
राजकुमार जैन
संसद विधानसभाओं में समुचित प्रतिनिधित्व, सत्ता सुख न मिलने, समाजवाद की किसी एक पार्टी के नहीं होने से, किसी साथी का यह पैगाम कि समाजवादी आंदोलन का समापन हो गया है, उसका माकूल जवाब साथी विनोद कोचर ने बखूबी नजीरों के साथ दिया है। नरेंद्र मोदी के अघोषित आपातकाल के बावजूद इस दौर में भी समाजवादी विचार धारा मैं यकीन रखने वाले, टुकड़ों टुकड़ों में बटे, समाजवादी आज भी मुल्क भर में कलम और सड़क की मार्फत अपने-अपने तरीके से लड़ रहे हैं।
आज की राजनीति में जितने भी विमर्श चाहे सत्ता पक्ष की ओर से हो अथवा विपक्ष के, 50 के दशक में लोहिया ने जिन-जिन सिद्धांतों की रचना की थी आज भी उसी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। विशेष अवसर का सिद्धांत, पिछड़ी पावे 100 में 60, नारी विमर्श, शौचालय, हवा चिमनी वाले चूल्हे, नदियां साफ करो, खेती और कारखाने के लागत खर्च में समानता, बेरोजगारों को काम दो या बेकारी का भत्ता दो, सड़क अगर सुनी होगी तो संसद आवारा हो जाएगी, हिंदुस्तान में विदेशी हमला हिंदू मुसलमान का नहीं देसी और परदेसी का हुआ, उदार बनाम कट्टर हिंदू, वगैरा-वगैरा। आज जबकि सोशलिस्टों की कोई एक पार्टी, संगठन, केंद्र, आर्थिक साधन नहीं, उसके बावजूद सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक, वैचारिक बहसो, सेमिनार सिंपोजियम, लेखो टिप्पणियों, पत्र पत्रिकाओं, किताबों के प्रकाशन मैं आज भी सोशलिस्ट विचारधारा हरावल दस्ते के रूप में कार्यरत है।