Social Disorientation : आधुनिकता की चकाचौंध में हम भूल रहे हैं अपनी संस्कृति, सभ्यता और संस्कार

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 पवन राजपूत

आधुनिकता की चकाचौंध में हम अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं संस्कारों को दरकिनार कर भविष्य को अंधकार की ओर ले जा रहे हैं, जो हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।

भटक रहे हैं माली, सूख रहे हैं फूल।
आधुनिकता की चकाचौंध है, अपनी संस्कृति, सभ्यता रहे हैं भूल।।

आज आधुनिकता के युग में बच्चे एवं युवा वर्ग शिष्टाचार नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। इसे हमें समझना होगा। शिष्टाचार, नैतिकता का हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ऐसे में सवाल उठता है कौन है जिम्मेदार सिर्फ बच्चे, युवा वर्ग या अभिभावक या शिक्षक ? छात्र, छात्राएं भटकाव की राह पर हैं तो क्या ये शिक्षक की कमजोरी नहीं दर्शाता ? परिवार में बच्चे अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं संस्कारों को भूल रहे हैं, बड़ों का अनादर कर रहे हैं तो क्या अभिभावक की जिम्मेदारी नहीं बनती? सभी भली भांति जानते हैं कि जब बच्चे का जन्म होता है तो उसका दिमाग शून्य होता वे आस पास देखते हैं वही सीखते हैं। अभिभावकों,शिक्षकों को उन्हें शिष्टाचार,नैतिकता का मूल्य सिखाना होगा। शिष्टाचार का अभाव हमें नैतिक मूल्यों दूर ले जाता है।

इसको रोकना होगा

बातचीत हो अथवा सामान्य व्यवहार हमें शिष्टाचार के घेरे में करना होगा। जहां भी हम शिष्टाचार से भटकते हैं वहीं अनैतिकता को बढ़ावा देते हैं,और यह सत्य है कि अनैतिक जीवन का कोई महत्व नहीं रहता।अनैतिक जीवन नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण के समान होता है। घर से लेकर बाहर तक शिष्टाचार का पालन करना होगा।व्यक्ति से समाज बनता है,हम शिष्ट होंगे तभी एक सुंदर समाज का निर्माण कर सकेंगे।

अगर हम अपने बचपन में जाकर वो समय याद करें दादा, दादी , ताई,चाची, ताऊ, चाचा के साथ बैठकर भोजन करना शिष्टाचार की कहानियां सुनना ,कहानी सुनते – सुनते उन्ही के पास सो जाना,हर छोटी बड़ी बात पर उनका डाटना यही सब हमे शिष्टाचार की ओर आकर्षित करता था।आज रिश्तों का अर्थ ही बदल गया है दादा, दादी के पास बैठना बुरा लगता है, ताऊ, ताई, चाचा, चाची जैसे रिश्तों का महत्व ही खत्म हो रहा है,पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर रिश्तों का कोई महत्व ही नहीं रहा, सारे रिश्ते आंटी, अंकल, ग्रैंड मदर, ग्रैंड फादर में बदल चुके हैं क्या इसके लिए आप खुद को जिम्मेदार नहीं समझते क्या हमने कभी बैठकर अपने बच्चों को रिश्तों की मर्यादा को समझाया, एक समय था जब बच्चे के मन में पड़ोसी ही नहीं गांव के बुजुर्गों का भी डर होता था, ओर आज सगे संबंधियों का भी डर नही क्यों?

आज भाई भाई के पास बैठने को तैयार नहीं अक्षर हम अपने भाई छोड़ तीसरे व्यक्ति से अपनी समस्या शेयर करते हैं जिसका ज्यादातर दुष्परिणाम निकलता है।ओर इसका बच्चों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। अक्षर देखने में आता है बच्चा पढ़ाई में हीरो लेकिन शिष्टाचार में जीरो क्यों? कहां गलती हुई है कही न कही तो गलती हुई है आज देखने में आता है छोटी,छोटी बातों पर बच्चे आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लेते हैं,ऐसा क्या कारण है कि बच्चे हमसे अपनी परेशानी शेयर कही करते।हमे समझना होगा।

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