाले दलों की मान्यता समाप्त कर देना चाहिए। भारत के संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप आचरण करने वाले राजनीतिक दलों का ही चुनाव आयोग में पंजीकरण होना चाहिए। श्री खरे ने कहा कि भारत का धर्मनिरपेक्ष और स्वरूप ही भारत को समतामूलक विकसित राष्ट्र बना सकता है। धर्मांधता और जातीयता देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है। ऐसी स्थिति में देश के कमज़ोर होने के साथ गुलामी का संकट भी हो सकता
है।