चरण सिंह राजपूत
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर हमला करने वाले दो आरोपियों में से एक लॉ की पढ़ाई कर चुका है। सचिन पंडित नाम के इस युवक का गांव ग्रेटर नोएडा के थाना बादलपुर स्थित दुरियाई है। दूसरा आरोपी सहारनपुर का शुभम बताया जा रहा है जो 10वीं तक पढ़ा हुआ है और खेती करता है। इन दोनों युवाओं का कहना है कि ये असुद्दीन ओवैसी के भाई के बयानों से अक्रोशित थे। इनके पास से मुंगेर टाइप पिस्टल बरामद हुई है। लॉ की पढ़ाई करने वाले सचिन पंङित की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा और महेश के शर्मा के साथ की तस्वीर खूब वायरल हो रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस मानसिकता के युवक आखिरकार कैसे मुख्यमंत्री, उप मुख्मयंत्री और केंद्रीय मंत्री तक पहुंच गये ? जो युवक कानून का स्डूडेंट रहा है वह कानून को अपने हाथ में कैसे ले सकता है ? बात सचिन पंडित की नहीं है कि देश में ऐसे कितने कानून के रखवाले ही कानून को हाथ में लिये घूम रहे हैं। जेएनयू के छात्र नेता रहे है कन्हैया पर भी हमला करने वाले वकील ही थे, हमला भी पुलिस अभिरक्षा में किया गया था। जिन लोगों पर कानून का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी है। कानून मनवाने की जिम्मेदारी है। वे ही कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार यह माहौल बना कैसे ?
दरअसल देश में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ऐसे पद हैं, जिनके हाथ में पूरी तरह से देश की बागडोर होती है। मौजूदा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री हैं कि उनके क्रियाकलापों से ऐसा लगता है कि जैसे कानून, संविधान से उनको कोई मतलब ही नहीं है। वह कुछ भी कर लें। उनकी कितनी की आलोचना होती रहे पर उन पर कोई असर नहीं पड़ता है। जिस संविधान की बुनियाद ही धर्मनिरपेक्ष है उस धर्मनिरपेक्ष शब्द का ही प्रधानमंत्री मजाक बनाते रहते हैं। उनके समर्थक संत धर्म संसद कर हिंदू राष्ट्र लिखने के लिए प्रेरित करते हैं और वह चुप्पी साध लेते हैं। क्या सब संविधान और कानून के दायरे ही में हो रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कानून मनवाने का सबसे बड़ा दावा करते हैं। वह क्या कर रहे हैं ? यूपी सरकार को कई बार सुप्रीम कोर्ट की भी फटकार लग चुकी है। सत्ता में बैठे लोगों का काम कानून मनवाने का होता है न कि तोड़ने में वाहवाही समझने का। लखीमपुरखीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष पर अपनी गाड़ी से कुचलकर तीन किसानों को मार डालने का आरोप है। यह दुश्साहस उसने बाप के उकसावे के बयान के दिखाया। दरअसल टेनी ने आंदोलित किसानों को धमकी दी थी कि सुधर जाओ नहीं तो सुधार दिये जाओगे। क्या हुआ। टेनी को उनके पद से हटाने के लिए कितने आंदोलन हुए। कितनी मांगें हुई पर टेनी का बाल भी बांका न हुआ। जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का बेटा कानून को हाथ में ले सकता है और केंद्रीय राज्य मंत्री देश के गृहमत्री के साथ घूमता रहता है। दूसरों को नसीहत देने वाले प्रधानमंत्री मामले पर चुप्पी साध लेंते हैं तो सचिन पंडित और शुभम जैसे उनके समर्थकों को कानून को हाथ में लेने का हौसला बढ़ेगा ही।
जब देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा था तो मोदी सरकार नियम कानून ताक पर रखकर सदन में बिना बहस कराए तीन नये कृषि कानून ले आई। श्रम कानून में संशोधन कर दिया गया। इसे क्या कहा जाएगा ? कानूनों के विरोध में किसान तेरह महीने तक आंदोलन करते रहे, 700 से ऊपर किसान इस आंदोलन में दम तोड़ गये। पर सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे किसानों से बातचीत करने के बजाय उन्हें नक्सली, देशद्रोही, नकली किसान पता नहीं क्या-क्या कहने लगे। हां जब उत्तर प्रदेश हाथ से जाता दिखाई देने लगा तो नये कृषि कानून वापस ले लिये गये। मतलब आप जो चाहेंगे वह करेंगे। श्रम कानून में संशोधन के विरोध में देश करी सभी ट्रेड यूनियनें आंदोलन कर रही हैं पर सरकार पर कोई असर नहीं है। प्रधानमंत्री जनता को मास्क लगाने और कोरोना गाइडलाइन का पालन करने की नसीहत दे रहे हैं पर खुद न मास्क लगा रहे हैं और न ही कोरोना गाइड लाइन का पालन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो भाषा भी दबंगों की बोलते हैं। ऐसे में उनके समर्थकों से भला कानून के पालन की क्या अपेक्षा की सकती है ? चाहे जेएनयू में छात्रों पर हमला हो जामिया मिल्लिया में फायरिंग प्रकरण हो। इस सोच के युवाओं ने ही तो माहौल बिगाड़ा था।
जय श्रीराम, वंदेमातरम के नारे जबर्दस्ती लगवाने के लिए कितने लोगों की पिटाई की गई। कितनी वीडियो वायरल हुई, कितने मामले दर्ज हुए। क्या हुआ ? ढाक के तीन पात। ऐसे में इस तरह से अपराधों को बढ़ावा तो मिलेगा ही।
यह सत्ता में बैठे लोगों का बनाया हुआ माहौल ही है कि देश के मुख्यमंत्री न्यायाधीश एक विधायक की 50 लाख की मोटरसाइकिल पर स्टंट करते हैं और जब प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण फोटो को लेकर ट्वीट करते हैं तो उन पर अवमानना का मुकद्मा दर्ज हो जाता है। वह दूसरी है कि उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाकर मामले को शांत करने का प्रयास किया जाता है। इस माहौल में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि देश का युवा कानून का सम्मान करेगा। वह इन लोगों के समर्थक। यह देश में कैसा माहौल बन गया है कि अपराध करते हुए वीडियो बनाकर उन्हें वायरल किया जा रहा है। कौन लोग हैं इन सबके लिए जिम्मेदार ? ऐसा नहीं है कि इस माहौल के लिए पूरा जिम्मेदार सत्ता पक्ष को ही ठहरा दिया जाए। विपक्ष भी इसके लिए बहुत बड़ा जिम्मेदार। मोदी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ कोई विपक्षी पार्टी सही ढंग से खड़ी न हो सकी। मोदी सरकार मीडिया को अपने साथ लेकर जो चाह रही है वह कर रही है और विपक्ष अपनी गर्दन बचाने की मुद्रा में है। वह बात दूसरी है कि अब जब पांच राज्यों में चुनाव चल रहा है तो सभी अपनी-अपनी सरकार बनने का दावा करने लगे हैं। यह सरकार का बनाया हुआ माहौल ही है कि अधिकतर निजी संस्थाएं न कोई नियम मान रही हैं न ही कोई कानून। देश के नौनिहालों का भविष्य पूरी तरह से चौपट करने का षड्यंत्र देश में चल रहा है। ऐसे माहौल में तो ओवैसी मामले में भी सचिन पंडित और शुभम अब अपराध की दलदल में धंसेंगे न कि समाज में रहकर देश और समाज के उत्थान के लिए काम करेंगे। मुंगेर निर्मित पिस्टल आखिरकार इन लोगों के पास आ गई कैसे ? योगी आदित्यनाथ तो गुंडे-बदमाशों को जेल भेजने का दावा कर रहे हैं ? यदि गुंडे बदमाश जेल में हैं तो सचिन पंडित और शुभम जैसे लोग कौन हैं ?
दरअसल देश में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ऐसे पद हैं, जिनके हाथ में पूरी तरह से देश की बागडोर होती है। मौजूदा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री हैं कि उनके क्रियाकलापों से ऐसा लगता है कि जैसे कानून, संविधान से उनको कोई मतलब ही नहीं है। वह कुछ भी कर लें। उनकी कितनी की आलोचना होती रहे पर उन पर कोई असर नहीं पड़ता है। जिस संविधान की बुनियाद ही धर्मनिरपेक्ष है उस धर्मनिरपेक्ष शब्द का ही प्रधानमंत्री मजाक बनाते रहते हैं। उनके समर्थक संत धर्म संसद कर हिंदू राष्ट्र लिखने के लिए प्रेरित करते हैं और वह चुप्पी साध लेते हैं। क्या सब संविधान और कानून के दायरे ही में हो रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कानून मनवाने का सबसे बड़ा दावा करते हैं। वह क्या कर रहे हैं ? यूपी सरकार को कई बार सुप्रीम कोर्ट की भी फटकार लग चुकी है। सत्ता में बैठे लोगों का काम कानून मनवाने का होता है न कि तोड़ने में वाहवाही समझने का। लखीमपुरखीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष पर अपनी गाड़ी से कुचलकर तीन किसानों को मार डालने का आरोप है। यह दुश्साहस उसने बाप के उकसावे के बयान के दिखाया। दरअसल टेनी ने आंदोलित किसानों को धमकी दी थी कि सुधर जाओ नहीं तो सुधार दिये जाओगे। क्या हुआ। टेनी को उनके पद से हटाने के लिए कितने आंदोलन हुए। कितनी मांगें हुई पर टेनी का बाल भी बांका न हुआ। जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का बेटा कानून को हाथ में ले सकता है और केंद्रीय राज्य मंत्री देश के गृहमत्री के साथ घूमता रहता है। दूसरों को नसीहत देने वाले प्रधानमंत्री मामले पर चुप्पी साध लेंते हैं तो सचिन पंडित और शुभम जैसे उनके समर्थकों को कानून को हाथ में लेने का हौसला बढ़ेगा ही।
जब देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा था तो मोदी सरकार नियम कानून ताक पर रखकर सदन में बिना बहस कराए तीन नये कृषि कानून ले आई। श्रम कानून में संशोधन कर दिया गया। इसे क्या कहा जाएगा ? कानूनों के विरोध में किसान तेरह महीने तक आंदोलन करते रहे, 700 से ऊपर किसान इस आंदोलन में दम तोड़ गये। पर सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे किसानों से बातचीत करने के बजाय उन्हें नक्सली, देशद्रोही, नकली किसान पता नहीं क्या-क्या कहने लगे। हां जब उत्तर प्रदेश हाथ से जाता दिखाई देने लगा तो नये कृषि कानून वापस ले लिये गये। मतलब आप जो चाहेंगे वह करेंगे। श्रम कानून में संशोधन के विरोध में देश करी सभी ट्रेड यूनियनें आंदोलन कर रही हैं पर सरकार पर कोई असर नहीं है। प्रधानमंत्री जनता को मास्क लगाने और कोरोना गाइडलाइन का पालन करने की नसीहत दे रहे हैं पर खुद न मास्क लगा रहे हैं और न ही कोरोना गाइड लाइन का पालन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो भाषा भी दबंगों की बोलते हैं। ऐसे में उनके समर्थकों से भला कानून के पालन की क्या अपेक्षा की सकती है ? चाहे जेएनयू में छात्रों पर हमला हो जामिया मिल्लिया में फायरिंग प्रकरण हो। इस सोच के युवाओं ने ही तो माहौल बिगाड़ा था।
जय श्रीराम, वंदेमातरम के नारे जबर्दस्ती लगवाने के लिए कितने लोगों की पिटाई की गई। कितनी वीडियो वायरल हुई, कितने मामले दर्ज हुए। क्या हुआ ? ढाक के तीन पात। ऐसे में इस तरह से अपराधों को बढ़ावा तो मिलेगा ही।
यह सत्ता में बैठे लोगों का बनाया हुआ माहौल ही है कि देश के मुख्यमंत्री न्यायाधीश एक विधायक की 50 लाख की मोटरसाइकिल पर स्टंट करते हैं और जब प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण फोटो को लेकर ट्वीट करते हैं तो उन पर अवमानना का मुकद्मा दर्ज हो जाता है। वह दूसरी है कि उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाकर मामले को शांत करने का प्रयास किया जाता है। इस माहौल में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि देश का युवा कानून का सम्मान करेगा। वह इन लोगों के समर्थक। यह देश में कैसा माहौल बन गया है कि अपराध करते हुए वीडियो बनाकर उन्हें वायरल किया जा रहा है। कौन लोग हैं इन सबके लिए जिम्मेदार ? ऐसा नहीं है कि इस माहौल के लिए पूरा जिम्मेदार सत्ता पक्ष को ही ठहरा दिया जाए। विपक्ष भी इसके लिए बहुत बड़ा जिम्मेदार। मोदी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ कोई विपक्षी पार्टी सही ढंग से खड़ी न हो सकी। मोदी सरकार मीडिया को अपने साथ लेकर जो चाह रही है वह कर रही है और विपक्ष अपनी गर्दन बचाने की मुद्रा में है। वह बात दूसरी है कि अब जब पांच राज्यों में चुनाव चल रहा है तो सभी अपनी-अपनी सरकार बनने का दावा करने लगे हैं। यह सरकार का बनाया हुआ माहौल ही है कि अधिकतर निजी संस्थाएं न कोई नियम मान रही हैं न ही कोई कानून। देश के नौनिहालों का भविष्य पूरी तरह से चौपट करने का षड्यंत्र देश में चल रहा है। ऐसे माहौल में तो ओवैसी मामले में भी सचिन पंडित और शुभम अब अपराध की दलदल में धंसेंगे न कि समाज में रहकर देश और समाज के उत्थान के लिए काम करेंगे। मुंगेर निर्मित पिस्टल आखिरकार इन लोगों के पास आ गई कैसे ? योगी आदित्यनाथ तो गुंडे-बदमाशों को जेल भेजने का दावा कर रहे हैं ? यदि गुंडे बदमाश जेल में हैं तो सचिन पंडित और शुभम जैसे लोग कौन हैं ?