
संसाधनों के बंटवारे और आरक्षण नीति में मदद की उम्मीद
पटना/दिल्ली।दीपक कुमार तिवारी।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जातिगत जनगणना कराने की घोषणा की है। यह जनगणना आगामी राष्ट्रीय जनगणना के साथ ही कराई जाएगी, जिसमें जनगणना फॉर्म में जाति का कॉलम शामिल रहेगा। इससे पूरे देश में विभिन्न जातियों की वास्तविक जनसंख्या का आंकड़ा सामने आ सकेगा।
राजनीतिक जानकार इसे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-नीतीश गठबंधन का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। विपक्ष लंबे समय से जाति जनगणना की मांग करता रहा है, खासकर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव जैसे नेता इसे समाज के लिए जरूरी बता रहे थे। उनका तर्क रहा है कि जाति आधारित आंकड़ों से आरक्षण, संसाधनों के बंटवारे और सामाजिक न्याय से जुड़ी नीतियों को अधिक सटीक और प्रभावी बनाया जा सकता है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट मीटिंग के बाद इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि यह फैसला समाज के हर वर्ग के हित में लिया गया है। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों के लिए कार्य करती रही है।” उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में केवल विचार का आश्वासन दिया था, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं की गई थी।
इस फैसले से INDIA गठबंधन को झटका लगा है, क्योंकि उन्होंने जाति जनगणना को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर चुनावों में इस्तेमाल किया था। वैष्णव ने बताया कि कुछ राज्यों ने अपनी ओर से प्रयास किए, लेकिन जातिगत जनगणना केंद्रीय विषय है और यह काम संगठित रूप से एकरूपता के साथ केंद्र द्वारा ही किया जाना चाहिए।
बिहार पहला राज्य था जिसने जातिगत जनगणना कराई थी, जिसका श्रेय तेजस्वी यादव और राहुल गांधी लेते रहे हैं। अब जब नीतीश कुमार और भाजपा एक साथ हैं, तो इस फैसले से NDA को चुनावी लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, जाति आधारित आंकड़े सरकार को नीतिगत निर्णयों और कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी हकीकत के अनुसार तैयार करने में मदद करेंगे।