Subrata Ray Crime : अब SFIO ने सुब्रत राय के हिंदी और उर्दू अख़बार के सर्कुलेशन जांच में पकड़ा हजारों करोड़ का घोटाला!

Subrata Ray Crime : राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पीएमओ, सूचना प्रसारण मंत्री, सुप्रीम कोर्ट, आरएनआई, डीएवीपी, सीरियस फ्राड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस को पत्र भेजकर सुब्रत राय के खिलाफ की गई है कार्रवाई की मांग 

चरण सिंह राजपूत 

जानकारी मिल रही है कि सीरियस फ्राड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस SFIO की जांच में सहारा ग्रुप के राष्ट्रीय सहारा और सहारा रोजनामा में हजारों करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। अब सहारा प्रमुख सुब्रत राय की ढाल बने हिंदी के राष्ट्रीय सहारा और उर्दू रोजनामा में लंबा सर्कुलेशन घोटाले के मामले में सरकार को चुना लगाने और फर्जी ख़बरें छापकर ब्लैकमेल करने की शिकायत केंद्र और यूपी सरकार से की गई है। इस शिकायत के माध्यम से सुब्रत राय पर कड़ी कार्यवाही की मांग की गई है। यह दावा तहलका टुडे ने किया है।

दरअसल जानकारी मिल रही है कि देश के कुछ संगठनों और प्रेस फाउंडेशन ट्रस्ट ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पीएमओ, सूचना प्रसारण मंत्री,सुप्रीम कोर्ट,आरएनआई, डीएवीपी,सीरियस फ्राड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस SFIO को पत्र लिखकर सहारा समूह के सारे अखबारों पत्रिकाओं के सर्कुलेशन बढ़ा चढ़ाकर, भारी सरकारी विज्ञापन में किए गए घोटाले, अखबारी कागज के कोटे और सरकार की नीतियों के खिलाफ मुस्तकिल गुमराह करने वाली ख़बरें देकर अधिकारियों नेताओं और इन्वेस्टर को ब्लैक मेल करने के धंधे की जांच कर इस मीडिया समूह को बंद करने की मांग की है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीजीपी को भी भेजा गया है पत्र

जिलाधिकारी लखनऊ से इन अखबारों के घोषणा पत्र को कैंसल करने और सूचना निदेशक को सहारा अखबार के सभी पत्रकारों की मान्यता समाप्त करने के साथ इनको दिए गए सरकारी आवासों का आवंटन रद्द करने की मांग की गई है। पत्र में यह भी कहा गया है की सहारा मीडिया ग्रुप के लोग सरकार की मुखबिरी करते रहते इसलिए इनके सचिवालय पास पर भी रोक लगाई जाए जब तक सुब्रत राय सहारा के घोटालों को सरकार क्लीन चिट न दे दे।

सहारा इंडिया की शुरूआत साल 1978 में हुई थी। सहारा स्कैम मुख्य रूप से सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड  और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड से जुड़ा है। बात 30 सितंबर, 2009 की है। सहारा ग्रुप की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में आवेदन (DRHP) दाखिल किया था। डीआरएचपी में कंपनी से जुड़ी सारी अहम जानकारी होती है। जब सेबी ने इस डीआरएचपी का अध्ययन किया, तो सेबी को सहारा ग्रुप की दो कंपनियों की पैसा जुटाने की प्रक्रिया में कुछ गलतियां दिखीं। ये दो कंपनियां SHICL और SIRECL ही थीं।

OFCD के जरिए निवेशकों से जुटाए 24,000 करोड़

इसी दौरान 25 दिसंबर 2009 और 4 जनवरी 2010 को सेबी को दो शिकायतें मिलीं। इनमें कहा गया कि सहारा की कंपनियां वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर (OFCDs) जारी कर रही है और गलत तरीके से धन जुटा रही है। इन शिकायतों से सेबी की शंका सही साबित हुई। इसके बाद सेबी ने इन दोनों कंपनियों की जांच शुरू कर दी। सेबी ने पाया कि SIRECL और SHICL ने ओएफसीडी के जरिए दो से ढ़ाई करोड़ निवेशकों से करीब 24,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। सेबी ने सहारा की इन दोनों कंपनियों को पैसा जुटाना बंद करने का आदेश दिया और कहा कि वह निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ उनका पैसा लौटाए।

फिर शुरू हुआ अदालती कार्यवाही का दौर..

इसके बाद अदालती कार्यवाही का दौर शुरू हो गया। मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। ऐसे भी संभावना जताई गई कि सहारा ग्रुप द्वारा काले धन को छिपाने के लिए बड़े स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग की गई। सुप्रीम कोर्ट ने जब फंड के सोर्स के बार में सबूत मांगे, तो समूह कोर्ट को संतुष्ट करने में विफल रहा।

तीन महीने में 15% ब्याज के साथ पैसा लौटाने का आदेश

अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कंपनियों को सेबी के साथ निवेशकों का पैसा तीन महीने के अंदर 15 फीसद ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया। साथ ही सेबी को सभी ओएफसीडी धारकों की डिटेल प्रदान करने को भी कहा गया। इसके बाद सहारा 127 ट्रक लेकर सेबी के ऑफिस पहुंचा, जिसमें निवेशकों की डिटेल्स थीं। लेकिन इन फाइल्स में निवेशकों की पूरी जानकारी नहीं थी। इससे मनी लॉन्ड्रिंग का शक बना रहा। सहारा सेबी को तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ पैसा जमा कराने में नाकाम रहा।

इस तरह कानून के शिकंजे में आया सहारा ग्रुप

समय के साथ, सुप्रीम कोर्ट और सेबी दोनों ही इस मामले को मनी लॉन्ड्रिंग की तरह लेने लगे। उन्होंने सहारा इंडिया के बैंक अकाउंट और संपत्ति को फ्रीज करना शुरू कर दिया। 26 जनवरी, 2014 को सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार हुए। नवंबर 2017 में ईडी ने सहारा ग्रुप पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चार्ज किया। इस तरह सहारा ग्रुप पूरी तरह कानून के शिकंजे में आ गया।

सहारा ने अब तक सेबी को जमा कराए सिर्फ 15,503.69 करोड़

सहारा ने सेबी को पहली किस्त 5120 करोड़ रुपये की जमा कराई थी। रिपोर्ट्स के अनुसार सहारा समूह की कंपनियों- सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन एवं सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन और उनके प्रवर्तकों एवं निदेशकों ने सेबी को कुल 15,485.80 करोड़ रुपये ही जमा कराए हैं। हाल ही में वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने संसद में कहा था, ‘सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) ने 232.85 लाख निवेशकों से 19400.87 करोड़ रुपये और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) ने 75.14 लाख निवेशकों से 6380.50 करोड़ रुपये जुटाये थे।
सुप्रीम कोर्ट के 31.08.2012 के बाद के आदेशों के अनुसार, SIRECL और SHICL ने निवेशकों से जुटाई गई 25,781.37 करोड़ की मूल राशि के मुकाबले 31 दिसंबर, 2021 तक ‘सेबी-सहारा रिफंड’ खाते में 15,503.69 करोड़ रुपये ही जमा किए हैं।

सेबी ने सिर्फ इतना पैसा ही लौटाया

सरकार ने संसद में जानकारी दी है कि सेबी सहारा इंडिया के निवेशकों को अब तक केवल 138.07 करोड़ रुपये ही लौटा पाया है। गत दिनों वित्त राज्यमंत्री ने बताया कि सेबी को 81.70 करोड़ रुपये की कुल मूल राशि के लिए 53,642 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट या पास बुक से जुड़े 19,644 आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से सेबी ने 48,326 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट या पासबुक वाले 17,526 योग्य बॉन्डधारकों को 138.07 करोड़ रुपये की राशि रिफंड की।

सेबी क्यों नहीं लौटा पा रही पैसा

सेबी द्वारा निवेशकों को उनका पैसा नहीं लौटा पाने के पीछे दलील दी जा रही है कि दस्तावेजों और रिकॉर्ड में निवेशकों का डाटा ट्रेस नहीं हो पा रहा है। सरकार द्वारा बताया गया कि सेबी के पास रिफंड के लिए आए कई आवेदन या तो SIRECL और SHICL द्वारा उपलब्ध कराये गए दस्तावेजों और डाटा में रिकॉर्ड ट्रेस नहीं हो पाने के कारण अथवा सेबी द्वारा पूछे गए प्रश्नों को लेकर बांडधारकों से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं होने के कारण बंद कर दिए गए हैं। वहीं, जिन लोगों का पैसा SIRECL और SHICL से कन्वर्जन कराकर सहारा क्यू शॉप (Sahara Q Shop) या सहारा की अन्य क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटीज में उलझा दिया गया, उनकी मुश्किलें और भी ज्यादा हैं। अब देखना यह है कि सरकार निवेशकों के हित में कोई ठोस कदम उठा पाती है या नहीं।

 

 

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