Akhilesh Yadav Samajwadi Party : पार्टी मुखिया के लिए बड़ी चुनौती है सपा के वजूद को बचाना
Akhilesh Yadav Samajwadi Party : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष Akhilesh Yadav ने प्रदेश अध्यक्ष Naresh Uttam Patel को छोड़कर पार्टी की सभी इकाइयां भंग कर दी हैं। सपा की सभी इकाइयों के भंग करने के पीछे लोकसभा के उप चुनाव में आजमगढ़ और रामपुर सीट पर शिकस्त खाना मुख्य वजह माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के बाद एमएलसी चुनाव और अब लोकसभा उप चुनाव में हार से वह बहुत गुस्से में हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इकाइयों को भंग करने कर अब संगठन में जान फूंकने के लिए वह क्या करेंगे ? बताया जा रहा है कि Akhilesh Yadav तेवरों वाले नेताओं को संगठन में तरजीह देने की रणनीति बना रहे हैं।
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निश्चित रूप से Samajwadi party आंदोलन के लिए ही जानी जाती थी। Akhilesh Yadav इस पर मंथन करना होगा कि यदि Samajwadi party के संगठन में स्थिलता आई है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? चुनाव हारने की जवाबदेही अखिलेश यादव और Naresh Uttam Patel की भी बनती है।
बताया जाता है कि Samajwadi party में चाहे राष्ट्रीय कार्यकारिणी हो, प्रदेश कार्यकारिणी हो या फिर जिला कार्यकारिणी। या फिर विभिन्न प्रकोष्ठ। लगभग सभी इकाइयों में निरसता देखी जा रही थी। Samajwadi Party News यह है कि अखिलेश यादव को संगठन में स्थिलता के पीछे के कारण तलाशने होंगे। Akhilesh Yadav को यह समझना होगा कि किसी भी संगठन के कमजोर और मजबूत होने के पीछे उसका नायक होता है। योगी सरकार पर वह ट्वीट कर तो निशाना साधते रहे पर वह न खुद ही सड़कोंं पर उतरे और न ही संगठन को सड़क पर उतार सके।
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योगी सरकार में जहांं उन्हें योगी सरकार की खामियां निकालकर आंदोलन करना चाहिए था वहीं उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को अपने 2012-17 के कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाने के लिए लगा रखा था। Uttar Pradesh News में यह बात प्रमुखता से आती रहीं कि अखिलेश यादव का था कि वह 2017 के चुनाव में अपनी सरकार की उपलब्धियों को जनता को सही ढंग से नहीं समझा पाये थे। क्या इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष Naresh Uttam Patel भी जिम्मेदार नहीं हैं। इसलिए वह 2022 के चुनाव में योगी सरकार की खामियों को लेकर नहीं गये बल्कि अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने में उनका ध्यान ज्यादा रहा।
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Akhilesh Yadav की हड़बड़ाहट का बड़ा कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंशवाद की राजनीति के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल रखा है। महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिराने और शिंदे सरकार बनाने के पीछे भी प्रधानमंत्री का वंशवाद की राजनीति के खिलाफ संदेश देना था। अब प्रधानमंत्री की निगाह तेलंगाना की च्ंद्रशेखर राव की सरकार पर टेढ़ी नजर है। जिस तरह से योगी आदित्यनाथ भाजपा में बड़ा चेहरा बनते जा रहे हैं। ऐसे में ऐसे में Akhilesh Yadav के पास संगठन मजबूती और आंदोलन ही है जिसके बल पर वह योगी का सामना कर सकते हैं।
Uttar Pradesh News : Samajwadi Party के संगठन में फेरबदल मात्र से काम नहीं चलेगा बल्कि Akhilesh Yadav को खुद बंगले की राजनीति छोड़कर सड़कों पर आना होगा। विपक्ष की भूमिका में अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीति करने के तरीकें को अपनाना होगा। ईमानदार नेताओं को तरजीह देते हुए नेताजी के समय के जुझारू नेताओं को गले लगाना होगा। ठेकेदारी करने और प्रापर्टी डीलरों को संगठन में पीछे करना होगा।
इसमें दो राय नहीं कि समाजवादी पार्टी में अभी भी विचारवान और जुझारू नेता मौजूद हैं। Akhilesh Yadav को इस पर भी मंथन करना होगा कि पार्टी में जुझारूपन होने के बावजूद पार्टी कैसे पिछड़ रही है ? Akhilesh को इस बात पर मंथन करना होगा कि जब से संगठन उनके हाथों में आया है तब से कितने आंदोलन हुए हैं ? कितने जमीनी नेताओं को उन्होंने सम्मान दिया है ? कितने नेताओं के दुख दर्द को उन्होंने जानने का प्रयास किया है ?
कार्यकर्ताओं की पीड़ा और समस्याओं को जानने के लिए उन्होंने कितने कार्यक्रम किये हैं? कितने कार्यकर्ताओं को उनके संगठन में बोलने का मौका मिलता है ? Akhilesh Yadav को यह समझना होगा कि उनकी पार्टी का वजूद खतरे में है। यदि उन्होंने संगठन में जान नहीं फूंकी तो उनका संगठन पूरी तरह से बिखर भी सकता है। क्योंकि सपा कार्यकर्ता योगी सरकार के निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा का टारगेट बसपा नहीं बल्कि सपा है।
दरअसल 2017 में शिवपाल यादव को Samajwadi party से दरकिनार कर दिया गया था। Samajwadi Party News के अनुसार पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के नेपथ्य में जाने के बाद Akhilesh Yadav अपने हिसाब से संगठन चला रहे हैं। यह माना जाता है कि Akhilesh Yadav Samajwadi Party में लगभग सभी पदाधिकारी अखिलेश यादव की इच्छानुसार नियुक्त किये जाते रहे हैं। Akhilesh को इस बात पर मंथन करना होगा कि आखिरकार उनका जो कार्यकर्ता विपक्ष में दहाड़ता था वह निराश क्यों है ? क्या उन्होंने अपने पदाधिकारियों को अपने हिसाब से काम करने की स्वतंत्रता दे रखी है ?
- चरण सिंह राजपूत