संविधान में प्रकृति, पृथ्वी और पर्यावरण को शामिल करने की मांग पर 7 दिवसीय उपवास समाप्त

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-7 वर्षीय अनुराधा के हाथों शहद लेकर तोड़ा उपवास

-डॉ. जावैद: ‘मार्ग बदल सकता हूं, पर लक्ष्य नहीं’

प्रस्ताव: पर्यावरण संरक्षण को संविधान की प्रस्तावना में स्थान मिले

दीपक तिवारी 

दरभंगा। संविधान दिवस के अवसर पर स्वतंत्रता अध्ययन अनुसंधान केंद्र, बसुहाम में डॉ. जावैद अब्दुल्लाह ने सात दिनों का कठिन उपवास समाप्त किया। 7 वर्षीय अनुराधा के हाथों से शहद लेकर उन्होंने उपवास तोड़ा। यह उपवास उन्होंने प्रकृति, पृथ्वी, और पर्यावरण संरक्षण को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ने की मांग के समर्थन में रखा था।

सभा को संबोधित करते हुए डॉ. जावैद ने कहा, “परिवर्तन संघर्ष और निरंतर प्रयास से ही संभव है। हालांकि समाज का उदासीन रवैया देख मैं आहत हूँ। लोग विचार और मूल्यों के बजाय केवल शक्ति और सत्ता को महत्व देते हैं। मुझे इस समाज की सोच को बदलने के लिए अपने कदमों को पुनःनिर्धारित करना होगा।”

उन्होंने भावुक होकर कहा, “प्रकृति, पृथ्वी, और पर्यावरण के लिए जो भी बलिदान दूं, वह कम है। मैं अपना मार्ग बदल सकता हूं, परंतु लक्ष्य नहीं। मेरी लड़ाई जारी रहेगी।”

इस अवसर पर स्थानीय प्रबुद्ध जनों ने भी पर्यावरणीय मुद्दों को संविधान में स्थान देने की मांग का समर्थन किया। सभा में प्रमुख लोगों में सय्यद गुलज़ार अहमद, अरुण मंडल, रमानंद झा, और डॉ. अमरजी कुमार शामिल थे।

डॉ. अमरजी ने अपने संबोधन में कहा, “यह समय है कि पर्यावरण संरक्षण को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ने की प्रक्रिया वार्ड स्तर से लेकर संसद तक शुरू हो।”

प्रमुख बिंदु:

प्रस्ताव: प्रकृति, पृथ्वी, और पर्यावरण को संविधान की प्रस्तावना में शामिल करने की मांग।

डॉ. जावैद: “समाज की उदासीनता ने मेरे निर्णयों को प्रभावित किया है, राजनीति में कदम रखने पर विचार कर सकता हूं।”

समर्थन: सभा में प्रबुद्ध नागरिकों और जनप्रतिनिधियों ने पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा की।

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