International Booker Prize
International Booker Prize : गीतांजलि श्री की कृति ‘रेत समाधि’ को इंटरनेशनल बुकर अवार्ड मिला। ‘रेत समाधि’ उपन्यास के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूंब ऑफ़ सैंड’ ने 2022 का इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीता है। 2018 मेे प्रकाशित ‘रेत समाधि’ का अनुवाद डेजी राकवेल ने किया बता दें कि डेज़ी अंग्रेज़ी भाषा की मशहूर अनुवादक है।
ये पहली बार है जब हिन्दी के किसी उपन्यास को “बुकर प्राइज” (International Booker Prize) मिला। ऐसा कम ही देखने में मिलता है कि हिन्दी के किसी साहित्य को देश के बाहर पहचान मिले लेकिन गींताजली जी की “रेत की समाधि” ने दुनियाभर में अपना नाम बना लिया हैे। इस प्रकार ये पहली हिन्दी उपन्यास है जो कि बुकर समारोह में चयनित की गई और इस मुकाम तक पहुंची।
WhatsApp University के लिए खुख्यात भारत से ही ऐसे एक लेखिका का नाम बुकर प्राइज के लिए सामने आया।
पुरस्कार मिलने पर गीतांजलि जी (Tomb of Sand writer Geetanjali Shree) ने अपनी स्पीच में कहा कि मैने कभी नही सोचा थी कि मैं ये कर पाउंगी…यह एक वाकई बड़ा पुरस्कार है मैं हैरान, प्रसन्न और शुक्रगुजार हुं।
“गीतांजलि श्री” की(Geetanjali Shree win booker prize) ‘रेत समाधि’ को निर्णायक दल नें “अनूठा” उपन्यास बताया। ‘रेत समाधि’ की कहानी एक 80 साल की महिला की कहानी हैं जिसे लेखिका ने एक नए तरीके से पेशे किया हैं। इसी के साथ किसी अपने के गुजर जाने के बाद उनकी जिंदगी में पड़े प्रभाव, विभाजन के बाद की तस्वीर को भी उकेरा हैं।
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‘रेत समाधि’ को राजकमल प्रकाशन नें प्रकाशित की है। ‘रेत समाधि’ राजकमल द्वारा प्रकाशित पहली ऐसी किताब है जिसे बुकर प्राइज मिला हैं।
कौन है गीतांजली –
“गीतांजलि श्री” जानी मानी लेखिका (Geetanjali Shree win booker prize) हैं। उनका पहला उपन्यास ‘माई’ और फिर ‘हमारा शहर उस बरस’ 1990 के दशक में आये थे। ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ भी उनकी प्रसिद्ध कृति हैं। लेखिका “गीतांजलि श्री” पिछले तीन दशक से लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं, इतने साल काम करने के बाद मिली सफलता न केवल उनके लिए बल्कि सम्पूर्ण हिन्दी जगत के लिए बड़ी उपलब्धि हैं।
मशहूर अनुवादक डेजी राकवेल द्वारा किये गए अंग्रेजी अनुवाद को ‘टिल्टेड एक्सिस’ ने प्रकाशित किया है, डेजी को हिन्दी, उर्दू और लेटिन भाषाओं का ज्ञान हैं गीतांजलि श्री की इस उपलब्धि का श्रेय डेजी को भी जाता हैं। क्योंकि डेजी ने ही उनका अनुवाद इस तरीके से किया कि उसका भाव बना रहा।
डेजी के बारे में ये बात कहीं जाती है कि वे दक्षिणी देशों के हिसाब से किताबों का अनुवाद करती है जिससे वे लोगों को समझ में आ जाए।
इस पुरस्कार की राशि 50 लाख रुपये के लगभग है जिसे लड़का और अनुवादक दोनों के बीच बराबर बांटा जाता हैं।
क्या अंतर है बुकर प्राइज और अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार में-
बुकर प्राइज की शुरुआत 1969 में की गई अब तक पांच ऐसे भारतीय है जिन्हे ये पुरस्कार दिया जा चुका हैं। वही अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की शुरुआत 2005 में की गई। ये पुरस्कार विश्व के किसी भी इंसान को दिया जा सकता है बशर्ते इसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया गया हो और उसे UK या आयरलैण्ड में प्रकाशित किया गया हो।
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अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (International Booker Prize) मिलने के बाद Twitter पर मानों लोगों की बधाईयों की बहार आ गई। सभी बड़ी हस्तियों ने गीताजली जी के इस मुकाम की सराहना की। इस किताब की चर्चा 8 अप्रैल से ही की जा रही हैं जब पहली बार किसी हिन्दी के उपन्यास का नाम बुकर प्राइज की रेस में आया। देखना होगा कि इस पुरस्कार के मिलने के बाद क्या भारत का युवा WhatsApp University से बाहर आ पाएगे।
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