Khiria Bagh Farmers-Labor Movement : आंदोलनकारी का पुलिस पर अपहरण कर टॉर्चर करने आरोप

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पुलिस अधीक्षक से कार्रवाई को लिखा पत्र 

उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़, पोस्ट गोपालपुर थाना मेंहनगर के अंतर्गत आने वाले गांव घिनहापुर के राजीव कुमार यादव जो किसान नेता हैं ने पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा है कि खिरिया बाग, जमुआ आज़मगढ़ में किसानों-मजदूरों के आंदोलन के समर्थन में एक पदयात्रा जो वाराणसी से आज़मगढ़ आने वाली थी को लेकर उनका 24 दिसम्बर को वाराणसी जाना हुआ था, जहां पदयात्रा स्थगित होने के बाद जब वाराणसी से आज़मगढ़ के लिए लौट रहे थे तो ढाई बजे के करीब दानगंज तरांव बाईपास के समीप जब पानी पीने के लिए गाड़ी रोकी तो गाड़ी के सामने एक सफेद रंग की बिना नम्बर प्लेट की सूमो गाड़ी से एकाएक एक व्यक्ति उतरकर मुझे पुकारने लगा, इस पर मुझे लगा कि कोई परिचित व्यक्ति है तभी 4-5 और व्यक्ति उतरे और मेरा मोबाइल छीनते हुए मारते-पीटते मुंह पर घूसा मारते हुए मुझे गाड़ी की बीच की सीट पर जबरन बैठा लिया।

उसी वक़्त मेरे साथ आए विनोद यादव जब इस घटना की फ़ोटो/वीडियो बनाने लगे तो उन्हें भी मारते-पीटते गाड़ी की पीछी की सीट पर बैठा लिया गया और तेज रफ्तार से वाराणसी की तरफ गाड़ी ले गए। अपहरणकर्ताओं ने मुझसे पिस्टल के बारे में पूछते हुए मुझे मेरी तलाशी ली मैंने बार-बार कहा कि मेरे पास कोई पिस्टल नहीं है मैं किसान आंदोलन से हूं, आप लोग कौन हैं ? कहां ले जा रहे हैं पर अपहरणकर्ता मेरी कोई बात सुनने को तैयार न थे और कसकर पकड़कर बैठाए रहे लगातार धमकी दे रहे थे।
 एक अपहरणकर्ता जो गाड़ी में आगे की सीट पर बैठा था ने कहा कि अभी मालूम चल जाएगा सब और उसने हमको उठाने की सूचना मोबाइल से किसी को दी। थोड़ी दूर चलने के बाद गाड़ी आज़मगढ़ की तरफ घुमा ली गई और जहां से हमें उठाया था जहां हम जिस गाड़ी से आए थे उसी रास्ते ले जा रहे थे तो तब तक वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी, जिसमें से पीछे की सीट पर बैठे अपहरणकर्ता ने कहा कि सब भीड़ जुटा लिए हैं और तेजी से आगे बढ़ गए. बीच की सीट पर दो अपहरणकर्ता एक तरफ से और एक अपहरणकर्ता एक तरफ से मुझे दबाकर बैठाए हुए थे।
 गाड़ी की आगे की सीट पर बैठे अपहरणकर्ता ने कहा कि सरकार के पैरलल सरकार चला रहे हो और पूछा कि कब वाराणसी आए थे क्यों आए थे तो मैंने बताया कि किसान पदयात्रा थी उसी सिलसिले में आए थे तो उसने खिरिया बाग में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में पूछा। मैंने उससे बताया कि 670 एकड़ जमीन सरकार इंटरनेशनल एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के नाम पर ले रही है किसान-मजदूर नहीं देना चाहते वो पूरी तरह से उजड़ जाएंगे इस तरह के आंदोलन से जुड़े विभिन्न सवालों का जवाब देता रहा. उसने आंदोलन और पदयात्रा के बारे में पूछा कि तुमने ही इसे ऑर्गनाइज किया है मैंने कहा कि गांव के लोग आंदोलन चला रहे हैं और पदयात्रा संदीप पाण्डेय निकाल रहे थे मैं उनके समर्थन में हूं।
उसने संदीप पाण्डेय के बारे में मुझसे पूछा, गाड़ी की आगे की सीट पर बैठे अपहरणकर्ता को लगातार फोन आ रहा था और किसी को वो सभी जानकारियां दे रहा था उसने मुझसे कहा कि समझ गए न कौन हैं हम. उसने मुझसे पूछा कि कब से इस आंदोलन में हो तो मैंने कहा कि नर्मदा बचाओ आंदोलन और एनएपीएम की नेता मेधा पाटकर से किसानों की बात हुई उसके बाद हम वहां गए तो उसने कहा कि नर्मदा से उन्हें यहां आने की क्या जरूरत तुम लोग जहां भी विकास होता है विरोध करने के लिए चले आते हो।
मैंने बताया कि कोरोना काल में मजदूरों के पलायन ने झकझोरा की इन सवालों पर काम किया जाए तो उसने कहा कि इसके पहले नहीं थी दिक्कत तो दिक्कत अभी हुई। उसने पूछा कि क्या किया कोरोना काल में तो मैंने बोला कि राशन और लोग जो दिल्ली-मुम्बई में फसे थे उनको लाने में सहयोग किया तो उसने कहा कि मैंने नहीं देखा एक भी आदमी को लाया होगा सब सरकार ने किया।  उसने पूछा कि पुलिस वालों के लिए कभी कुछ किया तो मैंने बोला कि बुलंदशहर में जब सुबोध सिंह को मारा गया तो उस पर धरना-प्रदर्शन किया गया तो उसने कहा कि बजरंगदल वालों ने मारा इसलिए किया।
 मैंने बोला कि निज़ामाबाद में जब एसडीएम और सहकर्मियों के साथ भाजपा नेताओं ने मारपीट-अभद्रता की तो उस सवाल को भी उठाया। मैंने बताया कि जन आंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय और संयुक्त किसान मोर्चा से हम जुड़े हैं। उसने दिल्ली में चले संयुक्त किसान मोर्चा के किसान आंदोलन के बारे में पूछा और जब मैं अपनी बात रखता तो वह सरकार का पक्ष रखता और कहा कि मोदी अच्छा है।  राकेश टिकैत के बारे में भी बात की मैंने बताया कि खिरिया बाग में चल रहे किसान-मजदूर आंदोलन को संयुक्त किसान मोर्चा का समर्थन है।  उसने पूछा कि तुम्हारी जमीन है वहां मैंने कहा नहीं तो कहा कि फिर क्यों आंदोलन में हो क्या फायदा है।
 मैंने कहा कि मुझे गोली मार दो जेल में डाल दो किसान-मजदूर का आंदोलन है वो चलेगा क्योंकि उनके अस्तित्व का सवाल है। मेरी पीछे की सीट पर बैठे विनोद यादव से लगातार पीछे पूछताछ हो रही थी पीछे बैठा अपहरणकर्ता मेरे बारे में और रिहाई मंच के बारे में पूछ रहा था और कह रहा था कि पैसा लेकर बड़े अपराधियों को बचाते हो उसने ये भी कहा की निरहुआ से तालमेल बना लो. उन्होंने मेरे पास जो हरा गमछा था उसे और मेरे विजिटिंग कार्ड को भी लिया और पूछा कि लखनऊ में कहां रहते हो कैसे खर्च चलता है क्या करते हो. इस बीच दो जगह गाड़ी रुकी और आगे की सीट पर बैठा अपहरणकर्ता मोबाइल फोन पर बात करता और फिर ड्राइवर से आगे चलने के लिए कहता और देवगांव में एक पुलिस कार्यालय पर गाड़ी ले जाकर रोका. मैंने पानी मांगा पर नहीं पिलाया और मैंने कहा कि ब्लड प्रेशर का पेशेंट हूं दिक्कत हो रही है।
देवगांव से निकलने के बाद कुछ वक्त बाद आगे बैठे अपहरकर्ता के मोबाइल पर SSP Azh के नाम से फोन आने लगा तो वो गाड़ी रोककर बाहर निकल कर बात करने लगा और अपने अन्य साथियों के साथ बाहर बात करने लगा. मेरे साथ उठाए गए विनोद यादव ने पेशाब के लिए कहा तो उन्हें पेशाब के लिए उतारा और मैंने भी कहा तो मुझे भी गाड़ी से उतारा और उसके बाद पानी पीने को दिया. गाड़ी की आगे सीट पर बैठे अपहरणकर्ता ने मोबाइल पर बात करने में अपना नाम विनय दुबे बोला था. उक्त व्यक्ति के मोबाइल में जो व्हाट्सएप ग्रुप थे उसमें पुलिस से जुड़ी डीपी लगी थी। उसके बाद मेरी पढ़ाई लिखाई और अन्य चीजों पर बात करने लगे तो मैंने बताया कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और उसके बाद आईआईएमसी से पढ़ा। उसने कहा कि फिर ये सब क्यों कर रहे तो हमने कहा कि किसान-मजदूर परिवार से जुड़े हैं, इसलिए लगता है कि जरूरी सवाल है।
फरिहा-निज़ामाबाद-तहबरपुर के बीच सीट पर आगे बैठे अपहरणकर्ता के मोबाइल पर किन्ही Dilip Singh का फोन आया तो उसने कुछ बोला और थोड़ी देर में हमें मंदुरी होते हुए कंधरापुर थाने में जाया गया।  जहां थाना प्रभारी दिलीप सिंह थे जिनसे मैंने कहा कि कोई बात थी तो आपको बोलना चाहिए था आप से कल भी बात हुई पर उन्होंने कोई बात नहीं बोली।  मैंने कहा कि अब आगे क्या प्लान है आप सबका तो उन्होंने कहा कि घर छोड़ेंगे आपको उसके बाद उन्होंने गाड़ी में बैठाया और आज़मगढ़ की तरफ चलने लगे हमारे पीछे-पीछे बिना नंबर प्लेट की सफेद गाड़ी भी चलती रही।
 हमें एसडीएम सदर आज़मगढ़ की कोर्ट में लाया गया मैंने दिलीप सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ नहीं है बस आप दोनों इन कागजों को भर दीजिए फिर वहां पर पहले से बैठे दो अधिवक्ताओं ने कुछ कागजात पर लिखा और उसमें जमानत का उल्लेख था जिस पर हमने हस्ताक्षर किए और उसके बाद उन्होंने मोबाइल दिया और हम अपहरणकर्ताओं और पुलिस की अवैध हिरासत से मुक्त हुए।  वाराणसी में जिस जगह से अपहरण हुआ था वहां साथ के लोगों ने 112 पर पुलिस को सूचना दी तो स्थानीय पुलिस आई और उन्होंने कहा कि आज़मगढ़ एसटीएफ क्राइम ब्रांच के लोग ले गए आप आज़मगढ़ संपर्क कीजिए. मेरे गांव घिनहापुर भी स्थानीय थाने मेंहनगर से पुलिस गई और हमारे संबंध में जानकारी ली गई।
उन्होंने लिखा है कि उन्होंने पूरी घटना आपके समक्ष रखी है, पूर्वनियोजित साजिश के तहत दिन दहाड़े वाराणसी से मुझे और विनोद यादव को उठाया गया और जगह-जगह गाड़ी रोकते हुए देवगांव में किसी पुलिस के कार्यालय पर ले जाया गया। अपहरणकर्ता के मोबाइल पर SSP Azh के नम्बर से फोन आना और उसके बाद कंधरापुर थाने ले जाकर एसडीएम कोर्ट में पेशकर कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करवाकर छोड़ने की घटना स्पष्ट करती है कि हमारा अपहरण पुलिस की मिलीभगत से हुआ और यह कानून व्यवस्था का गंभीर मामला है। अपहरणकर्ताओं द्वारा खिरिया बाग आंदोलन और किसान आंदोलन के बारे में जिस तरह पूछताछ की गई उससे साबित होता है कि आंदोलन से जुड़े होने की वजह से यह कार्रवाई की गई. जिस तरह से मुझे मारा गया, अपहरण किया गया, पिस्टल के बारे में पूछा गया उससे साफ प्रतीत होता है कि मुझे किसी फर्जी मुकदमे में फ़साने या जान से मारने की साजिश के तहत गैरकानूनी कार्रवाई की गई, किसान आंदोलन और आज़मगढ़ के लोगों के साथ हिंसा करने के सांसद दिनेश लाल निरहुआ के बयान पर आपसे मिलकर कहा था कि इस तरह के उकसावे से प्रेरित होकर सरकार और सरकार के लोग हिंसा कर सकते हैं और मेरे साथ ऐसा ही सलूक किया गया।  ऐसे में इस मामले के दोषी अपहरणकर्ता जिनके बारे में अपहरण के स्थान की पुलिस और मीडिया कह रही है की वो पुलिस के किसी विशेष दस्ते के लोग थे उनके ऊपर मुकदमा पंजीकृत करते हुए इस पूरे मामले की जांच करवाकर सुसंगत धाराओं में दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

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